कान्हा तेरो रूप सलोना
मेरो मन को भायो
इत-उत बिखरे मोर पंख को
तुमने भाल चढायो
देखि-देखि तेरो रूप सलोनो
मेरो मन बलि-बलि जायो
मधुर बँसुरिया है बड़ भागी
जेहि हर पल अधर लगायो
मन ही मन उनसे जले गोपियाँ
जिन राधे संग रास रचायो
कान्हा तेरो रंग सलोना
मेरो मन हर जायो
करत ठिठोली गोपियन संग
मटकी फोड़न धायो
सुन ओरहन जसुमति जब खीजे
नए-नए स्वांग रचायो
कान्हा तेरो ढंग अति न्यारो
मेरो मन तुझमें रमायो।
मालती मिश्रा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.12.16 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2557 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग विर्क जी बहुत-बहुत आभार
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