उषा की लहराती चूनर से
अंबर भया है लाल
तटिनी समेटे अंक मे
सकल गगन विशाल
सकल गगन विशाल
प्रकृति छटा बिखरी है न्यारी
सिंदूरी सी चुनरी मे
दुल्हल सी भयी धरा हमारी
रंग-बिरंगे पुष्पों ने सजा दिया
पथ दिवा नरेश का
मधुकर की मधुर गुनगुन ने
खोल दिया पट कलियों का
मुस्काते फूलों से सज गई है
हर क्यारी-क्यारी
कुहुक-कुहुक कर गीत सुनाती
कोयल फिरे है डारी-डारी
मंदिरों में घंटे की टन-टन
कानों में पावनता घोले
माझी के आवन की बेला
नदी में नैया इत-उत डोले
मालती मिश्रा
0 Comments:
Thanks For Visit Here.