रविवार

पत्रिका 'आर्ष क्रान्ति पर मेरे समीक्षात्मक विचार'

*आर्ष क्रांति पर मेरे समीक्षात्मक विचार*

कोरी कल्पनाओं और राजनीति के प्रभाव से जिस प्रकार आज समाज दिग्भ्रमित हो रहा है ऐसे में 'आर्य लेखक परिषद्' द्वारा प्रकाशित 'आर्ष क्रांति' अंधेरे में एक मशाल का कार्य करने में सक्षम है। इसका प्रथम अंक ही बेहद आकर्षक और ज्ञान का स्रोत है। जो लोग पढ़ने में रुचि रखते हैं उन्हें पठन योग्य ऐसी सामग्री नहीं उपलब्ध हो पाती जो उनका सही मायने में ज्ञानवर्धन और पथ-प्रदर्शन कर सकें। वेदों में उपलब्ध ज्ञान का तो बहुधा विकृत रूप ही प्राप्य होता है। *आर्ष क्रान्ति* का प्रथम अंक पढ़कर एक आशा जागी है कि संभवतः इस पत्रिका से हमें बहुत कुछ ऐसा प्राप्त होगा जिससे हमारे वेदों में निहित ज्ञान सही रूप में हम तक पहुँचेगा।
पत्रिका का सम्पादकीय (आ० वेदप्रिय शास्त्री द्वारा लिखित) ही इतना रोचक और प्रभावी है कि पाठक स्वतः आगे पढ़ने को बाध्य होता है। *समाज का सर्वांगीण विकास कैसे हो?* शीर्षक ही इसका समाज के प्रति चिंतनशील दृष्टिकोण इंगित करता है, इस लेख में लेखक ने प्राचीन काल में भारतीय समाज के संगठन का आधार तत्पश्चात् उसमें परिवर्तन का समय व आधार, ऋषि दयानंद का प्रादुर्भाव और उनकी मान्यताओं का संतुलित वर्णन किया है।
 *नास्तिक कौन* शीर्षक के अन्तर्गत श्री संत समीर जी द्वारा 'नास्तिक' शब्द के प्रचलित अर्थ से हटकर जिस गूढ़ अर्थ का विवेचनात्मक वर्णन किया गया है वह निःसंदेह पाठक को एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करेगा।
श्री अखिलेश आर्येन्दु जी का लेख *पर्यावरण की समस्या और उसका वैदिक समाधान* हमें न सिर्फ वर्तमान समस्या के प्रति जागरूक करता है बल्कि उसका बेहद प्रभावी और वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित समाधान भी बताता है।
*दयानंद की क्रांति शेष है* के माध्यम से भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने का मार्ग भी दिखाया गया है।
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है और जब व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होगा तभी वह स्वस्थ समाज के निर्माण में सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर सकता है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए *योग क्रांति* शीर्षक में योग व उसके लाभ का वर्णन इसे और प्रभावी बनाता है।
पत्रिका का उद्देश्य वृहद् और प्रशंसनीय है, अतः उद्देश्य पूर्ति के लिए अधिकाधिक लोगों का इससे जुड़ना आवश्यक है इसके लिए इसके प्रचार-प्रसार के माध्यम और उसकी रोचकता पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है साथ ही अन्य सामयिक लेख, कविता, कहानी तथा अन्य साहित्यिक विधाओं का आमंत्रण और प्रकाशन निश्चय ही इसकी गति को तीव्रता प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। पत्रिका से जुड़े सदस्यों का भी समय-समय पर सचित्र संक्षिप्त परिचय देना लोगों को आकर्षित कर सकता है।
कामना करती हूँ कि निकट भविष्य में आर्य लेखक परिषद् का यह महान उद्देश्य (महर्षि दयानंद और वेद को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करना) पूर्ण हो।
मालती मिश्रा 'मयंती'

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