दूर के ढोल सुहाने...
जीवन में कुछ लोग
बहुत खास होते हैं
पर जो खास होते हैं
वो कब पास होते हैं
और जो पास होते हैं
वो कब कहाँ खास होते हैं
मानव की फितरत है यही
कि वो हमेशा अनदेखे की
तलाश करता है
और जो पास होता है
उसे अनदेखा करता है
वह हमेशा
परछाइयों के पीछे भागता है
और जो उसके पास होता है
उसकी परछाइयों से भागता है
मानव हमेशा अप्राप्य को
प्राप्त करने का प्रयास करता है
और जो उसे प्राप्त है,
जो उसके पास है,
उसकी अहमियत से अन्जान होता है
उसे दूर की चीज कीमती
और अपनी कीमती वस्तु भी
निरर्थक और सस्ती लगती है
यह मनुष्य का
स्वाभाविक गुण होता है
कि उसे दूर के ढोल ही
सुहाने लगते हैं
अपने तो बस बेमाने और
पुराने लगते हैं
वह सदा मृगतृष्णा
के पीछे भागा है
अपनी बहुमूल्य निधि
गँवाकर ही वह
जागा है
अपनी अमूल्य निधि
खोकर ही इसने
उसके मूल्य को जाना है
संग रहते अनमोल रिश्तों
के महत्व को भी
कहाँ यह जाना है
मिट्टी में मिल जाने पर ही
व्यक्ति के गुणों को यह
पहचाना है।
वैसे तो मानव के पास
गुणों का खजाना है
पर समय निकल जाने के
उपरांत ही सदा
इसने उनको पहचाना है
इसीलिए तो कहते हैं
मनुष्य के लिए हमेशा से
दूर का ढोल ही सुहाना है।
मालती मिश्रा
जीवन में कुछ लोग
बहुत खास होते हैं
पर जो खास होते हैं
वो कब पास होते हैं
और जो पास होते हैं
वो कब कहाँ खास होते हैं
मानव की फितरत है यही
कि वो हमेशा अनदेखे की
तलाश करता है
और जो पास होता है
उसे अनदेखा करता है
वह हमेशा
परछाइयों के पीछे भागता है
और जो उसके पास होता है
उसकी परछाइयों से भागता है
मानव हमेशा अप्राप्य को
प्राप्त करने का प्रयास करता है
और जो उसे प्राप्त है,
जो उसके पास है,
उसकी अहमियत से अन्जान होता है
उसे दूर की चीज कीमती
और अपनी कीमती वस्तु भी
निरर्थक और सस्ती लगती है
यह मनुष्य का
स्वाभाविक गुण होता है
कि उसे दूर के ढोल ही
सुहाने लगते हैं
अपने तो बस बेमाने और
पुराने लगते हैं
वह सदा मृगतृष्णा
के पीछे भागा है
अपनी बहुमूल्य निधि
गँवाकर ही वह
जागा है
अपनी अमूल्य निधि
खोकर ही इसने
उसके मूल्य को जाना है
संग रहते अनमोल रिश्तों
के महत्व को भी
कहाँ यह जाना है
मिट्टी में मिल जाने पर ही
व्यक्ति के गुणों को यह
पहचाना है।
वैसे तो मानव के पास
गुणों का खजाना है
पर समय निकल जाने के
उपरांत ही सदा
इसने उनको पहचाना है
इसीलिए तो कहते हैं
मनुष्य के लिए हमेशा से
दूर का ढोल ही सुहाना है।
मालती मिश्रा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 07 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंयशोदा अग्रवाल जी बहुत-बहुत आभार।
हटाएंयशोदा अग्रवाल जी बहुत-बहुत आभार।
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार सुशील कुमार जी।
हटाएंबहुत-बहुत आभार सुशील कुमार जी।
हटाएंसच कहा है ... पास की कद्र नहीं है इंसान को मरीचिका के पीछे भागता है ... गहरे भाव ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर पधारकर अपने अनमोल विचारों से अवगत कराने और मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए मैं आपकी आभारी हूँ दिगंबर नासवा जी। बहुत-बहुत आभार।
हटाएंब्लॉग पर पधारकर अपने अनमोल विचारों से अवगत कराने और मेरा उत्साह बढ़ाने के लिए मैं आपकी आभारी हूँ दिगंबर नासवा जी। बहुत-बहुत आभार।
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8 - 12- 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2550 में दिया जाएगा ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग विर्क जी बहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंकरीब के लोगों को समझ लिया तो जग जीत लिया ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
कविता रावत जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया।
हटाएंकविता रावत जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत आभार आदरणीया।
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