शनिवार

जब से तुम आए सत्ता में (व्यंग्य)

जब से तुम आए सत्ता में
एक भला न काम किया
क्यों न तुम्हारी करें खिलाफत
हर दिशा में हलचल मचा दिया
आराम पसंद तबके को भी
काम में तुमने लगा दिया
चैन की बंसी जहाँ थी बजती
मचा वहाँ कोहराम दिया

क्या कहने सरकारी दफ्तर के
आजादी से सब जीते थे
बिना काम ही चाय समोसे
ऐश में जीवन बीते थे
उनकी खुशियों में खलल डालकर
चाय समोसे बंद किया
वो क्यों न तुम्हारी करें खिलाफत
जिन्हें समय का पाबंद किया
चैन की बंसी जहाँ थी बजती..
मचा वहाँ कोहराम दिया..

बहला-फुसलाकर लोगों को
अपनी जागीर बनाई थी
पर सेवा के नाम पर
विदेशों से करी कमाई थी
उनकी सब जागीरों पर
ताला तुमने लगा दिया
वो क्यों न तुम्हारी करें खिलाफत
जिनकी जागीरें मिटा दिया
चैन की बंसी........
मचा........

बड़े-बड़े घोटाले करके
भरी तिजोरी घरों में थी
स्विस बैंक में भरा खजाना
जिन पर किसी की नजर न थी
बदल रुपैया सारे नोटों को
रद्दी तुमने बना दिया
क्यों न तुम्हारी करें खिलाफत
ख़जानों में सेंध लगा दिया
चैन की......
मचा .........

ऊपर से नीचे तक सबके
निडर दुकानें चलती थीं
बिना टैक्स के सजी दुकानें
नोटें छापा करती थीं
ऐसी सजी दुकानों का
शटर तुमने गिरा दिया
क्यों न तुम्हारी करें खिलाफत
टैक्स सभी से भरा दिया
चैन की बंसी........
मचा वहाँ........

बिन मेहनत रेवड़ियों की जगह
नए आइडिया तुमने बांटी है
बड़े रसूख वालों की भी
जेबें तुमने काटी हैं
राजा हो या रंक देश का
सबको लाइन में खड़ा किया
वो क्यों न तुम्हारी करें खिलाफत
धूल सड़कों की जिन्हें चटा दिया
चैन की बंसी.......
मचा वहाँ.........

क्यों न तुम्हारी करें खिलाफत
ऐसा क्या तुमने काम किया
चैन की बंसी जहाँ थी बजती..
मचा वहाँ कोहराम दिया..

मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

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2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह मालती जी | बहुत खूब ! क्या धारदार लेखनी चलाई है अकर्मण्यता से भरे शासक के लिए | सारी पोल खोल के रख दी | सीधे सरल शब्दों में बहुत ही शानदार व्यंग ! सराहना से परे | लयबद्ध गीत सा जिसे पढो तो छंदात्मक रचना सी लगती है |

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