बुधवार

चाह मेरे मन की

चाह मेरे मन की
संसार की बगिया का मैं भी खिलता हुई प्रसून हूँ मैं भी सुंदर और सुरभित नवल प्रफुल्लित मुस्कान हूँ उपवन में सौरभ फैलाने को मैं भी तैयार हूँ अनचाहे भँवरों सैय्यादों की नजरों का शिकार हूँ तोड़ने को डाली से बढ़ते हाथ बारंबार हैं हर हाथ मुझको मसल कर फेंकने को तैयार है पा...

मंगलवार

इक हाथ में मटकी दूजे में रई है रूप अधिक मनभावन भई है स्वर्ण पात्र माखन को भरो है बंसी भी इक ओर धरो है कान्हा तेरो रूप सलोनो देख-देख मन पुलकित भयो है। बदरा ऊपर आस लगाए उमड़-घुमड़ तोहे छूवन चाहे भोर किरन भई बड़ भागी अपनी आभा को तुम फैलायो श्याम वर्ण काया पर...

सोमवार

आज मैं आजाद हूँ

आज मैं आजाद हूँ
उड़ान भरने को स्वच्छंद गगन में तोल रही पंखों का भार भूल चुकी हूँ पंख फैलाना पंखों में भरना शीतल बयार होड़ लगाना खुले गगन में छू लेने को अंबर का छोर निकल पड़ी हूँ तोड़ के पिंजरा तोड़ दिया है भय की डोर फँसी हुई थी अपने ही  आकांक्षाओं के बुने जाल में अब...

बुधवार

विचाराभिव्यक्ति की आजादी

विचाराभिव्यक्ति की आजादी
"आजादी" कितना महान, कितना मधुर और कितना प्रिय लगता है यह शब्द। आजादी के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते... मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी सदैव आजादी ही पसंद करते हैं। कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने अपनी रचना के द्वारा व्यक्त भी किया है "हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे"...

सोमवार

अरुण रथ आया है...

अरुण रथ आया है...
रंग दे अपने रंग में जग को ऐसी किसी में ताब कहाँ सूरज न घोले सोना जिसमें ऐसी कोई आब कहाँ  भर-भर कर स्वर्ण रस से गागर तरंगिनी मे उड़ेल दिया  उषा तुमने अपनी गागर से जल-थल का सोने से मेल किया हरीतिमा भी रक्त वर्ण हो अपने रंग को भूल गई ओढ़ ओढ़नी स्वर्ण...

रविवार

नमन करो उस धीरव्रती को

नमन करो उस धीरव्रती को
जिसका पूरा विश्व आज बना दीवाना       उस लोकप्रिय जनमानस प्रिय पर             देश के शत्रु साधते निशाना चलता जिसके पीछे इक युग        जिसने रचा इतिहास नया              ...

कानून के रक्षक और समय

कानून के रक्षक और समय
बस सांस ली मुझे इतना सुकून मिल रहा था जैसे कि कितने लम्बे समय के अंतराल के बाद मैने खुली हवा में सांस लिया हो, थोड़ी देर पहले गाड़ियों के जो हॉर्न मुझे अत्यंत कष्टदायी प्रतीत हो रहे थे वही अब मुझे निष्क्रिय लग रहे हैं, मैं पिछले एक घंटे से ट्रैफिक में फंसी हुई थी... जब...

शुक्रवार

क्यों......

क्यों......
जब से मिली मैं उस कृशकाय  निर्बल और असहाय  स्वयं ही अपनी आत्मा पर बोझ सम  उस निरीह मृतप्राय काया से.... एक ही प्रश्न बार-बार  कर रहा मेरे मस्तिष्क पर प्रहार  क्यों??? क्यों..... गलत सही की परिभाषाएँ नही होतीं सभी के लिए एक समान  क्यों फँसता...

सोमवार

भारत की जय बोलेंगे

भारत की जय बोलेंगे
आजादी की बधाई देकर हर व्यक्ति हर्षित होता है हम स्वतंत्र देश के वासी हैं यह सोचते गर्वित होता है पर आजादी की कीमत क्या कोई जाकर उनसे पूछे जिसने इसको पाने के लिए अपने लहू से धरती सींचे होते न अगर सुखदेव भगत सिंह तो लाखों शेर न जगते चंद्रशेखर आजाद न होते तो  हम...

प्रकृति ने तिरंगा फहराया

प्रकृति ने तिरंगा फहराया
प्राचीर को भेद कर अश्वत्थ ऊपर उठ रहा मानों हाथों में पकड़े भगवा ध्वज धरणी ने भी कर्तव्य निभाया हरियाली दे हरा रंग बिखराया सागर क्यों कर रहता पीछे मध्य में श्वेत पटल वो खींचे हम मनुष्यों को पीछे छोड़ प्रकृति ने स्वतंत्रता दिवस मनाया धरती अंबर ने मिलजुल कर देखो...

गुरुवार

नई शिक्षण पद्धति में पिसता अध्यापक

नई शिक्षण पद्धति में पिसता अध्यापक
सी०बी०एस०ई० की नई शिक्षण पद्धति सी०सी०ई०पैटर्न (CCE pattern) continuous comprehensive evaluation (सतत व्यापक मूल्यांकन) सुनने और पढ़ने में बहुत ही प्रभावशाली लगता है, ऐसा लगता है कि सचमुच यह छात्रों के  बहुआयामी विकास के लिए बहुत ही उपयोगी और महत्वपूर्ण कदम है। बच्चों...

बुधवार

जाग नारी पहचान तू खुद को

जाग नारी पहचान तू खुद को
नारी की अस्मिता आज क्यों हो रही है तार-तार, क्यों बन राक्षस नारी पर करते प्रहार यूँ बारम्बार। क्यों जग जननी यह नारी जो स्वयं जगत की सिरजनहार, दुष्ट भेड़ियों के समक्ष क्यों पाती है खुद को लाचार। क्यों शिकार बनती यह जग में नराधम कुंठित मानस का, क्यों नहीं बनकर...