रविवार

मैं कमजोर नहीं


मैं एक नारी हूँ

तुम्हारी दृष्टि में कमजोर

क्योंकि मैं 

अव्यक्त हूँ

ममतामयी हूँ

करुणामयी हूँ

मैं नहीं हारती पुरुष से

हार जाती हूँ 

खुद से

हृदयहीन नहीं बन पाती

स्वहित में किसी का

अहित नहीं कर पाती

कुदृष्टि डालने वाले की

आँखें नहीं नोचती

क्योंकि उसके दृष्टिहीनता

की पीड़ा की 

कल्पना भी नहीं कर पाती

अपने ही पुत्र के समक्ष 

बेबस हो जाती हूँ

क्योंकि ममता को 

त्याग नहीं पाती हूँ

अपने पति की क्रूरता

सहन कर लेती हूँ

क्योंकि वह शक्तिशाली है

उसका यह भ्रम नहीं

तोड़ना चाहती

अपने ही पति द्वारा

अपमानित होकर भी

शांत रहती हूँ

क्योंकि उसका मान भंग 

नहीं करना चाहती

फिरभी कहते हो 

मैं कमजोर हूँ!

कैसे????

©मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

4 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आ०

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  2. असहनीय को सहन करके भी शांत रहना
    कमजोरी की निशानी तो है
    अपनी कमजोरी को
    ममता, मान सम्मान, इज्जत, लजा की आड़ में
    छीपा लेना दुर्बलता ही तो है।
    खैर
    जब तक सहन करने योग्य हो तब तक ताकत आपके शरीर में और एकता की सोच आपके दिमाग में न आ सकेगी।
    खूबसूरत रचना।
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    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सत्य कहा रोहितास जी अपनों के समक्ष नारी हमेशा दुर्बल ही होती है, कभी गौर किया आपने वह उनके समझ दुर्बल नहीं होती जिनसे उसका कोई रिश्ता नहीं होता। सत्य यही है नारी सदैव खुद से भी भारती आई है।
      आपकी निष्पक्ष प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

      हटाएं

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