प्रातःकालीन सभा की तैयारी हो रही थी, विद्यालय के पिछले भाग में खेल के मैदान में बच्चों को कक्षानुसार पंक्तियों में खड़ा किया जा रहा था। नंदिनी अपनी कक्षा के बच्चों की पंक्ति सीधी करवा रही थी तभी चपरासी ने आकर कहा कि उसे डायरेक्टर सर बुला रहे हैं।
वह तुरंत ऑफिस की ओर चल पड़ी।
उसने ऑफिस के शीशे के गेट को भीतर की ओर हल्का सा धक्का देकर आधा ही खोला और बोली- "मे आई कम इन सर?"
अपनी बड़ी सी मेज के दूसरी ओर बैठे डायरेक्टर चौधरी ने गंभीर मुद्रा में हल्के से सिर हिलाकर उसे अनुमति दे दी।
नंदिनी ने भीतर प्रवेश किया, मेज के इस ओर गेट की ओर पीठ किए कोई व्यक्ति बैठा था और उसके साथ ही खड़ा था वही बच्चा जो एक हाथ कटे होने के कारण अलग बैठने के लिए कह रहा था। नंदिनी को समझते देर न लगी कि वह बच्चा अपने पिता को इसलिए लेकर आया है ताकि वह उसे कक्षा में एक अलग सीट पर बैठाए।
"सर आपने बुलाया!" नंदिनी ने बड़े ही विनम्र स्वर में कहा।
"क्लास में क्या हुआ था कल?" डायरेक्टर चौधरी ने बड़े ही रूखेपन से पूछ।
"जी इस बच्चे ने मुझसे अलग सीट पर बैठाने के लिए कहा था ताकि इसका हाथ न दुखे, तो मैंने इसे सीट की लेफ्ट साइड में बैठाया ताकि हाथ बाहर की तरफ होगा तो नहीं दुखेगा, साथ ही यह भी कहा कि यदि फिर भी कोई परेशानी हो तो मुझे बताए मैं अलग बैठा दूँगी।" उसने जवाब दिया।
"तुमने यह नहीं कहा कि जो कहना हो मुझसे कहो डायरेक्टर कौन होता है वो क्या करेगा..।"
डायरेक्टर चौधरी जो अब तक न जाने कैसे शांत बैठे थे बच्चे और उसके पिता के समक्ष ही यकायक दहाड़ पड़े।"
नंदिनी काँप उठी उसका मस्तिष्क शून्य हो गया, उसने तो स्वप्न में भी कभी ऐसी कल्पना नहीं की थी कि इसप्रकार कभी किसी अभिभावक के समक्ष उसका अपमान होगा।
"पर सर मैंने ऐसा नहीं कहा मैं तो बस समझाना....
"तुम अपने आप को बहुत तेज समझती हो, कुछ भी कहोगी और फिर बात बना दोगी! जाओ यहाँ से..."उन्होंने नंदिनी की बात पूरी सुने बिना ही उसे डाँटकर वापस भेज दिया।
नंदिनी प्रार्थना सभा में वापस चली गई पर उससे यह बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि किसी बच्चे और अभिभावक के सामने उससे इसप्रकार बात की गई, अपमान के दर्द से बार-बार उसकी आँखें भर आतीं और वह औरों की नजर बचाकर आँखों की नमी पोंछ लेती, किन्तु उससे सहन नहीं हो पा रहा था....कैसे वह क्लास में उस बच्चे का सामना करेगी.... क्या अब वह पहले की तरह पढ़ा पाएगी..... क्या बच्चे अब उसका सम्मान करेंगे? इन्हीं सवालों से उलझती अपने-आप से लड़ती वह प्रिंसिपल ऑफिस में पहुँच गई।
"सर मैं क्लास में नहीं जा सकूँगी प्लीज मेरा ये पीरियड फ्री कर दीजिए या किसी और क्लास में भेज दीजिए।" उसने प्रिंसिपल से निवेदन किया।
"पर क्यों मैडम, आप क्यों नहीं जाना चाहतीं, पहले बताइए तो सही!" उन्होंने पूछा।
वह नहीं बताना चाहती थी, उसका आहत हो चुका स्वाभिमान उसे रोक रहा था तथा दूसरी ओर डायरेक्टर को ऐसा न लगे कि वह शिकायत कर रही है, परंतु उसे यदि उस बच्चे का सामना करने से बचना है तो सच्चाई बताने के सिवा कोई अन्य उपाय न था। अतः उसने सारी बातें जो उसने कक्षा में बच्चों के समक्ष समझाते हुए कहा था और जो डायरेक्टर चौधरी ने कही थीं, ज्यों की त्यों प्रधानाचार्य को बता दिया।
"ये तो बहुत गलत हुआ, इसमें आपकी गलती नहीं है पर आप भी जानती हैं मैं अभी कुछ नहीं कह सकता।" उन्होंने कहा।
"सर मैं भी नहीं चाहती कि आप कुछ कहें, मैं बस वो क्लास छोड़ना चाहती हूँ, मैं शर्म के कारण उस क्लास में नहीं पढ़ा पाऊँगी, प्लीज़ सर।"
"ओके आप बस एक काम कीजिए, आप जाकर अटेंडेन्स ले लीजिए और उस बच्चे को मेरे पास भेज दीजिएगा, मैं उस बच्चे का पक्ष भी सुनना चाहता हूँ।"
"ओके सर" कहकर नंदिनी रजिस्टर लेकर कक्षा में चली गई।
उसने बच्चों की हाजिरी ली और कक्षा से बाहर जाते हुए उस बच्चे से कहा- "आपको प्रिंसिपल सर ने बुलाया है, तो एक बार मिल लीजिएगा।
दूसरा पीरियड चल रहा था नंदिनी कक्षा में पढ़ा रही थी तभी चपरासी ने आकर फिर कहा- "आपको डायरेक्टर सर बुला रहे हैं।"
उसने ऑफिस में जैसे ही प्रवेश किया डायरेक्टर अपनी कुर्सी से खड़े होकर जहर बुझे स्वर में बोले - तुम प्रिंसिपल से शिकायत करने गई थीं?
"नो सर मैं अपना पीरियड चेंज करवाने गई थी।" वह उनका यह बदला हुआ व्यवहार देख सहम गई थी उसने अत्यंत कातर स्वर में जवाब दिया।
"तू समझती क्या है अपने आपको? चलो जाओ तुम, अब यहाँ तुम्हारी कोई जरूरत नहीं, निकलो यहाँ से।" कहते हुए वह नंदिनी के पास तक आ गए।
वह मृग शावकी की तरह भयभीत सी बिना कुछ बोले तुरंत ऑफिस से बाहर निकल स्टाफ रूम की ओर जाने लगी...
"उधर कहाँ जा रही हो, बाहर जाओ।" अपने ऑफिस के बाहर तक उसके पीछे-पीछे आए डायरेक्टर ने ऊँची आवाज में कहा।
"अपना पर्स लेने जा रही हूँ।" नंदिनी की आवाज भर्रा गई।
"कुछ नहीं, बाहर जाओ वहीं सब मिल जाएगा।" वह उसी तरह दहाड़कर बोले। अब नंदिनी में साहस नहीं था कि वह कुछ कहती या वहाँ रुक पाती; उसे ऐसा लगा कि यदि वह वहाँ एक पल भी रुकी तो कही वह उसे धक्का ही न मार दें या हाथ पकड़कर न निकाल दें, इसलिए वह तुरंत बाहर की ओर चल दी और रिसेप्शन पर जैसे ही पहुँची पीछे से अकाउंटेंट को इंगित करके डायरेक्टर ने कहा मैडम इनका आज तक का हिसाब करके इन्हें दे दो और ये रिसेप्शन एरिया से अंदर पैर नहीं रखनी चाहिए इनका जो भी सामान अंदर है सब यहीं लाकर दे दो।"
नंदिनी ही नहीं किसी ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि किसी अध्यापिका को उसके शिक्षा दान का ऐसा पुरस्कार मिल सकता है। उसका मस्तिष्क शून्य हो चुका था वह स्वयं को बहुत ही लाचार महसूस कर रही थी, जिस स्वाभिमान का वह दम भरती थी उसकी तो ऐसी धज्जियाँ उड़ चुकी कि दुबारा शायद वह कभी स्वाभिमानी होने की बात नहीं करेगी। उसे यहाँ तीन साल होने वाले थे कभी किसी बच्चे की या किसी अभिभावक की शिकायत नहीं आई फिर इस बार उसने ऐसा क्या कह दिया! बच्चों को ओहदे के सम्मान की शिक्षा देना गलत हो गया या उसका समय गलत था।
अकाउंटेंट मिसेज रीमा ने नंदिनी को बुलाकर सारी बातें पूछीं तो नंदिनी ने सारी बातें बता दीं।
"नंदिनी मैडम मैं जो कह रही हूँ वो ध्यान से सुनिएगा, जो लोग अनमैरिड होते हैं न उनपर जिम्मेदारी का प्रेशर कम होता है तो वो छोटी-छोटी बातों पर नौकरी को लात मारके जा सकते हैं, पर मेरे-आपके जैसे लोग कोई भी नौकरी छोड़ने से पहले दस बार सोचेंगे, हमारी उम्र एक जगह सैटल होने की है, नई नौकरियाँ ढूँढ़ने की नहीं, तो हम लोगों को ऐसी कई बातों को अनदेखा करना पड़ता है।" मिसेज रीमा ने कहा।
"पर मैडम आप तो देख ही रही हैं कि मैंने नहीं छोड़ा, मुझे अपमानित करके निकाला गया है।" नंदिनी ने गालों पर ढुलक आए आँसुओं को पोंछते हुए कहा।
"सर बहुत गुस्से में हैं, शायद किसी और बात का गुस्सा आप पर निकल गया हो, गुस्सा ठंडा होते ही समझ जाएँगे तो आप थोड़ी देर रुको मैं बात करती हूँ, पर सैलरी ले लोगी तो फिर कुछ नहीं हो पाएगा।"
"नहीं रीमा मैडम, आप मेरी सैलरी बना दीजिए, इतने अपमान के बाद भी मैं यहाँ रुक जाऊँ तो कोई भी कभी भी मुझे ठोकर मारने लगेगा।"
"सोच लीजिए मैम, मैं आपकी भलाई की ही बात कह रही हूँ।"
"मैं समझ सकती हूँ मैम पर रुक नहीं सकती।" नंदिनी ने अपना फैसला सुनाया।
"नंदिनी मैम प्रिंसिपल सर आपको बुला रहे हैं।" रिशेप्सनिस्ट ने कहा।
नंदिनी प्रिंसिपल ऑफिस में गई
"मैडम मैं जानता हूँ कि आपके साथ बहुत गलत हुआ, पर आप मेरी विवशता भी समझ सकती हैं, फिरभी मैं यही कहूँगा कि एक अच्छे टीचर को जाने देना स्कूल और बच्चे दोनों के लिए ठीक नहीं, मैं आपसे अभी रुकने के लिए नहीं कहूँगा आप घर जाइए मैं शाम को आपसे फोन पर बात करूँगा।" प्रधानाचार्य ने कहा।
"जी सर बात जरूर कीजिएगा पर वापस आने के लिए मत कहिएगा, प्लीज़। कह कर नंदिनी बाहर आ गई। वाइस प्रिंसिपल, स्पोर्ट टीचर सभी ने नंदिनी को समझाने का प्रयास किया कि उसे रुक जाना चाहिए, दूसरे को समझाना जितना आसान होता है उतना स्वयं पर लागू कर पाना नहीं, इस सत्य को जानते हुए भी लोग दूसरों को उन्हीं बातों पर अमल के लिए समझाते हैं जिन पर वो स्वयं अमल नहीं कर सकते, वही सब उस समय नंदिनी के साथ हो रहा था, पर उसे एक और बात भीतर ही भीतर आहत कर रही थी कि सभी ने उसे सांत्वना देने और समझाने का प्रयास किया पर वही एक बार भी नहीं आए जिनके कहने से उसने इस स्कूल को अपना कर्मक्षेत्र बनाया था। ऐसा संभव नहीं था कि उन्हें पता न हो, नंदिनी ने मैसेज देकर बुलवाया भी था फिर भी न जाने क्यों अभिनव सर ने एक बार भी आकर सत्य जानने की आवश्यकता नहीं समझी।
अचानक अलार्म की आवाज सुनकर नंदिनी चौंक गई और भूत से वर्तमान की धरातल पर आ गई, उसने मोबाइल उठाकर अलार्म बंद किया। सुबह के चार बज गए यह जानकर भी वह सोने की कोशिश में फिर से आँखें बंद करके लेट गई।
मालती मिश्रा 'मयंती'
वह तुरंत ऑफिस की ओर चल पड़ी।
उसने ऑफिस के शीशे के गेट को भीतर की ओर हल्का सा धक्का देकर आधा ही खोला और बोली- "मे आई कम इन सर?"
अपनी बड़ी सी मेज के दूसरी ओर बैठे डायरेक्टर चौधरी ने गंभीर मुद्रा में हल्के से सिर हिलाकर उसे अनुमति दे दी।
नंदिनी ने भीतर प्रवेश किया, मेज के इस ओर गेट की ओर पीठ किए कोई व्यक्ति बैठा था और उसके साथ ही खड़ा था वही बच्चा जो एक हाथ कटे होने के कारण अलग बैठने के लिए कह रहा था। नंदिनी को समझते देर न लगी कि वह बच्चा अपने पिता को इसलिए लेकर आया है ताकि वह उसे कक्षा में एक अलग सीट पर बैठाए।
"सर आपने बुलाया!" नंदिनी ने बड़े ही विनम्र स्वर में कहा।
"क्लास में क्या हुआ था कल?" डायरेक्टर चौधरी ने बड़े ही रूखेपन से पूछ।
"जी इस बच्चे ने मुझसे अलग सीट पर बैठाने के लिए कहा था ताकि इसका हाथ न दुखे, तो मैंने इसे सीट की लेफ्ट साइड में बैठाया ताकि हाथ बाहर की तरफ होगा तो नहीं दुखेगा, साथ ही यह भी कहा कि यदि फिर भी कोई परेशानी हो तो मुझे बताए मैं अलग बैठा दूँगी।" उसने जवाब दिया।
"तुमने यह नहीं कहा कि जो कहना हो मुझसे कहो डायरेक्टर कौन होता है वो क्या करेगा..।"
डायरेक्टर चौधरी जो अब तक न जाने कैसे शांत बैठे थे बच्चे और उसके पिता के समक्ष ही यकायक दहाड़ पड़े।"
नंदिनी काँप उठी उसका मस्तिष्क शून्य हो गया, उसने तो स्वप्न में भी कभी ऐसी कल्पना नहीं की थी कि इसप्रकार कभी किसी अभिभावक के समक्ष उसका अपमान होगा।
"पर सर मैंने ऐसा नहीं कहा मैं तो बस समझाना....
"तुम अपने आप को बहुत तेज समझती हो, कुछ भी कहोगी और फिर बात बना दोगी! जाओ यहाँ से..."उन्होंने नंदिनी की बात पूरी सुने बिना ही उसे डाँटकर वापस भेज दिया।
नंदिनी प्रार्थना सभा में वापस चली गई पर उससे यह बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि किसी बच्चे और अभिभावक के सामने उससे इसप्रकार बात की गई, अपमान के दर्द से बार-बार उसकी आँखें भर आतीं और वह औरों की नजर बचाकर आँखों की नमी पोंछ लेती, किन्तु उससे सहन नहीं हो पा रहा था....कैसे वह क्लास में उस बच्चे का सामना करेगी.... क्या अब वह पहले की तरह पढ़ा पाएगी..... क्या बच्चे अब उसका सम्मान करेंगे? इन्हीं सवालों से उलझती अपने-आप से लड़ती वह प्रिंसिपल ऑफिस में पहुँच गई।
"सर मैं क्लास में नहीं जा सकूँगी प्लीज मेरा ये पीरियड फ्री कर दीजिए या किसी और क्लास में भेज दीजिए।" उसने प्रिंसिपल से निवेदन किया।
"पर क्यों मैडम, आप क्यों नहीं जाना चाहतीं, पहले बताइए तो सही!" उन्होंने पूछा।
वह नहीं बताना चाहती थी, उसका आहत हो चुका स्वाभिमान उसे रोक रहा था तथा दूसरी ओर डायरेक्टर को ऐसा न लगे कि वह शिकायत कर रही है, परंतु उसे यदि उस बच्चे का सामना करने से बचना है तो सच्चाई बताने के सिवा कोई अन्य उपाय न था। अतः उसने सारी बातें जो उसने कक्षा में बच्चों के समक्ष समझाते हुए कहा था और जो डायरेक्टर चौधरी ने कही थीं, ज्यों की त्यों प्रधानाचार्य को बता दिया।
"ये तो बहुत गलत हुआ, इसमें आपकी गलती नहीं है पर आप भी जानती हैं मैं अभी कुछ नहीं कह सकता।" उन्होंने कहा।
"सर मैं भी नहीं चाहती कि आप कुछ कहें, मैं बस वो क्लास छोड़ना चाहती हूँ, मैं शर्म के कारण उस क्लास में नहीं पढ़ा पाऊँगी, प्लीज़ सर।"
"ओके आप बस एक काम कीजिए, आप जाकर अटेंडेन्स ले लीजिए और उस बच्चे को मेरे पास भेज दीजिएगा, मैं उस बच्चे का पक्ष भी सुनना चाहता हूँ।"
"ओके सर" कहकर नंदिनी रजिस्टर लेकर कक्षा में चली गई।
उसने बच्चों की हाजिरी ली और कक्षा से बाहर जाते हुए उस बच्चे से कहा- "आपको प्रिंसिपल सर ने बुलाया है, तो एक बार मिल लीजिएगा।
दूसरा पीरियड चल रहा था नंदिनी कक्षा में पढ़ा रही थी तभी चपरासी ने आकर फिर कहा- "आपको डायरेक्टर सर बुला रहे हैं।"
उसने ऑफिस में जैसे ही प्रवेश किया डायरेक्टर अपनी कुर्सी से खड़े होकर जहर बुझे स्वर में बोले - तुम प्रिंसिपल से शिकायत करने गई थीं?
"नो सर मैं अपना पीरियड चेंज करवाने गई थी।" वह उनका यह बदला हुआ व्यवहार देख सहम गई थी उसने अत्यंत कातर स्वर में जवाब दिया।
"तू समझती क्या है अपने आपको? चलो जाओ तुम, अब यहाँ तुम्हारी कोई जरूरत नहीं, निकलो यहाँ से।" कहते हुए वह नंदिनी के पास तक आ गए।
वह मृग शावकी की तरह भयभीत सी बिना कुछ बोले तुरंत ऑफिस से बाहर निकल स्टाफ रूम की ओर जाने लगी...
"उधर कहाँ जा रही हो, बाहर जाओ।" अपने ऑफिस के बाहर तक उसके पीछे-पीछे आए डायरेक्टर ने ऊँची आवाज में कहा।
"अपना पर्स लेने जा रही हूँ।" नंदिनी की आवाज भर्रा गई।
"कुछ नहीं, बाहर जाओ वहीं सब मिल जाएगा।" वह उसी तरह दहाड़कर बोले। अब नंदिनी में साहस नहीं था कि वह कुछ कहती या वहाँ रुक पाती; उसे ऐसा लगा कि यदि वह वहाँ एक पल भी रुकी तो कही वह उसे धक्का ही न मार दें या हाथ पकड़कर न निकाल दें, इसलिए वह तुरंत बाहर की ओर चल दी और रिसेप्शन पर जैसे ही पहुँची पीछे से अकाउंटेंट को इंगित करके डायरेक्टर ने कहा मैडम इनका आज तक का हिसाब करके इन्हें दे दो और ये रिसेप्शन एरिया से अंदर पैर नहीं रखनी चाहिए इनका जो भी सामान अंदर है सब यहीं लाकर दे दो।"
नंदिनी ही नहीं किसी ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि किसी अध्यापिका को उसके शिक्षा दान का ऐसा पुरस्कार मिल सकता है। उसका मस्तिष्क शून्य हो चुका था वह स्वयं को बहुत ही लाचार महसूस कर रही थी, जिस स्वाभिमान का वह दम भरती थी उसकी तो ऐसी धज्जियाँ उड़ चुकी कि दुबारा शायद वह कभी स्वाभिमानी होने की बात नहीं करेगी। उसे यहाँ तीन साल होने वाले थे कभी किसी बच्चे की या किसी अभिभावक की शिकायत नहीं आई फिर इस बार उसने ऐसा क्या कह दिया! बच्चों को ओहदे के सम्मान की शिक्षा देना गलत हो गया या उसका समय गलत था।
अकाउंटेंट मिसेज रीमा ने नंदिनी को बुलाकर सारी बातें पूछीं तो नंदिनी ने सारी बातें बता दीं।
"नंदिनी मैडम मैं जो कह रही हूँ वो ध्यान से सुनिएगा, जो लोग अनमैरिड होते हैं न उनपर जिम्मेदारी का प्रेशर कम होता है तो वो छोटी-छोटी बातों पर नौकरी को लात मारके जा सकते हैं, पर मेरे-आपके जैसे लोग कोई भी नौकरी छोड़ने से पहले दस बार सोचेंगे, हमारी उम्र एक जगह सैटल होने की है, नई नौकरियाँ ढूँढ़ने की नहीं, तो हम लोगों को ऐसी कई बातों को अनदेखा करना पड़ता है।" मिसेज रीमा ने कहा।
"पर मैडम आप तो देख ही रही हैं कि मैंने नहीं छोड़ा, मुझे अपमानित करके निकाला गया है।" नंदिनी ने गालों पर ढुलक आए आँसुओं को पोंछते हुए कहा।
"सर बहुत गुस्से में हैं, शायद किसी और बात का गुस्सा आप पर निकल गया हो, गुस्सा ठंडा होते ही समझ जाएँगे तो आप थोड़ी देर रुको मैं बात करती हूँ, पर सैलरी ले लोगी तो फिर कुछ नहीं हो पाएगा।"
"नहीं रीमा मैडम, आप मेरी सैलरी बना दीजिए, इतने अपमान के बाद भी मैं यहाँ रुक जाऊँ तो कोई भी कभी भी मुझे ठोकर मारने लगेगा।"
"सोच लीजिए मैम, मैं आपकी भलाई की ही बात कह रही हूँ।"
"मैं समझ सकती हूँ मैम पर रुक नहीं सकती।" नंदिनी ने अपना फैसला सुनाया।
"नंदिनी मैम प्रिंसिपल सर आपको बुला रहे हैं।" रिशेप्सनिस्ट ने कहा।
नंदिनी प्रिंसिपल ऑफिस में गई
"मैडम मैं जानता हूँ कि आपके साथ बहुत गलत हुआ, पर आप मेरी विवशता भी समझ सकती हैं, फिरभी मैं यही कहूँगा कि एक अच्छे टीचर को जाने देना स्कूल और बच्चे दोनों के लिए ठीक नहीं, मैं आपसे अभी रुकने के लिए नहीं कहूँगा आप घर जाइए मैं शाम को आपसे फोन पर बात करूँगा।" प्रधानाचार्य ने कहा।
"जी सर बात जरूर कीजिएगा पर वापस आने के लिए मत कहिएगा, प्लीज़। कह कर नंदिनी बाहर आ गई। वाइस प्रिंसिपल, स्पोर्ट टीचर सभी ने नंदिनी को समझाने का प्रयास किया कि उसे रुक जाना चाहिए, दूसरे को समझाना जितना आसान होता है उतना स्वयं पर लागू कर पाना नहीं, इस सत्य को जानते हुए भी लोग दूसरों को उन्हीं बातों पर अमल के लिए समझाते हैं जिन पर वो स्वयं अमल नहीं कर सकते, वही सब उस समय नंदिनी के साथ हो रहा था, पर उसे एक और बात भीतर ही भीतर आहत कर रही थी कि सभी ने उसे सांत्वना देने और समझाने का प्रयास किया पर वही एक बार भी नहीं आए जिनके कहने से उसने इस स्कूल को अपना कर्मक्षेत्र बनाया था। ऐसा संभव नहीं था कि उन्हें पता न हो, नंदिनी ने मैसेज देकर बुलवाया भी था फिर भी न जाने क्यों अभिनव सर ने एक बार भी आकर सत्य जानने की आवश्यकता नहीं समझी।
अचानक अलार्म की आवाज सुनकर नंदिनी चौंक गई और भूत से वर्तमान की धरातल पर आ गई, उसने मोबाइल उठाकर अलार्म बंद किया। सुबह के चार बज गए यह जानकर भी वह सोने की कोशिश में फिर से आँखें बंद करके लेट गई।
मालती मिश्रा 'मयंती'
बहुत ही भावप्रवण रचना
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