गुरुवार

संस्मरण

संस्मरण
संस्मरण यादों के पटल से 'मेरी दादी' आज की विधा है संस्मरण यह जानकर मेरे मानसपटल पर सर्वप्रथम जो पहली और प्रभावशाली छवि अंकित हुई वो मेरी दादी जी की है। मैं अपनी दादी के साथ हमेशा नहीं रहती थी, क्योंकि मेरे बाबूजी की सरकारी नौकरी थी और इसीलिए हमारा पूरा परिवार यानि मैं...

बुधवार

लेखनी स्तब्ध है

लेखनी स्तब्ध है
लेखनी स्तब्ध है मिलता न कोई शब्द है गहन समंदर भावों का जिसका न कोई छोर है, डूबते-उतराते हैं शब्द ठहराव पर न जोर है। समझ समापन चिंतन का पकड़ी तूलिका हाथ ज्यों, त्यों शब्द मुझे भरमाने लगे लगता न ये आरंभ है। लेखनी स्तब्ध है मिलता न कोई शब्द है। भावों का आवागमन दिग्भ्रमित...

चौपाई

चौपाई
'चौपाई' सिद्ध करने अपनी प्रभुताई, मानव ने हर विधि अपनाई। स्वर्ण चमक में प्रकृति को भूला, नष्ट किया वन संपदा समूला। सूर्यदेव ने रूप दिखाया, किरणों से शोले बरसाया। धारण किया रूप विकराला, उठती लपटें अधिक विशाला। नाना विधि सब कर कर हारे, त्राहि-त्राहि सब मनुज पुकारे। स्वहित...

मंगलवार

शोध भी है शोध का विषय

शोध भी है शोध का विषय
जब भी नारी-विमर्श की बात आती है तो हमारे पास एक ही काम रह जाता है कि जानी-मानी साहित्यकारों की कृतियाँ जैसे उपन्यास आदि के द्वारा उनके विचारों को पढ़ें और ऐसे ही कुछ जाने-माने साहित्यकारों के कुछ वक्तव्यों को उठाएँ और उन पर अपनी राय रखते हुए एक बड़ा और आकर्षक लेख तैयार कर...

रविवार

आखिरी इम्तिहान

आखिरी इम्तिहान
आखिरी इम्तिहान आज आखिरी पेपर है सुधि की खुशी का कोई ठिकाना न था, वह जल्दी-जल्दी विद्यालय की ओर कदम बढ़ा रही थी। बस भगवान मेरे बाकी सभी विषयों की तरह आज का पेपर भी अच्छा हो जाए तो मैं इस नरक से मुक्ति पा जाऊँगी, मैं फिर कभी इधर पलट कर भी नहीं देखूँगी, सोचती हुई सुधि तेज-तेज...

शनिवार

एक रात की मेहमान

एक रात की मेहमान
जेठ की दुपहरी थी बाहर ऐसी तेज और चमकदार धूप थी मानों अंगारे बरस रहे हों ऐसे में यदि बाहर निकल जाएँ तो ऐसा लगता मानो किसी ने शरीर पर जलते अंगारे रख दिए, घर के भीतर भी उबाल देने वाली गर्मी थी, अम्मा, दादी, छोटी दादी और मंझली काकी सब हमारे ही बरामदे और गैलरी में बैठे थे...

मंगलवार

पचास साल का युवा गर दिखाए राह तो बुद्धि का विकास कब होगा इस देश में जनता समाज सब भ्रम में ही फँस रहे हर पल विष घुल रहा परिवेश में।। रोज नए मुद्दे बनें नई ही कहानी बने भक्षक ही घूम रहे रक्षक के वेश में।। उचित अनुचित का खयाल बिसरा दिया चापलूस चाटुकार मिले अभिषेक में...

शनिवार

साहित्यकार के दायित्व

साहित्यकार के दायित्व
साहित्य सदा निष्पक्ष और सशक्त होता है, यह संस्कृतियों के रूप, गुण, धर्म की विवेचना करता है और  साहित्यकार साहित्य का वह साधक होता है जो शस्त्र बनकर साहित्य की रक्षा साहित्य के द्वारा ही करता है तथा इस साहित्य साधना के लिए वह लेखनी को अपना शस्त्र बनाता है। ऐसी स्थिति...

बुधवार

एक और न्यूजपेपर हिन्दू सहस्रधारा साप्ताहिक मध्यप्रदेश में पुस्तक की समीक्षा को स्थान मिलना मेरे उत्साह के लिए संजीवन...

रविवार

अन्तर्ध्वनि की समीक्षा का 'डेली हिन्दी मिलाप दैनिक' में प्रकाशन

माँ के आशीर्वाद से एक और शुभ समाचार ज्ञात हुआ। जाने-माने साहित्यकार, समीक्षक आ०अवधेश अवधेश कुमार अवध जी द्वारा की मेरी पुस्तक की समीक्षा 'डेली हिन्दी मिलाप' दैनिक हैदराबाद के पेपर में छपी। आदरणीय अवधेश जी का आभार व्यक्त करते हुए अपनी प्रसन्नता आप सभी मित्रों के...

इतनी क्या जल्दी थी माँ..

इतनी क्या जल्दी थी माँ..
लाई तू मुझे इस दुनिया में अपरिमित कष्टों को सहन किया नाना जिद और नखरों को हँसकर तूने वहन किया कुछ और समय इस दुनिया को माँ तूने सहन किया होता, इतनी क्या जल्दी थी माँ इक बार तो मुझे कहा होता कष्ट तेरे अंतिम पल के कुछ मैंने भी तो सहा होता माँ तुझको जब-जब कष्ट हुआ मुझ तक...

शनिवार

भक्ति जगाय दीजिए

भक्ति जगाय दीजिए
शारदे की पूजा करूँ काम नहीं दूजा करूँ भक्ति ऐसी मेरे हिय में जगाय दीजिए।। साथ दे जो हर घड़ी कभी न अकेला छोड़े धर्म पथ पर कोई वो सहाय दीजिए।। लेखनी का शस्त्र धरूँ अशिक्षा पे वार करूँ। ज्ञान दीप मेरे हिय में जलाय दीजिए।। शिक्षा जो ग्रहण किया सभी में मैं बाँट सकूँ मानव का...

रविवार

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा : अन्तर्ध्वनि        समीक्षक : अवधेश कुमार 'अवध' मनुष्यों में पाँचों इन्द्रियाँ कमोबेश सक्रिय होती हैं जो अपने अनुभवों के समन्वित मिश्रण को मन के धरातल पर रोपती हैं जहाँ से समवेत ध्वनि का आभास होता है, यही आभास अन्तर्ध्वनि है।...

गुरुवार

सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना
वीणापाणि मात मेरी करती आराधना मैं आन बसो हिय मेरे ज्ञान भर दीजिए।। समर्पित कर रही श्रद्धा के सुमन मात अरज मेरी ये आप सवीकार कीजिए।। बन कृपा बरसो माँ लेखनी विराजो मेरे अविरल ज्ञान गंगा बन बहा कीजिए।। यश गाथा गाय रही तुमको बुलाय रही सुनो मात अरजी न देर अब कीजिए।। #मा...