बुधवार

लेखनी स्तब्ध है

लेखनी स्तब्ध है
मिलता न कोई शब्द है

गहन समंदर भावों का
जिसका न कोई छोर है,
डूबते-उतराते हैं शब्द
ठहराव पर न जोर है।
समझ समापन चिंतन का
पकड़ी तूलिका हाथ ज्यों,
त्यों शब्द मुझे भरमाने लगे
लगता न ये आरंभ है।
लेखनी स्तब्ध है
मिलता न कोई शब्द है।

भावों का आवागमन
दिग्भ्रमित करने लगा
शब्दों के मायाजाल में
सहज मन उलझने लगा।
बढ़ गईं खामोशियाँ
जो अंतर को उकसाने लगीं,
निःशब्द शोर मेरे हृदय के
ये नहीं प्रारब्ध है।
लेखनी स्तब्ध है
मिलता न कोई शब्द है।

चाहतों के पंख पे
उड़ता चला मेरा भी मन,
आसमाँ से तोड़ शब्द
भर लूँगी मैं खाली दामन।
शब्द बिखरने लगे
रसनाई सूखने लगी,
देखकर ये गत मेरी
मेरा दिल शोक संतप्त है।
लेखनी स्तब्ध है
मिलता न कोई शब्द है।

जीवन के अनोखे अनुभव
कुछ मधुर तो कसैले कई
भाव इक-इक हृदय घट में
पल-पल मैंने समेटे कई
वो भाव अकुलाने लगे
बेचैनी दर्शाने लगे
बयाँ करूँ कैसे उन्हें मैं
जो हृदय में अब तक ज़ब्त हैं
लेखनी स्तब्ध है
मिलता व कोई शब्द है........
मालती मिश्रा

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.05.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2987 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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    उत्तर
    1. आ० दिलबाग जी बहुत-बहुत आभार🙏🏼

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  2. दर्द का हद से गुजर जाना
    समझो वे आवाज हो जाना !

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    उत्तर
    1. आपसे भूल कभी हो सकती नहीं, सदा ही आपने सत्य को पहचाना।
      आभार सखी सचमुच आप हमेशा रचना की आत्मा को पहचान लेती हो। 🙏🙏🙏🙏🙏

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. बहुत बार ऐसा होता है कि मन कि वेदना को कोई उचित शब्द नहीं मिल पाता.
    लिखना चाहते हैं लेकिन लिख नहीं पाते.
    उसी बावना को आपने रचना का रूप दे दिया...वाह.


    कविता और मैं

    .

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  5. बहुत सुन्दर रचना...
    बयाँ करूँ कैसे उन्हें मैं
    जो हृदय में अब तक ज़ब्त हैं
    लेखनी स्तब्ध है
    मिलता व कोई शब्द है..
    वाह!!!

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  6. पीड़ा से उलझते मन का पराकाष्ठा को शब्दों में पिरोती मर्मस्पर्शी रचना प्रिय मालती जी | सस्नेह शुभकामनाये |

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार रेनू जी🙏🙏 आपकी प्रतिक्रिया ने लेखनी को प्रेरित किया।🙏

      हटाएं

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