शनिवार

हर रात का सवेरा होता है....


चली थी कभी किसी के दम पर
अपनी सारी दुनिया छोड़ कर
सपने सजाकर आँखों में
सुनहरे दिन और चाँदनी रातों के
धीरे-धीरे समय ने ली करवट
दिन ढलने लगा अँधेरे की गोद में
खुशियों का सूरज ढलने लगा 
गमों के काले बादल में
सामने थी एक काली स्याह लंबी रात
जिसका कोई सवेरा न था
चली थी जिसका हाथ थाम
वो नजर आता था बेगाना
लगता था शमा से भाग रहा परवाना
रोज रहता था उसकी आँखों को इंतजार
कब ढले गम की रात आए सुबह की बहार
पर लगता था इस रात का
कोई सवेरा ही न था
हो चली थी मैं जिंदगी से बेजार
तन्हा अकेली जिए जा रही थी
तन्हाई का जहर घूँट-घूँट पिये जा रही थी
तभी.......
रात के अँधेरे को चीरती हुई
उम्मीद की एक किरण कुछ यूँ चमकी
मानों प्यासे को पानी नहीं 
सागर मिला हो
भूखे को भोजन नहीं
अन्नपूर्णा का वरदान मिला हो
तुम मेरी जिंदगी में आई वरदान बनकर
शायद किसी पुण्य का परिणाम बनकर
मैं झूम उठी, मेरा रोम-रोम खिला उठा
मेरी नन्हीं कली को पा
मेरे सपनो का उपवन महक उठा
मुझे विश्वास हो गया
कि हर रात का सवेरा हेता है...

साभार....मालती मिश्रा


Related Posts:

  • पचास साल का युवा गर दिखाए राह तो बुद्धि का विकास कब होगा इस देश में … Read More
  • आखिरी इम्तिहान आखिरी इम्तिहान आज आखिरी पेपर है सुधि की खुशी का कोई ठिकाना न था, वह ज… Read More
  • एक रात की मेहमान जेठ की दुपहरी थी बाहर ऐसी तेज और चमकदार धूप थी मानों अंगारे बरस रहे … Read More
  • साहित्यकार के दायित्व साहित्य सदा निष्पक्ष और सशक्त होता है, यह संस्कृतियों के रूप, गुण, धर… Read More

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भाव प्रवाह ! बेहतरीन कविता।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपके अनमोल शब्दों के लिए आप सभी का बहुत-बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. आपके अनमोल शब्दों के लिए आप सभी का बहुत-बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
    बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

    जवाब देंहटाएं

Thanks For Visit Here.