मंगलवार

इक हाथ में मटकी दूजे में रई है
रूप अधिक मनभावन भई है
स्वर्ण पात्र माखन को भरो है
बंसी भी इक ओर धरो है
कान्हा तेरो रूप सलोनो
देख-देख मन पुलकित भयो है।
बदरा ऊपर आस लगाए
उमड़-घुमड़ तोहे छूवन चाहे
भोर किरन भई बड़ भागी
अपनी आभा को तुम फैलायो
श्याम वर्ण काया पर कान्हा
नीलवरण पटका अधिक सुहायो
दिवा-रात्रि के मिलन ने जैसे
स्वर्ण-रजत की छवि बिखरायो
देख-देख छवि अति सुघड़ सलोनो
मन बार-बार तुम पर बलि जायो
मालती मिश्रा

0 Comments:

Thanks For Visit Here.