गुरुवार

पुरस्कार... भाग- 4

सत्र का पहला दिन था,नंदिनी के मन में कौतूहल था कि किसको किस कक्षा की कक्षाध्यापिका या कक्षाध्यापक बनाया जाएगा!
"रिधिमा मैम आपको क्या लगता है इस बार आपको कौन सी क्लास मिलेगी?" नंदिनी से नहीं रहा गया तो उसने उत्सुकतावश एक अध्यापिका से पूछ ही लिया जो उस स्कूल में कई सालों से पढ़ा रही थीं।
"क्लासेज तो मैम सबको वही मिलेंगीं जो पहले थीं।"
"लेकिन ऐसा आवश्यक तो नहीं है न, बदल भी तो सकती हैं।"
"नहीं मैम यहाँ तो सबको उन्हीं की क्लासेज देते हैं, बहुत कम ही ऐसा होता है कि कोई अन्य क्लास मिले।"
"पर इसका कारण क्या है?"
"प्रिंसिपल सर का मानना है कि क्लास-टीचर अपने बच्चों को और बच्चे क्लास-टीचर को बहुत अच्छी तरह जानते और समझते हैं, अगर क्लास टीचर चेंज कर दें तो दूसरे टीचर को फिर वही समय लगाना होगा एक-दूसरे से तालमेल बैठाने में, इसलिए पुराने क्लास-टीचर ही ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध हो सकते हैं और इसीलिए अभी आपके पास पाँचवीं ब कक्षा थी तो अब छठीं ब होगी।"
"ओह! पर हर जगह तो कक्षाध्यापक/कक्षाध्यापिका बदल जाते हैं, खैर हमें तो जो देंगे हम पढ़ा ही लेंगे।" नंदिनी ने ठंडी साँस छोड़ते हुए कहा।
"नंदिनी मैडम आपको प्रिंसिपल सर बुला रहे हैं।" संदीप (चपरासी) ने कहा।
"ओके कमिंग" कहती हुई नंदिनी ऑफिस की ओर चल दी।
"मे आई कम इन सर!" नंदिनी ने पूछा।
"यस यस कम इन मैडम"
"सर आपने बुलाया?"
"या प्लीज सिट डाउन।"
"थैंक्यू सर आई ऐम ओके" नंदिनी ने कहा पर उसके मस्तिष्क में एक ही सवाल बार-बार ठोकरें मार रहा था कि उसे क्यों बुलाया, उसके दिमाग ने बीते सत्र के सारे कार्यों का अवलोकन पल भर में ही कर लिया कि कोई गलती तो नहीं हुई थी पर उसे ऐसी कोई गलती भी याद नहीं आई। जब तक प्रधानाचार्य जी ने अपनी फाइल बंद नहीं कर दी उन कुछ सेकेंडों में कई सवाल उसके मस्तिष्क में आते-जाते रहे, पर कोशिश
के बाद भी वह कोई अनुमान नहीं लगा सकी।
"नंदिनी मैडम हम आपको टेन्थ क्लास की हिन्दी दें तो आप पढ़ा लेंगीं?" प्रधानाचार्य जी ने कुर्सी पर सीधे होते हुए कहा।
"सर मैंने कभी पढ़ाया नहीं है, आप मुझे इस वर्ष नाइन्थ क्लास की दे दीजिए टेन्थ नेक्स्ट सेशन में दे दीजिएगा।" नंदिनी का भय समाप्त हो चुका था।
"आपने पढ़ाया नहीं है कोई बात नहीं, कभी तो शुरू करेंगी तो अभी क्यों नहीं?"
सर मुझे नवीं-दसवीं का सिलेबस भी नहीं पता, इस क्लास की पुस्तकें तक नहीं देखी हैं, इसलिए कह रही हूँ अभी नाइंथ ही दे दीजिए।" नंदिनी ने अपना तर्क रखा।
"नहीं मैडम आप टेन्थ भी पढ़ा लेंगी आई ट्रस्ट यू, और इसीलिए मैं आपको ये दोनों ही क्लासेज दे चुका हूँ, डोंट वरी आई नो आप को कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।"
नंदिनी को जवाब नहीं सूझा कि क्या कहे वह एक पल को बिल्कुल चुप हो गई फिर बोली- "ओके सर अगर आप इतने कॉन्फिडेंट हैं तो मैं पूरी कोशिश करूँगी, पर क्या इस बार भी मुझे ई. वी. एस. पढ़ाना होगा?"
"नो नो, अब आपको सिक्स्थ टू टेन्थ हिन्दी ही पढ़ाना होगा और आप उसी क्लास की क्लास टीचर हैं जिसकी पहले थीं बट सब्जेक्ट हिन्दी है।
"ओके, थैंक्यू सर। कैन आई गो?"
"यस यू कैन।" प्रिंसिपल ने कहा।

नंदिनी के लिए नौवीं-दसवीं कक्षा में पढ़ाना पहला अनुभव था, अगर पहले से पता होता तो इन कक्षाओं की पुस्तकों का कुछ अध्ययन कर लेती पर अब अचानक ही पता चला। कुछ भी हो उसे यह जिम्मेदारी भी पूरी मेहनत से निभानी है, इसलिए वह घर पर रात के  बारह-एक बजे तक जागकर इन दोनों कक्षाओं की पुस्तकों का अध्ययन करती और दूसरे दिन कक्षा में पढ़ाती।
परिणाम स्वरूप कुछ ही दिनों में वह इन कक्षाओं के लिए भी पूर्णतः अभ्यस्त हो गई और तरह-तरह के प्रयोगात्मक विधियों को अपनाते हुए विषय को रोचक बनाते हुए पढ़ाने लगी।
प्रातःकालीन प्रार्थना सभा हो, या किसी पर्व पर आयोजित कोई कार्यक्रम, विषयाधारित कोई क्रियाकलाप हो या सदनाधारित प्रतियोगिता, कोई दैनिक कार्यक्रम हो या वार्षिक त्रिदिवसीय खेल प्रतियोगिता नंदिनी हर कार्य में बढ़-चढ़.कर भाग लेती और अपनी ड्यूटी को पूर्ण समर्पण से निभाती।
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विद्यालय के बड़े से गेट के भीतर कदम रखते ही ठिठक कर दामिनी ने पहले गर्दन घुमाकर एक नजर विद्यालयम् प्रांगण में डाला दाईं ओर बने वालीबॉल कोर्ट और उसके पीछे दूर तक बड़ा सा खेल का मैदान... उसके बाईं ओर लॉन और उसमें हरियाली के चादर पर बच्चों के झूले, ठीक सामने कुछ दूरी पर काँच के बड़े से गेट के पीछे हॉलनुमा रिसेप्शन था, वह प्रभावित हुए बिना न रह सकी। उसने साथ में आए अपने पति से वहीं गेट के बाहर प्रतीक्षा करने के लिए कहा और स्वयं भीतर की ओर बढ़ गई।

जिन विद्यार्थियों का आई-कार्ड नहीं बना था उनके नाम की लिस्ट वाइस प्रिंसिपल के ऑफिस में देने के लिए नंदिनी ने ज्यों ही रिसेप्शन की ओर कदम बढ़ाया सामने बेंच पर बैठी दामिनी को देखकर चौंक गई, उसके पैर जहाँ थे वहीं चिपक गए उधर दामिनी भी नंदिनी को देखते एकाएक चिहुंक उठी और झटके से खड़ी हो गई।
"नंदिनी मैडम आप भी यहाँ हो! ओ माई गॉड ये तो बहुत अच्छा हुआ।"
कहते हुए दामिनी नंदिनी की ओर लपकी और उसके गले लग गई। नंदिनी भी उससे मिलकर खुश हुई, वह भी पिछले स्कूल में साथ में अध्यापन कर चुकी थी और नंदिनी के छोड़ने के करीब ढाई साल पहले ही छोड़ चुकी थी।
"कैसी हो? इंटरव्यू देने आई हो? नंदिनी ने पूछा।
"हाँ मैडम, अभिनव सर ने बुलाया।" उसने अपने उसी चिरपरिचित अंदाज में कहा। उसकी हर बात से बचपना और निश्छलता झलकती।
"हो गया इंटरव्यू?"
"रिटेन टेस्ट और इंटरव्यू दोनों हो गए, सच्ची बताऊँ तो मेरे सारे उत्तर गलत थे मुझे नहीं लगता कि मेरा सेलेक्शन होगा।"
"अनुभव सर ने बुलाया है तो हो भी सकता है, उम्मीद मत छोड़ो।" नंदिनी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"मैडम आपभी बात करो ना प्रिंसिपल सर से, प्लीज़।"
"कोशिश करती हूँ, तुम बैठो।" कहकर नंदिनी वाइस प्रिंसिपल के ऑफिस में गई पर वो वहाँ नहीं थे अतः वह प्रिंसिपल ऑफिस में चली गई।
"सर क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?" नंदिनी ने पूछा।
"कम इन मैडम।"
"सर ये उन बच्चों की लिस्ट है जिनके आइ-कार्ड अभी नहीं आए।"
"ओके, व्हाइ डिडन्ट गिव इट टू मि० वी० पी०?" कहते हुए प्रधानाचार्य ने लिस्ट ले लिया।
"सर ही इज़ नॉट इन ऑफिस, मे बी ही इज़ टेकिंग क्लास।"
ओके...ओके
"सर वन मोर थिंग आइ वॉन्ट टू से....."
"ओके यू कैन"
"सर दामिनी मैडम.."
"आप जानती हैं उन्हें, अरे हाँ वो भी तो उसी स्कूल में पढ़ा चुकी हैं जहाँ पहले आप पढ़ाती थीं।" प्रधानाचार्य नंदिनी की बात बीच में ही काटकर बोल पड़े।
"जी सर"
"हाउ इज़ शी, कैसी टीचर हैं?"
"सर शी इज अ गुड टीचर।"
"ओके पर रिटेन टैस्ट तो कुछ खास नहीं रहा फिरभी देखते हैं, पहले देखते हैं डायरेक्ट सर क्या कहते हैं।"
"ओके सर।" कहकर नंदिनी बाहर आ गई।
"क्या हुआ?" उसे देखते ही दामिनी ने पूछा।
"सर कह रहे हैं कि डायरेक्टर सर बताएँगे।" मैं अभी थोड़ी देर में फिर आती हूँ कुछ काम है, शुक्र मनाओ ये मेरा फ्री पीरियड है नहीं तो मैं तुमसे इतनी बात नहीं कर पाती, तब तक तुम अभिनव सर से बात कर लो वो अकाउंट विंडो पर खड़े हैं।" नंदिनी ने दाईं ओर अकाउंट ऑफिस की विंडो की ओर संकेत करते हुए कहा और स्वयं स्टाफ-रूम की ओर बढ़ गई।

थोड़ी देर में वह फिर वापस आई तो दामिनी जाने को उद्यत हो रही थी....
"क्या हुआ?" उसने जिज्ञासावश पूछा।
"कुछ नहीं, कह रहे हैं कि अभी डायरेक्टर सर हैं नहीं तो कल आना।"
ओह! पर....नंदिनी कुछ कहती कि तभी उसने देखा कि अकाउंट विंडो पर खड़े अभिनव सर उसको इशारे से बुला रहे हैं, वह वहाँ गई तो उन्होंने पूछा कि क्या हुआ? तो नंदिनी ने वही सब बता दिया जो उसे दामिनी ने बताया था।
"मैडम किसी ने उन्हें गलत इन्फॉर्मेशन दी है आप जाकर एक बार प्रिंसिपल सर से बात कीजिए।" अभिनव सर ने कहा। वो स्वयं नहीं जा सकते थे क्यों वो किसी अन्य आवश्यक कार्य में व्यस्त थे।
नंदिनी ने जाकर प्रिंसिपल से बात की तो पता चला कि उन्होंने कुछ नहीं कहा और उन्होंने दामिनी को ऑफिस में भेजने को कहा।
किन्तु जब तक वह रिसेप्शन पर पहुँची दामिनी जा चुकी थी, रिसेप्शनिस्ट ने बताया कि अभी-अभी गई हैं, तो नंदिनी तेजी से बाहर गई और वॉचमैन को बोला कि दौड़कर बुला लाए।
वह उसी समय निकली ही थी इसलिए वॉचमैन के दौड़ते हुए तेज-तेज बुलाने से आवाज सुनकर वह वापस आ गई और इतनी सारी मशक्क़त के बाद उसकी नियुक्ति साइंस अध्यापिका के रूप में हो गई।
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नंदिनी और दामिनी एक साथ स्कूल आतीं और जाती थीं, नंदिनी दामिनी के मुँहफट होने की वजह से उसे बार-बार समझाती कि किसके सामने कितना बोलना चाहिए, कभी-कभी तो मीटिंग के दौरान डायरेक्टर और प्रधानाचार्य के सामने भी कुछ भी बोल देती उस समय सभी आश्चर्य से उसकी ओर देखते तो वह बिल्कुल भोलेपन से कहती "क्या हुआ, मैंने कुछ गलत बोला क्या?" और साथ में खड़ी दूसरी अध्यापिका उसे कभी हाथ दबाकर कभी उँगली दबाकर इशारे से चुप रहने को कहती।
अपने व्यवहार-कुशल प्रवृत्ति के कारण दामिनी जल्द ही सबसे घुल-मिल गई। पर उसकी बिना सोचे कुछ भी बोल देने की आदत नहीं गई। धीरे-धीरे नंदिनी ने महसूस किया कि वह उससे कुछ खिंची-खिंची सी रहने लगी है उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्यों? फिर एक दिन उसने पूछ ही लिया- "दामिनी! मैं तुम्हें कई बार टोक दिया करती हूँ, कुछ बोलने से रोकती हूँ तो तुम्हें बुरा लगता है?"
"अरे नहीं नंदिनी मैडम आप तो मेरी बड़ी बहन की तरह हो, आप मुझे चाँटा भी मारोगी तब भी मैं बुरा नहीं मानूँगी, मुझे पता है आप मेरी भलाई के लिए ही टोकती हो, और मैं आपकी ही वजह से तो यहाँ हूँ।" उसने अपने उसी चिर परिचित अंदाज में कहा जिसे सुनने वाला रीझे बिना न रह सके। कितना भोलापन और निश्छलता थी आवाज में किन्तु आज उसकी आँखों की वो निश्छलता फीकी पड़ गई थी, मानों ज़ुबान कुछ और आँखें कुछ और कह रही थीं।
नंदिनी ने आगे कुछ कहना उचित नहीं समझा, उसे लगा हो सकता है यह उसकी गलतफ़हमी हो। दोनों अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हो गईं।

फ्री पीरियड था इसलिए नंदिनी कंप्यूटर-लैब में  दो बच्चों को प्रातःकालीन सभा के लिए कुछ निर्देश दे रही थी तभी दामिनी ने भी लैब में प्रवेश किया और एक कुर्सी खींचकर बैठते हुए बोली- ये बताओ मैडम सभी आपकी इतनी तारीफ़ क्यों करते हैं?"
"अब आप लोग क्लास में जाइए जो-जो मैंने बताए हैं वो कल तक तैयार कर लीजिएगा।" कहकर नंदिनी ने बच्चों को भेज दिया और दामिनी की ओर घूमते हुए मुस्कुराकर बोली- "कौन लोग मेरी तारीफ करते हैं?"
"प्रिंसिपल सर भी कई बार मेरे सामने आपकी तारीफ कर चुके हैं, डायरेक्टर सर भी जितना आपकी बात पर विश्वास करते हैं उतना और किसी की नहीं और आपकी तारीफ भी करते हैं।"
"मेरे सामने तो नहीं करते, तुम्हारे सामने करते हैं तो तुम पूछो कि क्यों करते हैं, वैसे ऐसा क्या कह दिया सर ने?" नंदिनी ने उसी प्रकार शांत लहजे में पूछा।
"आपको पता है अभी डायरेक्टर सर ने मुझे बुलाया और कहने लगे कि मैं नाइंथ-टेन्थ क्लास को साइंस पढ़ा लूँ।"
तो?
"मैंने नहीं पढ़ाया है कभी, तो मैंने बोल दिया कि मैं नहीं पढ़ा पाऊँगी।"
"फिर?"
"फिर क्या सर लगे सबके सामने मुझे समझाने कि मना नहीं करना चाहिए और आपकी तारीफों के पुल बाँधने लगे, कहने लगे ये प्रिंसिपल सर बैठे हैं; पूछो इनसे नंदिनी मैम को इन्होंने ई. वी. एस. पढ़ाने को दिया था, वो तो उनका सब्जेक्ट भी नहीं है पर उन्होंने एक बार भी मना नहीं किया और पूरा सेशन बिना किसी शिकायत के ई. वी. एस. पढ़ाती रही हैं। आपको तो आपका ही सब्जेक्ट दे रहे हैं।"
तो मैंने कहा-"लेकिन सर मैंने नाइंथ-टेन्थ पहले कभी नहीं पढ़ाया।" तो कहने लगे- "नंदिनी मैडम ने भी नाइंथ-टेन्थ पहले कभी नहीं पढ़ाया था पर अब पढ़ा रही हैं न! उन्होंने तो एकबार भी मना नहीं किया।"
"ये तो सर वही कह रहे थे जो मैंने किया, इसमें तारीफ क्या है।" नंदिनी ने कहा।
"तारीफ ही है और कैसे की जाती है तारीफ!" दामिनी ने तुनक कर कहा।
"कोई बात नहीं तुम भी पढ़ाना शुरू कर दो कोई प्रॉब्लम नह़ी होगी साथ ही तारीफ भी मिलेगी।" नंदिनी ने कहा।
"मैडम मैं जरा से पैसे के लिए डबल-ट्रिपल काम नहीं करने वाली, नाइंथ-टेन्थ के लेबल की सैलरी की बात थोड़ी न हुई थी, अब उसी सैलरी में मैं सीनियर क्लास भी पढ़ाऊँ! तारीफ़ बटोरने के लिए ऐसी चमचागिरी मुझसे नहीं होगी।"
नंदिनी को ऐसा लगा मानो दामिनी ने उसे तमाचा मार दिया हो, वह बोली- "तुम्हारा मतलब है मैं तारीफ बटोरने के लिए चमचागिरी करती हूँ!"
"नहीं मैं आपको नहीं कह रही, पर मुझसे नहीं होगा।" दामिनी ने लापरवाही से कंधे उचकाते हुए कहा।
नंदिनी को अपने और दामिनी के बीच कोई अनदेखी सी दीवार महसूस हुई, उसे लगा कि उसकी प्रशंसा सुनकर दामिनी को खुश होना चाहिए था पर यहाँ तो उल्टा ही प्रभाव दिखाई दे रहा था। उसने तो नंदिनी पर ही सवालिया चिह्न लगा दिया था।
समय अपनी गति से बढ़ता रहा दोनों का साथ आना-जाना अनवरत जारी रहा किन्तु दामिनी का झुकाव नंदिनी से हटकर दूसरी अध्यापिकाओं की ओर अधिक बढ़ने लगा साथ ही वह ऐसे-ऐसे मजाक करने लगी जो उसे भी पता था कि नंदिनी को पसंद नहीं आएँगे, पर नंदिनी चुप रहती।
मानवीय प्रवृत्ति है कि जो व्यवहार या बातें हृदय पर आघात लगाती हैं अति व्यस्तता के बावज़ूद मानव मस्तिष्क न चाहते हुए भी उन बातों को सोचने का समय निकाल ही लेता है और मन को आहत करता रहता है ऐसा ही कुछ नंदिनी के भी साथ था इसके बाद भी वह जब तक स्कूल में होती तब तक उसे किसी अन्य बात का ध्यान ही नहीं रहता वह अपनी कक्षाओं के विद्यार्थियों को सिर्फ अपने पीरियड्स में ही नहीं पढ़ाती बल्कि हर समय उनके लिए कुछ न कुछ सोचती और उनकी तैयारियों में ही व्यस्त रहती।
कक्षाध्यापिका के तौर पर अपनी कक्षा के विद्यार्थियों को आत्म-अनुशासित बनाने के लिए उसने इंग्लिश-स्पीकिंग, यूनीफार्म, अनुशासन, भाषा की शुद्धता, विषयगत दक्षता तथा अध्यापक और सहपाठियों के प्रति व्यवहार आदि को सुधारने के लिए उसने चार्ट बनवाया और दैनिक ग्रेडिंग करने लगी जिसमें उसने सत्य बोलने को सबसे श्रेयस्कर बताया। बच्चे तो कच्ची माटी होते हैं, उन्हें जैसा आकार दो उसी में ढल जाते हैं, फिर प्यार पाकर तो वो अध्यापिका की हर बात को मानते हैं, कम से कम नंदिनी की कक्षा के बच्चे तो ऐसे ही हो गए थे। उसे किसी बच्चे की गलती को बताने के लिए अपनी बात उस पर थोपनी नहीं पड़ती। बच्चे खुद खड़े होकर बताते कि आज उनके जूते पॉलिश नहीं हैं, या आज गृहकार्य पूर्ण नहीं किया। किसी अन्य बच्चे से लड़ाई होती तो नंदिनी के सामने अपनी गलती मानने में एक पल भी नहीं लगाते। अब उसे बच्चों को जैसा बनाना था वो बना चुकी थी, उसे तो अब बस पढ़ाना था और समय-समय पर कुछ न कुछ नया प्रयोग करते रहना था, जिसमें बच्चों का पूरा सहयोग था। अनुशासन तो क्या किसी भी प्रकार की शिकायत अब कोई अध्यापक नहीं करते उल्टा नंदिनी ही पूछती कि किसी को किसी बच्चे से कोई समस्या हो तो कहें। पर जब बच्चों ने अध्यापक को सम्मान देना उनकी हर बात मानना शुरू कर दिया तो सकारात्मक दिशा गमन तो सभी को दृष्टिगोचर हो रहा था तो शिकायत कैसे होती? साथ ही बच्चों के माता-पिता की शिकायतें भी दूर हो चुकी थीं, सभी अपने बच्चों के व्यवहार से खुश थे।
ऐसा नहीं कि बच्चे गलती नहीं करते पर बताए जाने पर उसे स्वीकर कर सुधारने का प्रयास करते। यही तो चाहती थी वो।
पर बच्चों को सिखाना तो आसान होता है, क्योंकि वो जानते हैं कि वो सीखने आए हैं और निश्छल मन से इस सत्य को स्वीकारते हैं, लेकिन उन बड़ों को नहीं सिखाया जा सकता जो अपने मन में ईर्ष्या और अहंकार पाल लेते हैं, उन्हें तो सिर्फ वक्त ही सिखा सकता है।  नंदिनी का मन व्यथित होता, वो अपने आप से ही लड़ रही थी कि उसे दामिनी की उपेक्षा को अनदेखा करना है परंतु मानवीय भावनाओं को काबू कर पाना इतना ही सहज होता तो वह कभी दुखी ही नहीं होता। वह मन ही मन सोचती कि आखिर उससे क्या गलती हुई जिसके कारण दामिनी का उसके प्रति रवैया ही बदल गया, पर उसके पास कोई जवाब नहीं था।
शीतकालीन अवकाश चल रहा था परंतु अध्यापकों की छुट्टी नहीं थी.... कुछ अध्यापक स्टाफ-रूम में तो कुछ किसी अन्य कक्षाओं में अपनी-अपनी सुविधानुसार कार्य कर रहे थे। नंदिनी को सेलरी-सर्टिफिकेट बनवाना था, जिसके लिए वह कल ही बात कर चुकी थी, प्रधानाचार्य महोदय के कहने से सुबह ही लिखित में प्रार्थना-पत्र भी दे चुकी थी। दोपहर के 12 बजने वाले थे पर अब तक कोई जवाब नहीं मिला था इसलिए पूछने के लिए नंदिनी ऑफिस में गई....
"सर वो मैंने सेलरी-सर्टिफिकेट के लिए एप्लीकेशन दिया था....."
"ओ यस यस मैडम, मैंने अकाउंट ऑफिस में बोला तो था पर अभी तक उन्होंने भिजवाया नहीं, ऐसा कीजिए आप थोड़ी देर के बाद आइए मैं तब तक मँगवाता हूँ।" प्रधानाचार्य उसकी बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़े।
वह वापस कंप्यूटर लैब में आकर अपने काम में व्यस्त हो गई। दामिनी जो पहले कहीं और बैठी थी अब आकर वहीं बैठ गई, पर दोनों चुपचाप अपने-अपने रजिस्टर में व्यस्त थीं। थोड़ी देर के बाद नंदिनी पुनः प्रिंसिपल-ऑफिस में गई... इस बार प्रिंसिपल ने उसे सर्टिफिकेट तो दिया पर उसमें कुछ गलती थी तो उसे अकाउंटेंट को वापस देकर पुनः बनवाने का निर्देश दिया। विद्यालय की छुट्टी होने का समय हो रहा था इसलिए वह चाहती थी कि आज ही काम हो जाए इसलिए स्वयं अकाउंट ऑफिस में ठीक करने के लिए देकर आई फिर कुछ देर बाद खुद ही वहाँ से सर्टिफिकेट लेकर प्रिंसिपल से हस्ताक्षर करवाने के लिए ऑफिस मे जाने को उठी ही थी कि दामिनी कमेंट्री करने वाले अंदाज में बोल पड़ी..
"ये अब फिर मैडम जाएँगी प्रिंसिपल सर के पास।"
"हाँ जा रही हूँ तो?" नंदिनी को उसका यह अंदाज बड़ा ही बेढंगा लगा।
"नहीं..नहीं आप जाओ मैं कहाँ कुछ कह रही हूँ।" उसने मुस्कुराते हुए कहा।
"तुम्हारा कहना बड़ा अजीब लगा, मुझे अगर काम है तो मैं तो जाऊँगी ही फिर तुम ऐसे क्यों बोल रही हो?" नंदिनी ने कहा
"हाँ काम तो आपको ही पड़ते हैं, वैसे भी आजकल कुछ ज्यादा ही काम पड़ रहे हैं, मैं देख रही हूँ तीन चार चक्कर लगा चुकी हो आप। कोई नहीं जाओ..जाओ।"
उसकी बातों में छिपे व्यंग्य को नंदिनी भाँप गई और बोली- "दामिनी अपनी सीमा में रहकर बात करो, तुम्हारी बातों का मैं क्या मतलब समझूँ?"
दामिनी समझ गई कि नंदिनी क्रोधित हो गई है, वह बोली.."अरे मैडम आप तो मजाक का भी बुरा मान गईं।
"मुझे ऐसे घटिया मजाक बिल्कुल पसंद नहीं, क्या मुझे कभी किसी से ऐसे मजाक करते देखा है तुमने?"
"पर मैं तो करती हूँ न! आपतो जानती हो।"
नहीं मैं नहीं जानती, और करती भी हो तो मुझसे मत करना।" कहते हुए नंदिनी जाने लगी तभी दामिनी बोल पड़ी..."पर मैं तो बिना मजाक किए रह ही नहीं सकती, जिससे बोलूँगी उससे मजाक भी करूँगी।"
जाते-जाते नंदिनी के पाँव अपनी जगह रुक गए, अपनी जगह खड़ी होकर उसने गहरी सी सांस ली और शांत होकर बोली "मजाक की भी लिमिट होती है दामिनी, अगर ऐसे मजाक करने हैं तो प्लीज, चाहे मुझसे न बोलो चलेगा, पर मैं इस प्रकार के घटिया मजाक सहन नहीं करूँगी।" कहकर वह बिना जवाब की प्रतीक्षा किए गेट से निकल गई।
वह नहीं जानती थी कि उसकी यह बात उसके लिए एक मद्धिम गति से असर करने वाला जहर सिद्ध होगा। उसका और दामिनी का आपस में बात करना बिल्कुल बंद हो चुका था, उसने स्वयं तो किसी से कुछ नहीं कहा पर स्कूल में सभी को उनके आपसी दूरी का पता चल चुका था। अध्यापिकाएँ भी ग्रुप बनाने लगीं कोई नंदिनी से दामिनी की बुराई करती तो कोई दामिनी के साथ मिलकर नंदिनी पर कटाक्ष करती। नंदिनी दुखी होती पर जहाँ तक होता अनसुना करने की कोशिश करती। एक-दो बार बात डायरेक्टर तक भी पहुँची, उन्होंने नंदिनी से कहा- "आप उनसे बात कीजिए"
"सर वो मेरी क्लास में साइंस पढ़ाती हैं तो बच्चों से संबंधित जो बातें आवश्यक होती हैं, मैं करती हूँ, इसके अलावा अधिक पर्सनल होना शायद हम दोनों के लिए उचित न होगा।" उसने जवाब दिया।
डायरेक्टर ने उसे भेज दिया। धीरे-धीरे जो अध्यापिका दामिनी के साथ मिलकर नंदिनी पर कटाक्ष करती थी वो भी उससे कटी-कटी रहने लगी। कुछ महीने पश्चात् उसे बिना कारण बताए आनन-फानन में सेवा मुक्त कर दिया गया। अब नंदिनी को ऐसा महसूस होने लगा कि शायद उसे भी कभी भी मना किया जा सकता है, तो क्या विद्यालय में बने रहने के लिए अब दामिनी की गलत बातें सहन करते हुए उससे मिल-जुलकर रहना होगा? पर मेरे लिए तो ऐसा संभव नहीं। नंदिनी ने सोचा।
पर उसे ऐसा महसूस होने लगा था कि अब उसके द्वारा करवाए गए किसी भी क्रियाकलाप को डायरेक्ट द्वारा अनदेखा किया जाने लगा। इसी समय न जाने क्या हुआ कि विद्यालय के  प्रधानाचार्य ने अकस्मात् विद्यालय छोड़ दिया। उड़ती-उड़ती खबर मिली कि उन्हें निकाल दिया गया। दो-तीन महीने के उपरांत नए प्रधानाचार्य की नियुक्ति हुई।
नए प्रधानाचार्य की नियुक्ति अर्थात् कई नियमों में परिवर्तन और कई नए नियमों का लागू होना।
वार्षिक त्रिदिवसीय खेल प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, नए प्रधानाचार्य के साथ सामंजस्य बिठाने में जहाँ कुछ अध्यापिकाओं को काफी मशक्कत के बाद भी डाँट पड़ रही थी वहीं अखबार के लिए प्रतिवेदन लिखने के लिए नंदिनी की प्रधानाचार्य के द्वारा प्रशंसा की गई। नंदिनी जो कि सभी को डाँट पड़ते देख डर रही थी कि इसमें भी कमी न निकाल दें; प्रशंसा सुन मन आत्मविश्वास से भर गया। अंग्रेजी में कहते हैं न कि 'फर्स्ट इम्प्रेशन इज़ द लास्ट इम्प्रेशन'। यही नंदिनी के साथ हुआ, प्रधानाचार्य की नजरों में उसकी छवि प्रभावशाली बनी। जहाँ एक ओर नंदिनी अपने अध्यापन, विद्यार्थियों के व्यवहार और रिज़ल्ट, उनके माता-पिता की प्रतिक्रिया, प्रधानाचार्य और अन्य सह अध्यापक-अध्यापिकाओं के सहयोग और व्यवहार से सकारात्मक ऊर्जा से प्रफुल्लित होती वहीं दूसरी ओर यदा-कदा दामिनी की उसके विरुद्ध चली गई चालें, उसके कटाक्ष और  स्कूल मैनेजमेंट का उसके प्रति उदासीन रवैया उसे भीतर से आहत करता फिरभी वह निष्ठापूर्वक अपना काम करती रही।
सत्र समाप्त हो गया और नए सत्र में प्रधानाचार्य ने कक्षाध्यापक और कक्षाध्यापिकाओं की कक्षा बदल दी। नंदिनी को भी छठीं कक्षा दी गई। उसने सोचा अब फिर तीन साल पीछे जाकर इन बच्चों के साथ मेहनत करनी होगी और उसने उसी प्रकार उन बच्चों को समझाना शुरू किया, जैसे पिछली कक्षा के बच्चों को समझाती थी।
"बच्चों आप लोग एक बात ध्यान रखिएगा कि अगर आप लोगों को कोई भी प्रॉब्लम हो तो आप लोग मुझे यानी क्लास-टीचर को जरूर बताएँगे, तभी तो मैं आपकी प्रॉब्लम्स शार्ट-आउट कर पाऊँगी..." तभी उसकी बात बीच में ही रोककर एक बच्चा खड़ा होकर बोला-
"मैम डायरेक्टर सर ने कहा है कि मुझे अलग एक सीट पर अकेले बैठाया करें।"
"क्यों?" नंदिनी ने पूछा।
"मैम, किसी बच्चे के साथ में बैठता हूँ तो मेरा हाथ दुखता है।"
"क्या हुआ तुम्हारे हाथ में?" नंदिनी ने पूछा तो उस बच्चे ने अपना बायाँ हाथ जो अब तक पीछे छिपा रखा था आगे कर दिया।
देखते नंदिनी एकदम से सिहर उठी, उसका हाथ कलाई से कटा हुआ था, हथेली और उँगलियाँ थीं ही नहीं, हालांकि कई वर्ष पहले की बात थी तो अब कोई ज़ख्म नहीं था फिरभी नंदिनी ने पहली बार देखा था इसलिए उसको बेहद दुख हुआ। बच्चों ने बताया कि घास काटने की मशीन में हाथ कट गया था। उस समय कितना दर्द हुआ होगा यह सोचकर ही नंदिनी की आँखें भर आईं परंतु अगले पल वह स्वयं को नियंत्रित करके बोली- "बेटा आप डेक्स के बाँयी ओर बैठो तो आपका हाथ बाहर की ओर रहेगा, फिर यह किसी से छुएगा नहीं तो आपको दर्द भी नहीं होगा।
"पर मैम डायरेक्टर सर ने मुझे अलग बैठने के लिए कहा था।"
"बेटा डायरेक्टर सर के पास आप गए थे?"
नंदिनी ने पूछा।
"जी नहीं पापा ने कहा था।"
"ओके, पर बेटा बात सिर्फ अलग बैठने की है या हाथ न दुखने की है? मेरा मतलब आपतो यही चाहते हो न कि हाथ न दुखे बस!"
"जी।"
तो मैं जैसे कह रही हूँ, आज वैसे ही बैठ जाओ और उसके बाद भी आपको अगर कोई परेशानी हो तो बताना मैं आपको अलग सीट पर बैठा दूँगी।"
उस बच्चे ने वैसा ही किया पर उसके चेहरे से नागवारी साफ झलक रही थी। अब आप सभी लोग मेरी बात ध्यान से सुनिए...."आप लोगों को कोई भी प्रॉब्लम हो तो सबसे पहले क्लास-टीचर को बताएँगे, क्लास-टीचर आपकी प्रॉब्लम सॉल्व न करें तो प्रिंसिपल सर को बताएँगे अगर वहाँ भी आपकी प्रॉब्लम सॉल्व नहीं होती तब आप डायरेक्टर सर के पास जाएँगे, समझे।"
"पर मैम हमारे पापा तो कहते हैं कि कोई भी परेशानी हो तो डायरेक्टर सर के पास चले जाना।" एक दूसरा बच्चा बोला।
"बेटा आपके पापा डायरेक्टर सर को पर्सनली जानते हैं, इसलिए ऐसा कहते हैं, पर आप सोचिए ये पूरा स्कूल डायरेक्टर सर का है, सारे बच्चे उनके पास जाएँगे तो वो किस-किसकी प्रॉब्लम सॉल्व करेंगे, आखिर वो प्रिंसिपल सर से कहेंगे और प्रिंसिपल सर क्लास-टीचर को फिर क्लास-टीचर ही आपकी हेल्प करेगी, तो इससे अच्छा है कि आप पहले ही क्लास-टीचर को ही बताएँ। वैसे भी छोटी-छोटी सी बातों के लिए डायरेक्टर सर के पास जाना अच्छे बच्चों का काम नहीं, तो आगे से ध्यान रखिएगा।
क्रमश

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