जाग री तू विभावरी..ढल गया सूर्य संध्या हुई अब जाग री तू विभावरी मुख सूर्य का अब मलिन हुआ धरा पर किया विस्तार रीलहरा अपने केश श्यामल तारों से उन्हें सँवार री ढल गया सूर्य संध्या हुई अब जाग री तू विभावरी पहने वसन चाँदनी धवल जुगनू...
जाग री तू विभावरी

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कविता