लाई तू मुझे इस दुनिया में
अपरिमित कष्टों को सहन किया
नाना जिद और नखरों को
हँसकर तूने वहन किया
कुछ और समय इस दुनिया को
माँ तूने सहन किया होता,
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
माँ तुझको जब-जब कष्ट हुआ
मुझ तक न हवा लगने पाई
खुद क्रूर काल की ग्रास बनी
मुझको न खबर होने पाई
काश हमारी अनुमति का
विधना ने विधान लिखा होता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
छोड़ गई तू मुझे अकेली
गैरों की इस भीड़ में
रखा सदा सुरक्षित जिसको
अपने आँचल के नीड़ में
काश तेरे आँचल को मैंने
मुट्ठी में तेजी से गहा होता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
उस घर से जब मुझे विदा किया
भर अंक में मुझको रोई थी
खुद विदा हुई जब दुनिया से
भर बाहों में तुझे न मैं रो पाई
दूर होती छाया को तेरी
मैंने भी महसूस किया होता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
आता है जो दुनिया में
इक रोज तो उसको जाना है
विधना का यह अटल सत्य
कटु है पर सबने माना है
इस सत्य से लड़ने की कोशिश को
मैंने भी तो जिया होता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
दूर भले मुझसे थी पर
आशीष की छाया घनेरी थी
हाथों का स्पर्श सदा साथ रहा
जो सिर पर तूने फेरी थी
अब वो स्पर्श नहीं वो छाया नहीं
सूख गया ममता का सोता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता।
कष्ट तेरे...........
कुछ मैंने...........
#मालतीमिश्रा
अपरिमित कष्टों को सहन किया
नाना जिद और नखरों को
हँसकर तूने वहन किया
कुछ और समय इस दुनिया को
माँ तूने सहन किया होता,
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
माँ तुझको जब-जब कष्ट हुआ
मुझ तक न हवा लगने पाई
खुद क्रूर काल की ग्रास बनी
मुझको न खबर होने पाई
काश हमारी अनुमति का
विधना ने विधान लिखा होता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
छोड़ गई तू मुझे अकेली
गैरों की इस भीड़ में
रखा सदा सुरक्षित जिसको
अपने आँचल के नीड़ में
काश तेरे आँचल को मैंने
मुट्ठी में तेजी से गहा होता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
उस घर से जब मुझे विदा किया
भर अंक में मुझको रोई थी
खुद विदा हुई जब दुनिया से
भर बाहों में तुझे न मैं रो पाई
दूर होती छाया को तेरी
मैंने भी महसूस किया होता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
आता है जो दुनिया में
इक रोज तो उसको जाना है
विधना का यह अटल सत्य
कटु है पर सबने माना है
इस सत्य से लड़ने की कोशिश को
मैंने भी तो जिया होता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता
दूर भले मुझसे थी पर
आशीष की छाया घनेरी थी
हाथों का स्पर्श सदा साथ रहा
जो सिर पर तूने फेरी थी
अब वो स्पर्श नहीं वो छाया नहीं
सूख गया ममता का सोता
इतनी क्या जल्दी थी माँ
इक बार तो मुझे कहा होता
कष्ट तेरे अंतिम पल के
कुछ मैंने भी तो सहा होता।
कष्ट तेरे...........
कुछ मैंने...........
#मालतीमिश्रा
माँ पर आप की रचना बहुत ही लाजवाब है।
जवाब देंहटाएंवाकई माँ के बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है।
नीतू जी आभारी हूँ आप हमेशा हौसला बढ़ाती हैं🙏🙏
हटाएंअंतर मन तक नम कर गई मीता आपकी ये वेदना
जवाब देंहटाएंहृदय के उद्गगार है ये
ये कोई कवीता नही,
मां संग बिछोह है
कोई शब्दों का श्रृंगार नही।
मां को सादर श्रृद्धानजली
मीता आप तो सब समझती हैं,🙏🙏
हटाएंएक बेटी के अंतस का ज्वार है जो निशब्द कर देता है | माँ का जीवन से जाना कोई छोटी बात नही होती माँ की पुण्य स्मृति को शत शत नमन |
जवाब देंहटाएंरेनू जी आभार🙏🙏
हटाएंमाएं ऐसी ही होती हैं ...
जवाब देंहटाएंअपने कष्ट भूल कर बस बच्चों की चिंता करती हैं ... उन्ही के संसार में जीती हैं ....