मंगलवार

पुरस्कार.... भाग- 2


नंदिनी ने बोल तो दिया कि आ जाएगी पर वह सोच में पड़ गई कि क्या करे...पृथ्वी सर से क्या कहे और अनुभव सर को भी मना नहीं करना चाहती क्योंकि उसने ही उनसे कहा था कि आपके स्कूल में कोई वैकेंसी हो तो बताइएगा, स्कूल की रैपुटेशन भी अच्छी है तो निश्चय ही वेतन भी यहाँ से ज्यादा ही होगा। जब मेहनत करनी ही है तो जहाँ अधिक अवसर हों क्यों न पहले वहाँ ही देख लें! पर पृथ्वी सर को क्या कहूँ?
इन्हीं ख्यालों में खोई नंदिनी ने पृथ्वी सर को फोन लगा दिया।
"हैलो...हैलो"...
दूसरी ओर से आवाज आ रही थी और नंदिनी फोन कान से लगाए समझ नहीं पा रही थी कि क्या बहाना बनाए.....फिर उसने वो सारी बातें बता दीं जो अभी अनुभव सर से हुई थीं और बोली-
"सर आप बताइए मेरे लिए क्या उचित होगा? मैं आपको भी मना नहीं करना चाहती और दूसरी ओर भी शायद अच्छी अपॉर्च्युनिटी हो सकती है।"
"मैम मैं जानता हूँ, आप पहले वहाँ जाइए अगर वहाँ आपको ठीक न लगे तो यहाँ तो आपकी नियुक्ति तय है ही।" पृथ्वी सर ने कहा।
"धन्यवाद सर, आपने मेरी समस्या दूर कर दी, आपसे शाम को बात करती हूँ।" कहकर नंदिनी ने फोन रख दिया और अनुभव सर के स्कूल जाने की तैयारी करने लगी।
दोपहर के करीब तीन बजे तक नंदिनी वापस घर आ गई, वह संतुष्ट थी कि उसका इंटरव्यू अच्छा हुआ और वेतन भी संतोषजनक था बस अब उसे पृथ्वी सर को बताना है, उम्मीद थी कि वह समझेंगे। यही सोचकर उसने उन्हें फोन किया और जैसी उसे उम्मीद थी उन्होंने भी उसको वहीं जाने की सलाह दी।

नंदिनी अगले ही दिन से स्कूल जाने लगी, अनुभव सर पिछले स्कूल में नंदिनी के सह अध्यापक रह चुके थे और इस स्कूल में उन्हें करीब दो साल हो चुके थे, उनका प्रभाव भी यहाँ अच्छा था साथ ही कई और अध्यापक थे जो पहले नंदिनी के साथ अध्यापन कर चुके थे  इसलिए नंदिनी को इस स्कूल के वातावरण में बिल्कुल भी अजनबीपन नहीं लगा; सोने पर सुहागा तो तब हुआ जब वह जिस भी कक्षा में जाती हर कक्षा में उसे कुछ बच्चे ऐसे मिलते जो उसके पढ़ाए हुए होते। तो उसे सामंजस्य बिठाने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा, सभी का व्यवहार उसके प्रति सम्मान पूर्ण और सहयोग का रहा।
"गुड मॉर्निंग मैम।" नंदिनी के कक्षा में प्रवेश करते ही छात्र-छात्राओं ने खड़े होकर बड़ी गर्मजोशी से उसका स्वागत किया।
"गुड मॉर्निंग बच्चों, सिट डाउन प्लीज़।"
"मैंम आप हमें हिन्दी पढ़ाएँगीं?" एक छात्र ने पूछा तभी दूसरे ने उसे कोहनी मारते हुए कहा- "अरे नहीं, मैम तो संस्कृत की टीचर हैं, वो संस्कृत पढ़ाएँगीं।"
"अच्छा! आपको कैसे पता कि मैं संस्कृत पढ़ाती हूँ?" उसने मुस्कुराते हुए दूसरे बच्चे से पूछा।
"मैम आप हमें पिछले स्कूल में संस्कृत पढ़ाती थीं न!"
"तो क्या हुआ मैम वहाँ हमारे सेक्शन में हिन्दी भी पढ़ाती थीं।" तपाक से पहला बच्चा बोला।
"ओह! तो आप उस स्कूल में थे पहले, तभी मैं सोच रही थी कि आप लोग पहचाने हुए से क्यों लग रहे हो? खैर! मैं आप लोगों को हिन्दी पढ़ाऊँगी।"
"चुप कर मैम बहुत स्ट्रिक्ट हैं।" अचानक नंदिनी के कान में किसी अन्य बच्चे की आवाज पड़ी।
"क्यों भई आपको कैसे पता कि मैं बहुत स्ट्रिक्ट हूँ?" उसने मुस्कुराते हुए उस बच्चे से पूछा।
"मैम जो बच्चे डिसिप्लिन में नहीं रहते आप उन्हें पंखे से टांगकर मारती हो?" दूसरे बच्चे ने पूछा।
"क्या! पंखे से टांगकर! ऐसा किसने कहा?" नंदिनी को बहुत आश्चर्य हुआ।
"मैम इस रवि ने बताया।"
"रवि आपने कब मुझे ऐसा करते देखा?"
"मैम मैं तो इन लोगों को बस डरा रहा था, और ये सच मान गए।" उसने मुस्कुराते हुए कहा।
आप लोग इतना भी मत डरिएगा बच्चों, मैं डिसिप्लिन पसंद करती हूँ ये सच है, जब मैं पढ़ा रही हूँ तो मुझे आप सबकी 100% प्रजेन्स चाहिए पर उसके लिए मुझे किसी को मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी, आप लोग खुद डिसिप्लिन में रहेंगे, सो डोंट वरी। और हाँ पंखे से तो बिल्कुल नहीं लटकाऊँगी।" उसने हँसते हुए कहा साथ ही सभी बच्चे हँस पड़े।
पहले दिन लगभग सभी कक्षाओं में बच्चों ने उसका इसी प्रकार स्वागत किया। इसीलिए किसी भी नई जगह जाकर खुद को स्थापित करने और अपनी योग्यता से परिचित करवाने में जो समय और ऊर्जा लगती है उस जद्दोजहद से वह बच गई। अब उसे पढ़ाना था और अपनी योग्यताओं को सिद्ध कर दिखाना था क्योंकि उसे आभास था कि प्राचार्य महोदय और डायरेक्टर महोदय को शायद उससे किसी भी अन्य नई अध्यापिका की तुलना में अधिक उम्मीदें थीं परंतु इसके लिए उसे कोई अतिरिक्त ऊर्जा नहीं लगानी पड़ी बल्कि पिछले स्कूल में वह जितनी मेहनत करती थी उसकी तुलना में यहाँ कम ही करनी पड़ी इसलिए उसे काफी आराम महसूस होता था पर नंदिनी को आराम करने की आदत कहाँ...
अभी दो-तीन दिन ही हुए थे कि प्राचार्य महोदय ने नंदिनी को बुलवाया...
"मे आई कम इन सर?" नंदिनी ने प्रिन्सिपल ऑफिस के गेट पर पहुँचकर प्रवेश की अनुमति माँगी और भीतर आई....
"मैडम क्या आप एक फेवर करेंगीं?" प्रिंसिपल ने कहा।
"फेवर! ये आप क्या कह रहे हैं सर? आप जो भी कार्य या रिस्पॉन्सिबिलिटी देंगे वो तो मुझे करना ही होगा फिर फेवर कैसा? नंदिनी चकित होती हुई बोली।
"आई नो कि आप हिन्दी-टीचर हैं पर अभी जिन मैडम की जगह आपकी नियुक्ति हुई है वो E.V.S. की टीचर थीं। तो क्या आप फ़िफ्थ क्लास की E.V.S. पढ़ा सकती हैं? आपको उसी क्लास की क्लास टीचर भी बना देंगे।"
"पर सर, मैं कैसे पढ़ा पाऊँगी? मेरी इंग्लिश इतनी अच्छी नहीं है।"
"उसकी चिंता आप न करें यदि मैं आपको ये रिस्पॉन्सबिलिटी दे रहा हूँ तो योग्यता देखकर ही दे रहा हूँ, मुझे विश्वास है कि आपको कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।"
नंदिनी को खुशी हुई कि यहाँ पर भी प्रधानाचार्य ने उस पर विश्वास दर्शाया, फिर वह मना कैसे कर सकती थी।
अब वह कक्षा पाँच की कक्षाध्यापिका थी, वह पहले घर पर खुद E.V.S. के चैप्टर का अध्ययन करती फिर कक्षा के बच्चों को पढ़ाती, दूसरे सेक्शन में पढ़ाने वाले अध्यापक भी उसकी सहायता करने को तत्पर रहते। लगभग एक माह बाद उसे तीसरी कक्षा का E.V.S. भी यह कहकर दे दिया गया कि जब तक नई अध्यापिका नहीं आतीं आप ये क्लास ले लीजिए, वैसे भी जब आप पाँचवीं कक्षा को पढ़ा लेती हैं तो ये तो तीसरी कक्षा है। नंदिनी मना करना चाहते हुए भी मना नहीं कर सकी और उसने हिन्दी के साथ-साथ E.V.S. भी पढ़ाना शुरू किया।
क्रमश

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.10.18 को चर्चा मंच पर प्रस्तुत चर्चा - 3128 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

Thanks For Visit Here.