शुक्रवार

'इंतजार' की समीक्षा



इंतजार अतीत के पन्नों से
कहानीकार मालती मिश्रा
समीक्षक डॉ ज्योत्सना सिंह
समदर्शी प्रकाशन
संस्करण (प्रथम) जून 2018

कहानी गद्य की अति महत्वपूर्ण विधा है,कहानी को सुनने और सुनाने की परंपरा बहुत प्राचीन है। हमारे देश में कहानियों की बहुत समृद्ध परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों  पुराणों तथा ब्राह्मण ग्रंथों में वर्णित कहानियां प्राप्त होती है जिनमें यम-यमी 'पुरुरवा-उर्वशी, नल-दमयन्ती, दुष्यंत-शकुन्तला,आदि । इसके बाद वीर राजाओं के साहस शौर्य, न्याय, वैराग्य त्याग आदि की कहानियां प्रायः सुनने को मिलने लगी। संस्कृत साहित्य के बाद हिंदी साहित्य में भी कहानी लेखन की परंपरा का निर्वहन बखूबी किया गया है इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए युवा लेखिका मालती मिश्रा ने 13 कहानियों के संग्रह को अपने अनुभवों की स्याही से भावनाओं की लेखनी के साथ समसामयिक विषयों के चिंतन को बखूबी उकेरा है
परम सम्माननीय वरिष्ठ साहित्यकार रामलखन शर्मा जी ने बहुत सुन्दर भूमिका लिखी है उनके द्वारा यह पुस्तक प्राप्त हुई,बहुत आभारी हूँ ।
इस कहानीं संग्रह में ऐसा प्रतीत होता है कि लेखिका समाज के आसपास के वातावरण में घटित होने वाली घटनाओं से अत्यधिक प्रभावित है,प्रथम कहानीं इंतजार का सिलसिला, बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है बेटे की वाट जोहते बूढ़े माँ बाप ,फर्ज निभाने वाला मित्र, अंतरात्मा को झकझोर देने वाली कहानीं है।
दूसरी कहानीं शिक़वे- गिले, मात्र संदेह के आधार पर दो सहेलियों के मध्य उत्पन्न हुए गिले शिक़वे और सुखान्त प्रणय की कल्पना को प्रस्तुत करती कहानीं। तीसरी कहानीं परिवर्तन जिसमें कानून व्यवस्था के साथ खिलबाड़ करने वाले युवक और अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित पुलिस कर्मियों के परिवार जनों और उनकी समस्याओं का बहुत सटीक चित्रण किया है आठ साल की बच्ची की मनोदशा ,उसका डर , एवं विचार मन्थन को लेखिका ने खूब सराहनीय वर्णन किया है। चौथी कहानीं वापसी की ओर कहानीं में  काका-काकी का निश्छल प्रेम समर्पण ,विजय का त्याग, ग्रामीण समाज की अशिक्षित दकियानूसी सोच और संकीर्ण मानसिकता,का समन्वित चित्रण किया गया है। पाँचवी कहानीं दासता के भाव ,यह मुंशी प्रेमचंद की कहानियों से प्रभावित कल्पना प्रतीत हो रही है। आज समाज में बहुत परिवर्तन हो चुका है आज पूरा सवर्ण समाज ही शोषित है। एक स्त्री पात्र दीदी और मास्टर जी की लड़की के आत्मविश्वास और साहस की कहानीं है, जिसके माध्यम से कहानीं एक  मोड़ पर समाप्त करना लेखिका के लेखन की कार्यकुशलता का परिचायक है। छठवीं कहानीं फैंसला विवशताओं से घिरी, सच्चे प्रेम की चाहत में दोहराये पर खड़ी ,संघर्षों से जूझती हुई स्त्री के मन की पीड़ा का बहुत स्वाभाविक चित्रण है इस प्रकार यह कहानी वर्तमान युग मे बिखरते मध्यवर्गीय परिवार की त्रासदी तथा मूल्यों के विघटन की समस्या पर प्रकाश डालती है।
सातवीं कहानीं मीरा, मीरा और मुन्नी के माध्यम से लेखिका ने हमारे संस्कारों का स्मरण कराया है आज आधुनिक दिखने की चाहत में माता-पिता भी बच्चों के प्रति लापरवाही बरतने लगते हैं जिनके दूरगामी परिणाम बहुत घातक साबित होते हैं जिसके कारण परिवार टूटकर बिखर जाते हैं, जैसा कि मीरा के साथ हुआ है,अच्छे संस्कार सदैव समाज में सम्मान दिलाते हैं।आठवीं कहानीं अपराध शिक्षाप्रद कहानीं है कहानीं के प्रारंभ में एक बुजुर्ग का एक अजनबी  लड़की से  पूछना ...कौन हो बिटिया यहां अकेली काहे बैठी हो , एवं फूँक मारकर अलाव जलाना, धरा की माँ एवं रिक्शे वाले की आंचलिक भाषा ,इन सबका बड़ा ही स्वाभाविक चित्रण है। समाज की रूढ़िवादी नियमों से एक स्त्री जूझती है जो बहुत छोटी उम्र की है लेखिका ने बहुत अच्छी कल्पना की है  प्रेरणादायी कहानी है ।नवीं कहानीं कसम... लेखिका ने कसम कहानी के अंदर अच्छा विषय चयन किया छोटी-छोटी बात में लोग झूठ बोलते हैं कसम देते हैं खा मेरी कसम ,या मेरे सर पर हाथ रखो, झूठ बोल रही हो तो मेरा मरा मुँह देखो, इस तरह के प्रकरण प्रायः  ,घर परिवार में पड़ोस में, समाज के हर वर्ग में स्वाभाविक रूप से देखने को सहज ही देखने को मिल जाते हैं। इस कहानीं में दिव्या के मन में कसम को लेकर पीड़ा आज भी बैठी हुई है। निर्दोष व्यक्ति अपने को साबित करने के लिए कसम खाता है, और झूठा व्यक्ति अपनी बात का प्रभाव जमाने के लिए झूठी कसम खा जाता है इसका दुष्प्रभाव बड़ा ही घातक होता है, ऐसी स्थिति में सच्चाई कैसे साबित हो कहानीं यथार्थ प्रतीत हो रही है लेखिका अपने आसपास के वातावरण से ज्यादा प्रभावित है।दशवीं कहानीं संदूक में बंद रिश्ते भावनात्मक रिश्तो में बंधी भाई बहन के रिश्ते की बहुत हृदयस्पर्शी कहानी है । यदि स्त्री अपने जीवन से संबंधित कोई भी निर्णय लेती है तो उसका परिणाम उसे अकेले भुगतना पड़ता है, पूर्व कहानीं में भी यही बिषय था ,धरा ने बाल विवाह का ,और शराबी पति से शादी करने का, विरोध किया था, और अपना कैरियर बनाने के लिए,घर से बाहर चली गयी थी, इन सामाजिक बुराइयों का विरोध करने पर उसे क्या मिला ? बल्कि घर वालों ने धरा का त्याग कर दिया।इस कहानीं में प्रथा ने अपनी मर्जी के लड़के से ब्याह किया घर वालों ने ,प्रथा को छोड़ दिया अलग-अलग धरातल पर लिखी गई दोनों कहानियां स्त्री जीवन के संघर्षों की गाथा है।ग्यारहवीं कहानीं "शराफत के ऩकाब" का प्रारंभ एक स्त्री के सौन्दर्य और उसके आवरण की खूबसूरत प्रस्तुति के साथ प्रारम्भ होता है यह एक ऐसी स्त्री जिसका जितना बाहरी सौन्दर्य है उससे कहीं अधिक आन्तरिक सौन्दर्य है, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाली स्त्री अपने पराऐ के भेद भाव को छोड़कर एक छोटी सी बच्ची को न्याय दिलाने के लिए अपने पति को कटघरे में पहुँचा देना निश्चय ही एक स्त्री के लिए बहुत बड़ा कदम है ,यदि समाज की प्रत्येक स्त्री अपराध के खिलाफ आवाज उठाने का संकल्प ईमानदारी से लेती है तो निश्चय ही समाज का बहुत बड़ा हिस्सा निरपराध हो जायेगा अर्थात अपराध मुक्त हो जायेगा। जहाँ समाज में एक ओर कीर्ति जैसी महिलाएं हैं वहीं दूसरी ओर विकृत मानसिकता वाली कीर्ति की चाची जैसी महिलाएं भी इसी समाज का हिसाब है इस कहानीं से एक बात बड़ी स्पष्ट है अपराध के लिए पुरुष ही नहीं,स्त्रियां भी उतनी ही दोषी है। बारहवीं कहानीं का नाम है अधूरी कहानी प्राकृतिक दृश्यों का बहुत का सुन्दर चित्रण ... कोहरे के वातावरण ने पृथ्वी को ढक लिया था मानो पूरा आसमान पिघलकर धरती पर आ गया हो, कहीं-कहीं वृक्षों के झुंड मानो कोहरे के पर्दे को थोड़ा सरका कर नई नवेली दुल्हन की भांति बाहर पगडंडी के किनारे खेलते शिशुबृन्द रूपी झाड़ियों की दूर तक फैली कतार को इसीलिए देखते कि कहीं यह पिघलता आसमान इन शिशुओं को अपने साथ बहाकर ना ले जाए। गलतफहमियों की शिकार,शैला पन्द्रह वर्ष बाद वापस लौटी अपने गाँव, जहाँ तलाशती अपना बचपन ,अपनी माँ ,अपने लोग,सूने घर में... मिलता पड़ोसन काकी का अपनापन निश्चल प्रेम। लेखिका गाँव की संस्कृति से ,गाँव की बस्तियों से, वहाँ की भाषा से ,इस्तेमाल की जाने वाली गाँव की वस्तुओं से भलीभांति वाकिफ है इसीलिए जरूरत के मुताबिक खूब अच्छा इस्तेमाल किया है जिनमें मिट्टी के तेल की ढिबरी जलाना, घरों की देहरी पर दीपक रखना, मिट्टी के मटके ,चारपाई ,एलुमिनियम के बर्तन,अनाज रखे जाने वाली मिट्टी की डेहरी,बांस के दरवाजे,इत्यादि।अन्तिम कहानीं मेरी दादी इस कहानीं के नाम से ही दादी माँ के प्यार का सुखद स्मरण हो जाता है कहते हैं कि दादी तो अपने ब्याज को मूल रकम से अधिक प्यार करती है दादी- दादा का अनमोल स्नेह उम्र के हर पड़ाव पर याद आता है, सटीक चित्रण किया है। वृद्धावस्था की विवशताओं एवं वृद्धों की मनोदशा का प्रभाव बच्चों पर बहुत गहरी छाप छोड़ता है।प्रवाहमय भाषा के इस्तेमाल से कहानियों को रोचक बना दिया है. वैसे तो संग्रह की ज़्यादातर कहानियां अच्छी हैं. पाठक को सोचने के लिए ज़मीन देती हैं पर कहीं-कहीं विषयों का दोहराव दिखाई देता है,पर प्रत्येक कहानीं कहीं न कहीं सामाजिक जीवन की विसंगतियों पर तीव्र प्रहार करती है। गांवों में निम्न जातियों के उपेक्षित लोगों की दशा का ,स्त्री शोषण एवं मुक्ति की कामना,ग्राम्य जीवन, लेखिका के अनुभवों की श्रृंखला में बेहिसाब अनुभव का लेखा जोखा है "इंतजार अतीत के पन्नों से"
लेखिका का यह कहानीं संग्रह निश्चय ही हिंदी साहित्य जगत के लिए अनुपम कृति साबित होगा सभी कहानियां लेखिका के अनुभवों के निचोड़ से सुसज्जित हैं कहीं पर भी ना लेखन में त्रुटि है और ना ही बनावटीपन है निश्चय ही लेखिका न ेसमृद्ध लेखन की परम्परा को बखूबी निभाया है यहाँ चिन्तन है ,संदेश है ,समाज को आइना दिखाने की क्षमता है। कहानीं के पात्र विश्वसनीय लगते हैं ग्रामीण परिवेश का बहुत सुन्दर वर्णन है अद्भुत कल्पना शक्ति सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है ...लेखिका के उज्जवल भविष्य की मंगलमयी कामनाओं सहित... ।।

डॉ ज्योत्सना सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
जीवाजी विश्वविद्यालय
ग्वालियर मध्यप्रदेश
474011
 9425339116

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
    हमें यह किताब ज़रूरी है
    कैसे प़ापत हो

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    1. http://dl.flipkart.com/dl/intjar/p/itmf8t5skgxg46be?pid=9789388049009&cmpid=product.share.pp
      ये फ्लिपकार्ट का लिंक है, इसपर available है।
      प्रतिक्रिया के लिए आभार आदरणीय, पुस्तक प्राप्त होने पर सूचित अवश्य करें।

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  2. वाह मालती जी ! बहुत बढ़िया आपकी लगन देखकर अत्यंत प्रसन्नता हुई....ढ़ेरों शुभकामनाएं

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    1. आपकी शुभकामनाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा बन नित प्रेरित करेंगी। सादय आभार आ०

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