रविवार

आरक्षण बनाम राजनीति

 
    आरक्षण के लिए आंदोलन की आड़ में अपना स्वार्थ साधना कोई नई बात नहीं है ऐसा तो यहाँ बार-बार होता रहा है और आगे भी होता ही रहेगा परंतु सवाल यह उठता है कि क्या ये आंदोलन करने वाले सचमुच आम जनता ही है, हमारे देश की आम जनता कब से इतनी संवेदनाहीन हो गई? अपनी संवेदनशीलता के कारण हिंदू हमेशा धोखा खाते आए हैं हमेशा छले जाते रहे हैं, परंतु आंदोलन की आड़ में दंगे-फसाद, आगजनी करने वाले लोग साधारण जनता नहीं हो सकती, परंतु यह भी सत्य है कि हथियार तो साधारण जनता को ही बनाया गया..
दंगाइयों की मुहर तो साधारण जनता यानी जाटों पर ही लगी,इसलिए साधारण जाट जो आंदोलन में शामिल थे उन्हें चाहिए था कि वो खुद इन दंगा-फसादों का विरोध करते ताकि उन्हें इस्तेमाल करने वालों को उनकी असली जगह दिखाई जा सकती, परंतु लालच बुरी बला है यही सत्य है बिना मेहनत बिना किसी गुण के आरक्षण पाने का लालच देश की संपत्ति को आग के हवाले होते देखता रहा.....
सवाल यह उठता है कि जो लोग अपनी स्वार्थ साधना हेतु देश को इतना नुकसान पहुँचा सकते हैं देश की करोड़ों की संपत्ति फूँक सकते हैं, हत्याएँ कर सकते हैं, देश की आम जनता को भूख-प्यास से मरने को मज़बूर कर सकते हैं, वो आरक्षण मिलने के उपरांत देश का क्या भला करेंगे सिवाय अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए हर जायज-नाजायज तरीके अपनाने के....ऐसे लोग देश के विकास में एक अवरोधक का कार्य करते हैं,इन्हें आरक्षण की नहीं सही सबक सिखाने की आवश्यकता है| इन्हें आरक्षण मिलना चाहिए परंतु कुछ शर्तों पर कि देश का जो भी नुकसान हुआ है संपूर्ण आरक्षित जाट वर्ग को यह नुकसान पूरा करना होगा इसके साथ ही सरकार को सभी वर्गों को चाहे वह जनरल हो, ओ बी सी हो, पिछड़ा, अल्प संख्यक या कोई भी वर्ग हो उसकी संख्या के आधार पर आरक्षण दे देना चाहिए और आरक्षित सीटों पर भी शिक्षा में प्रवेश या नौकरी में भर्ती सभी में चयन योग्यता के आधार पर ही होना चाहिए| इससे विभाजन में सामंजस्य रहेगा और सत्ता के लोभियों को आरक्षण पर राजनीति करने का अवसर नहीं मिलेगा |
मालती मिश्रा

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