रविवार

'दलित' एक राजनीतिक शब्द

'दलित' एक राजनीतिक शब्द
'दलित' यह एक ऐसा शब्द है जिसने देश को बाँटना शुरू कर दिया है,  अब से कुछ वर्ष पहले तक लोग अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते थे लोग चाहते थे कि उन्हें उनके नाम से जाना जाए, इसके लिए उन्हें कठोर परिश्रम, अनगिनत मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता था किंतु जब...

गुरुवार

राष्ट्रद्रोह आंदोलन की चक्की में देश पिसता है

राष्ट्रद्रोह आंदोलन की चक्की में देश पिसता है
इतनी शक्ति कांग्रेस ने गर ब्रिटिश काल मे दिखाई होती, देश को आजाद कराने में फिर सौ साल नहीं गँवाई होती| सत्ता की लालसा प्रबल इतनी है हित अहित न दिखता है, राष्ट्रद्रोह और आंदोलन की चक्की में देश पिसता है | देशद्रोह के नारे को वैचारिक अभिव्यक्ति बताते हैं, देशभक्ति...

मंगलवार

सरहद पर भारत के वीर जिस ध्वज का आन बढ़ाते हैं

सरहद पर भारत के वीर जिस ध्वज का आन बढ़ाते हैं
देश बर्बाद करने की जिसने भी जिद ये ठानी है आवाम नही वो देशद्रोही है ये बात उसे बतानी है  सरहद पर भारत के वीर जिस ध्वज का आन बढ़ाते हैं  घर के भीतर उसी तिरंगे को सत्ता के लोभी जलाते हैं  राष्ट्रद्रोह को खादी धारी विचारों की अभिव्यक्ति बता करके  जहाँ...

रविवार

आरक्षण बनाम राजनीति

आरक्षण बनाम राजनीति
      आरक्षण के लिए आंदोलन की आड़ में अपना स्वार्थ साधना कोई नई बात नहीं है ऐसा तो यहाँ बार-बार होता रहा है और आगे भी होता ही रहेगा परंतु सवाल यह उठता है कि क्या ये आंदोलन करने वाले सचमुच आम जनता ही है, हमारे देश की आम जनता कब से इतनी संवेदनाहीन हो गई?...

बुधवार

A different perspective on the JNU issue. Think about it. Take a hard look and you will notice JNU drama is timed with the "Make in India week" initiative in Mumbai. This is the largest such event ever hosted in India and foreign governments, delegates and businesses...

शुक्रवार

ओस की गीली चादर सुखाने लगा है,  सूरज देखो मुखड़ा दिखाने लगा है | पत्तों पे बिखरे पड़े हैं ओस के जो मोती,  अरुण उनकी शोभा बढ़ाने लगा है | शीत लहरों से छिपाते थे मुखड़ा जो पंखों में,   वो खगकुल भी खुश होकर गाने लगा है | ठंड से ठिठुर रजाई से झाँकता...
ओस की गीली चादर सुखाने लगा है,  सूरज देखो मुखड़ा दिखाने लगा है | पत्तों पे बिखरे पड़े हैं ओस के जो मोती,  अरुण उनकी शोभा बढ़ाने लगा है | शीत लहरों से छिपाते थे मुखड़ा जो पंखों में,   वो खगकुल भी खुश होकर गाने लगा है | ठंड से ठिठुर रजाई से झाँकता...

मंगलवार

दिल ढूँढ़ता है...

दिल ढूँढ़ता है...
मँझधार में फँसकर किनारों को ढूँढ़ते हैं पतझड़ के मौसम में बहारों को ढूँढ़ते हैं | दिल ढूँढ़ता है उसे जिसे पाना नहीं आसाँ, क्या-क्या जतन किया बताना नहीं आसाँ  छूने को तेरा साया उन दरो-दिवारों को ढूँढ़ते हैं,  पतझड़ के....... देखे थे हमने सपने जो हद...

रविवार

राजनीति का शस्त्र-'धार्मिक असहिष्णुता'

राजनीति का शस्त्र-'धार्मिक असहिष्णुता'
      हमारे देश ने आज विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में बहुत उन्नति हासिल किया है....परंतु इन क्षेत्रों की उपलब्धियाँ लोगों तक पहुँचते-पहुँचते बहुत समय लग जाता है और फिरभी बहुत बड़ी संख्या में लोग इन उपलब्धियों से अनजान ही रह जाते हैं |किंतु भारत में बिना...

सोमवार

जब मैं छोटा बच्चा था...

जब मैं छोटा बच्चा था...
जब मैं छोटा बच्चा था तो सबके घर में घुसता था अब जब मैं बड़ा हो गया हूँ सबके राज्यों में घुसता हूँ जब मैं छोटा बच्चा था तो मम्मी-पापा से पिटता था अब जब मैं बड़ा हो गया हूँ तो मैं जनता से पिटता हूँ जब मैं छोटा बच्चा था तो मम्मी का काजल लगाता था अब जब मैं बड़ा हो गया हूँ जनता...