गुरुवार

राष्ट्रद्रोह आंदोलन की चक्की में देश पिसता है


इतनी शक्ति कांग्रेस ने गर ब्रिटिश काल मे दिखाई होती,
देश को आजाद कराने में फिर सौ साल नहीं गँवाई होती|
सत्ता की लालसा प्रबल इतनी है हित अहित न दिखता है,
राष्ट्रद्रोह और आंदोलन की चक्की में देश पिसता है |
देशद्रोह के नारे को वैचारिक अभिव्यक्ति बताते हैं,
देशभक्ति का दम भरने वाले संविधान का मजाक बनाते हैं |
सत्य पर पर्दा पड़ा रहे हर संभव जुगत लगाते हैं,   
जनहित का प्रपंच रचकर आंदोलन में देश जलाते हैं |
आरक्षण का लॉलीपॉप दिखा अयोग्यता की जड़ें फैलाते हैं, 
भारत माँ के पुत्रों से ही उनका दामन कुचलवाते हैं |
लाख करो कोशिश तुम दुष्टों जनता अब है जाग रही, 
तुम्हारी हर खल चेष्टाओं को अपने स्तर पर भाँप रही| 
हर घर से अफजल पैदा करो इतनी तुम्हारी औकात नहीं, 
अफज़ल संग तुमको धूल न चटा दें तो हम भारत माँ के लाल नहीं ||
मालती मिश्रा...

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