बुधवार

विचाराभिव्यक्ति की आजादी

"आजादी" कितना महान, कितना मधुर और कितना प्रिय लगता है यह शब्द। आजादी के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते... मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी सदैव आजादी ही पसंद करते हैं। कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने अपनी रचना के द्वारा व्यक्त भी किया है "हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे" जब हमारा देश अंग्रेजी शासन का गुलाम था तब आजादी पाने के लिए देश के सपूतों ने कितनी कुर्बानियाँ दीं। कितनी बहनों के भाई शहीद हो गए, कितनी ही माँओं की गोद सूनी हो गई, कितनी वनिताओं की माँग सूनी हो गई इस आजादी को पाने के लिए और आज हम बड़े गर्व से कहते हैं कि हम आजाद देश के नागरिक हैं। फिर भी इस आजाद देश में भी कितने ही बीमार ऐसे हैं जो अभी भी आजादी चाहते हैं परंतु विचारणीय है कि किससे? 
आज लोग आजादी का क्या अर्थ समझते हैं.... क्या आजादी का अर्थ यह है कि हम कुछ भी करें कुछ भी कहें कहीं भी कभी भी जाएँ हम पर कोई रोक-टोक न हो!!!!  क्या हमें आतंक फैलाने की आजादी मिलनी चाहिए, क्या किसी को किसी अन्य व्यक्ति पर पत्थर मारने की आजादी हो सकती है?? क्या यही है आजादी का मतलब? यदि ये आजादी का अर्थ है तो हमें यह भी समझना होगा कि फिर सिर्फ हम ही नही हमारे सामने वाला भी तो आजाद है, यदि हम कुछ भी कहने को आजाद हैं तो वह भी तो कुछ भी करने को आजाद है, फिर ऐसी आजादी के क्या नजारे हो सकते हैं कल्पना कीजिए....

आजकल एक चीज बहुत सुनने को मिलती है-"विचाराभिव्यक्ति की आजादी" निःसंदेह सभी को अपने विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन क्या इसका यह अर्थ हो जाता है कि हम कुछ भी कहेंगे ? यहाँ तक कि विचारों की अभिव्यक्ति के नाम पर अपने देश की नीतियों का विरोध करेंगे और उम्मीद रखेंगे कि हमारे कहे पर कोई आपत्ति नही जताएगा। 

जहाँ तक मैं समझती हूँ कि मेरे इस विचार से सभी सहमत होंगे कि आजादी का अर्थ होता है "निर्धारित नियमों के दायरे में अनुशासित ढंग से अपने कर्तव्यों का निर्वहन" सोचिए यदि सभी आजाद होने के कारण यातायात के नियमों का पालन न करें तो..... जब प्रकृति तक अपने नियम नहीं तोड़ती तो हम तो मानव हैं।
क्या हमारे देश की गरिमा को बनाए रखने के लिए कोई नियम नहीं होंगे?? क्या जिस देश की गरिमा को बनाए रखने के लिए, जिसे आजाद करवाने के लिए हजारों देशभक्तों ने अपनी कुर्बानी दी है उसी देश के हित के विरोध में, उस देश की गरिमा को खंडित करने के लिए किसी को कुछ भी कहने की आजादी हो सकती है? क्या विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हम कुछ भी कहने के हकदार हैं? 
क्या कोई भी समाज कोई भी व्यक्ति हमें यह आजादी दे सकता है कि हम उस समाज या उस व्यक्ति के लिए कोई अमर्यादित टिप्पणी करें ! यदि नहीं तो हमारे देश के कानून में भी विचाराभिव्यक्ति की आजादी की सीमाओं का निर्धारण अति आवश्यक है।
इतना ही नहीं विचाराभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आजकल गरिमामयी पदों पर आसीन पदाधिकारी किसी अन्य गरिमामयी पदाधिकारी के लिए भी अत्यंत गरिमाहीन शब्दों का प्रयोग करते हैं। ऐसी आजादी किस काम की जो हमे अमर्यादित बनादे, जो हमसे हमारे संस्कार ही छीन ले। यदि हम बंधन में ही व्यक्तियों, समाज व देश का सम्मान करना सीख सकते हैं तो वह बंधन ही अच्छा।
जिस प्रकार हम हमारे घरों के छोटे बच्चों को उनकी ही भलाई के लिए नियमों में बाँधते हैं, उनके गलत व्यवहार, गलत शब्दों और अन्य गलतियों पर अंकुश लगाते हैं उसी प्रकार इस देश के कानून का भी इतना सख्त और प्रभावशाली होना आवश्यक है कि देश-विरोधी नारे लगाने, आतंकियों का समर्थन करने और नारे लगाने वालों का समर्थन करने से पहले हर छोटा-बड़ा व्यक्ति दस बार अवश्य सोचे।
                                                               
मालती मिश्रा

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