फ्री पीरियड था तो नंदिनी कंप्यूटर लैब में बैठकर बच्चों की कॉपियाँ चेक कर रही थी तभी...
"गुड मॉर्निंग नंदिनी मैम" कंप्यूटर लैब में प्रवेश करते हुए कंप्यूटर टीचर देवेश चौधरी बोले।
"देवेश सर! गुड मॉर्निंग सर, हाऊ आर यू?" देवेश पिछले स्कूल में नंदिनी के सह अध्यापक रह चुके थे इसलिए उन्हें यहाँ देखकर वह खुश हो उठी।
"कैसा लग रहा है यहाँ आपको, मन लग गया या नहीं?"
"सर मेरे लिए यहाँ नया कुछ है ही कहाँ, कई टीचर्स और हर क्लास में कई कई बच्चे सभी तो मेरे लिए वही पुराने टीचर और स्टूडेंट्स हैं और रही रूल्स एंड रेग्युलेशन्स की बात तो आप लोग तो हैं ही मुझे गाइड करने के लिए, फिर मन कैसे नहीं लगेगा।"
"अरे मैम आपको गाइडेंस की जरूरत पड़ेगी ही नहीं, आप खुद इतनी कैपेबल हैं कि आपको किसी की हेल्प की जरूरत पड़ेगी ही नहीं।"
"ऐसा नहीं है सर हर किसी को नई जगह हेल्प की जरूरत होती है।"
दोनों बातें कर ही रहे थे तभी अनुभव सर ने प्रवेश किया।
"कोई प्रॉब्लम तो नहीं मैम?" उन्होंने एक कुर्सी खींचकर बैठते हुए कहा।
"सर वैसे तो कोई प्रॉब्लम नहीं है पर आपसे एक रिक्वेस्ट है...."
"कहिए!"
"सर अगर मुझसे कोई गलती हो तो प्लीज मुझे निःसंकोच बता दीजिएगा।"
"अरे मैम टेंशन फ्री होकर अपना काम कीजिए और अपने तरीके से कीजिए, विश्वास मानिए आपके काम को कोई गलत कह ही नहीं सकता।"
"आप इतना विश्वास करते हैं इसीलिए तो डर लगता है कि कोई गलती न हो जाए, फिर आप ही कहे जाएँगे कि कैसी टीचर लाए हैं।"
"जब मुझे कोई टेंशन नहीं, तो आप क्यों परेशान होती हैं? बिंदास होकर अपने तरीके से कीजिए।" अनुभव सर ने हँसते हुए कहा। घंटी बज गई नंदिनी कॉपियाँ समेटने लगी तथा अनुभव और देवेश अपने-अपने क्लास में चले गए।
नंदिनी जिन-जिन कक्षाओं में पढ़ाती उन कक्षाओं के बच्चे बहुत ही जल्द उससे घुल-मिल गए इसके लिए न उसे सजा देने की आवश्यकता पड़ी और न ही ऑफिस में शिकायत की बावज़ूद इसके कक्षा में पूर्ण अनुशासन रहता। उसने सभी कक्षाओं के बच्चों को सबसे पहले यही सिखाया कि कोई बच्चा उससे झूठ नहीं बोलेगा, अनुशासन में रहेगा और यदि कोई गलती हो गई है तो उसे स्वीकार कर लेगा। निश्चय ही इन बातों को अमल में लाने में बच्चों को समय लगा पर अपने मकसद में नंदिनी काफी हद तक सफल हुई थी। उसके विषय में बच्चों ने रुचि लेना शुरू कर दिया था। लगभग एक-डेढ़ महीने के बाद किसी नई अध्यापिका के आने के उपरांत नंदिनी को तीसरी कक्षा के ई.वी.एस. विषय की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया और हिन्दी की एक और कक्षा दे दी गई।
प्राचार्य महोदय भी उसके कार्य की प्रशंसा करने लगे, एक दिन ऑफिस में मीटिंग के दौरान उन्होंने नंदिनी के पाठ-योजना तथा अध्यापक दैनन्दिनी की प्रशंसा करते हुए कहा कि आप लोग नंदिनी मैडम का रजिस्टर लेकर देखिए और वैसा ही लिखने का प्रयास कीजिए। मीटिंग के उपरांत कुछ अध्यापकों ने माँगकर रजिस्टर देखा भी और कुछ ने परिहास करते हुए यह भी कहा कि "आपने सबका काम बढ़ा दिया, खुद तो रेस्ट करतीं नहीं हमें भी फँसा दिया।" नंदिनी उनके मजाक का बुरा भी नहीं मानती थी।
पाठ्यक्रम के अनुसार विषय से संबन्धित क्रियाकलापों में भी नंदिनी सिद्धहस्त थी, वह सिर्फ विद्यालय में ही नहीं घर पर भी कभी नेट से कभी अन्य पुस्तकों से और कभी स्वचिंतन से ही नए-नए तरीके से बच्चों को अनुशासित करने और अध्ययन के प्रति उनकी रुचि बढ़ाने के लिए तरह-तरह की युक्तियाँ खोजती और उनको अमल में लाती।
और यही कारण था कि उसकी खुद की अभिरुचि के अनुसार क्रियाकलाप करवाने के लिए उसने बच्चों को बहुत ही आसानी से सिखा लिया। बच्चों के लिए भी कार्य रोचक तथा परीक्षा में अंकों में बढ़ोत्तरी करने वाले थे, इसलिए उन्होंने अपनी अध्यापिका के निर्देशानुसार कार्य किया और प्रधानाचार्य सहित अन्य सभी अध्यापकों को अचंभित कर दिया। अपने इस क्रियाकलाप के अन्तर्गत आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों ने हस्तनिर्मित पुस्तकें बनाईं और वह पुस्तकें इतनी वास्तविक प्रतीक हो रही थीं मानो पब्लिकेशन द्वारा छपकर आई बच्चों की रंगीन पाठ्य-पुस्तक हों। प्रार्थना सभा में पूरे स्कूल के समक्ष उनके कार्य की सराहना की गई, तथा विद्यालय के डायरेक्टर द्वारा कुछ बच्चों को क्रियाकलाप की उत्कृष्टता के कारण पुरस्कार स्वरूप नकद राशि देकर उनका उत्साह बढ़ाया गया। कुछ विद्यार्थी जिनके कार्य भी उत्कृष्ट थे किन्तु देर से जमा करने के कारण छूट गए थे, उन्हें निराशा से बचाने के लिए नंदिनी ने व्यक्तिगत तौर पर कक्षा में उनको पुरस्कृत किया।
विद्यार्थियों के प्रति उसका परिश्रम, कार्य के प्रति समर्पण और आत्मानुशासन ने उसे विद्यार्थियों और स्कूल मैनेजमेंट का प्रिय बना दिया।
अपनी कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाने के साथ-साथ सत्य बोलने, कक्षा में आत्मानुशासन में रहने, घर पर अपने छोटे-छोटे कार्य स्वयं करके मम्मी की मदद करने, समय से पढ़ने व खेलने का महत्व आदि बातों को समझाने के लिए रोज पहले पीरियड में 5-10 मिनट का समय निकालती।
इसी प्रकार सीखते-सिखाते यह सत्र समाप्त हो गया। इन आठ-नौ महीनों में न नंदिनी से किसी को शिकायत हुई और न ही नंदिनी को किसी से।
क्रमशः
"गुड मॉर्निंग नंदिनी मैम" कंप्यूटर लैब में प्रवेश करते हुए कंप्यूटर टीचर देवेश चौधरी बोले।
"देवेश सर! गुड मॉर्निंग सर, हाऊ आर यू?" देवेश पिछले स्कूल में नंदिनी के सह अध्यापक रह चुके थे इसलिए उन्हें यहाँ देखकर वह खुश हो उठी।
"कैसा लग रहा है यहाँ आपको, मन लग गया या नहीं?"
"सर मेरे लिए यहाँ नया कुछ है ही कहाँ, कई टीचर्स और हर क्लास में कई कई बच्चे सभी तो मेरे लिए वही पुराने टीचर और स्टूडेंट्स हैं और रही रूल्स एंड रेग्युलेशन्स की बात तो आप लोग तो हैं ही मुझे गाइड करने के लिए, फिर मन कैसे नहीं लगेगा।"
"अरे मैम आपको गाइडेंस की जरूरत पड़ेगी ही नहीं, आप खुद इतनी कैपेबल हैं कि आपको किसी की हेल्प की जरूरत पड़ेगी ही नहीं।"
"ऐसा नहीं है सर हर किसी को नई जगह हेल्प की जरूरत होती है।"
दोनों बातें कर ही रहे थे तभी अनुभव सर ने प्रवेश किया।
"कोई प्रॉब्लम तो नहीं मैम?" उन्होंने एक कुर्सी खींचकर बैठते हुए कहा।
"सर वैसे तो कोई प्रॉब्लम नहीं है पर आपसे एक रिक्वेस्ट है...."
"कहिए!"
"सर अगर मुझसे कोई गलती हो तो प्लीज मुझे निःसंकोच बता दीजिएगा।"
"अरे मैम टेंशन फ्री होकर अपना काम कीजिए और अपने तरीके से कीजिए, विश्वास मानिए आपके काम को कोई गलत कह ही नहीं सकता।"
"आप इतना विश्वास करते हैं इसीलिए तो डर लगता है कि कोई गलती न हो जाए, फिर आप ही कहे जाएँगे कि कैसी टीचर लाए हैं।"
"जब मुझे कोई टेंशन नहीं, तो आप क्यों परेशान होती हैं? बिंदास होकर अपने तरीके से कीजिए।" अनुभव सर ने हँसते हुए कहा। घंटी बज गई नंदिनी कॉपियाँ समेटने लगी तथा अनुभव और देवेश अपने-अपने क्लास में चले गए।
नंदिनी जिन-जिन कक्षाओं में पढ़ाती उन कक्षाओं के बच्चे बहुत ही जल्द उससे घुल-मिल गए इसके लिए न उसे सजा देने की आवश्यकता पड़ी और न ही ऑफिस में शिकायत की बावज़ूद इसके कक्षा में पूर्ण अनुशासन रहता। उसने सभी कक्षाओं के बच्चों को सबसे पहले यही सिखाया कि कोई बच्चा उससे झूठ नहीं बोलेगा, अनुशासन में रहेगा और यदि कोई गलती हो गई है तो उसे स्वीकार कर लेगा। निश्चय ही इन बातों को अमल में लाने में बच्चों को समय लगा पर अपने मकसद में नंदिनी काफी हद तक सफल हुई थी। उसके विषय में बच्चों ने रुचि लेना शुरू कर दिया था। लगभग एक-डेढ़ महीने के बाद किसी नई अध्यापिका के आने के उपरांत नंदिनी को तीसरी कक्षा के ई.वी.एस. विषय की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया और हिन्दी की एक और कक्षा दे दी गई।
प्राचार्य महोदय भी उसके कार्य की प्रशंसा करने लगे, एक दिन ऑफिस में मीटिंग के दौरान उन्होंने नंदिनी के पाठ-योजना तथा अध्यापक दैनन्दिनी की प्रशंसा करते हुए कहा कि आप लोग नंदिनी मैडम का रजिस्टर लेकर देखिए और वैसा ही लिखने का प्रयास कीजिए। मीटिंग के उपरांत कुछ अध्यापकों ने माँगकर रजिस्टर देखा भी और कुछ ने परिहास करते हुए यह भी कहा कि "आपने सबका काम बढ़ा दिया, खुद तो रेस्ट करतीं नहीं हमें भी फँसा दिया।" नंदिनी उनके मजाक का बुरा भी नहीं मानती थी।
पाठ्यक्रम के अनुसार विषय से संबन्धित क्रियाकलापों में भी नंदिनी सिद्धहस्त थी, वह सिर्फ विद्यालय में ही नहीं घर पर भी कभी नेट से कभी अन्य पुस्तकों से और कभी स्वचिंतन से ही नए-नए तरीके से बच्चों को अनुशासित करने और अध्ययन के प्रति उनकी रुचि बढ़ाने के लिए तरह-तरह की युक्तियाँ खोजती और उनको अमल में लाती।
और यही कारण था कि उसकी खुद की अभिरुचि के अनुसार क्रियाकलाप करवाने के लिए उसने बच्चों को बहुत ही आसानी से सिखा लिया। बच्चों के लिए भी कार्य रोचक तथा परीक्षा में अंकों में बढ़ोत्तरी करने वाले थे, इसलिए उन्होंने अपनी अध्यापिका के निर्देशानुसार कार्य किया और प्रधानाचार्य सहित अन्य सभी अध्यापकों को अचंभित कर दिया। अपने इस क्रियाकलाप के अन्तर्गत आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों ने हस्तनिर्मित पुस्तकें बनाईं और वह पुस्तकें इतनी वास्तविक प्रतीक हो रही थीं मानो पब्लिकेशन द्वारा छपकर आई बच्चों की रंगीन पाठ्य-पुस्तक हों। प्रार्थना सभा में पूरे स्कूल के समक्ष उनके कार्य की सराहना की गई, तथा विद्यालय के डायरेक्टर द्वारा कुछ बच्चों को क्रियाकलाप की उत्कृष्टता के कारण पुरस्कार स्वरूप नकद राशि देकर उनका उत्साह बढ़ाया गया। कुछ विद्यार्थी जिनके कार्य भी उत्कृष्ट थे किन्तु देर से जमा करने के कारण छूट गए थे, उन्हें निराशा से बचाने के लिए नंदिनी ने व्यक्तिगत तौर पर कक्षा में उनको पुरस्कृत किया।
विद्यार्थियों के प्रति उसका परिश्रम, कार्य के प्रति समर्पण और आत्मानुशासन ने उसे विद्यार्थियों और स्कूल मैनेजमेंट का प्रिय बना दिया।
अपनी कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाने के साथ-साथ सत्य बोलने, कक्षा में आत्मानुशासन में रहने, घर पर अपने छोटे-छोटे कार्य स्वयं करके मम्मी की मदद करने, समय से पढ़ने व खेलने का महत्व आदि बातों को समझाने के लिए रोज पहले पीरियड में 5-10 मिनट का समय निकालती।
इसी प्रकार सीखते-सिखाते यह सत्र समाप्त हो गया। इन आठ-नौ महीनों में न नंदिनी से किसी को शिकायत हुई और न ही नंदिनी को किसी से।
क्रमशः
अच्छा आगाज है।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय
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