शुक्रवार

प्रसिद्धि की भूख' तकनीक की देन..

प्रसिद्धि की भूख' तकनीक की देन..

पहले समाज में दस-बीस प्रतिशत लोग ऐसे होते थे जो समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए प्रयत्नशील होते होंगे। वैसे समाज में अपनी पहचान, मान-सम्मान तो सभी को प्रिय होता है परंतु रोजी-रोटी, पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों से समय मिले तभी तो कोई इस विषय में सोचे, यही वजह है कि इस रेस के धावक पहले कम होते थे, किन्तु जैसे-जैसे तकनीक का विकास होता गया, अंतरजाल का ताना-बाना पसरता गया, लोगों की सहूलियतें बढ़ती गईं। जब से स्मार्टफोन ने अपना जाल फैलाया तब से फेसबुक, व्ह्ट्स्अप, इंस्टाग्राम और तमाम तरह के ऐप हैं जिन्होंने लोगों में नाम और पहचान बनाने की भूख को ऐसी हवा दे दी है कि अब दस-बीस की जगह पचास-साठ फीसदी लोग इस प्रतिस्पर्धा के प्रतिभागी बन गए हैं। क्यों न हो कैंडीकैम, ब्यूटीप्लस आदि ऐप का प्रयोग करके फोटो में सुंदरता को अधिक निखारकर असलियत से ख्वाबों वाली खूबसूरती पाना और कम उम्र दिखा पाना यह सब तकनीक से ही तो संभव हो रहा है, अभिनय न भी आता हो तो क्या हुआ वीगो है न! जरा से लटके-झटके देकर वीडियो बनाओ और पोस्ट करके बन जाओ अभिनेता या अभिनेत्री, ऐसे ही गायक बनने के लिए भी स्टारमेकर जैसे कई ऐप हैं उन पर गाना गाकर और पोस्ट करके लाइक और कमेंट्स बटोरकर आभासी मित्रों के बीच स्टार बन जाना आसान हो गया है।
जब इतनी आसानी से लोगों के बीच आपकी पहचान बनती हो तो क्यों नहीं इस रेस के धावक बनना चाहेंगे और इसमें कोई बुराई भी नहीं है, व्यक्ति का स्वयं का मनोरंजन होता है,  चाहे कुछ पल की ही सही, प्रसन्नता मिलती है और किसी अन्य को कुछ हानि भी नहीं होती तथा आभासी दुनिया में उसके मित्रों की सूची बढ़ती जाती है।
किन्तु प्रसिद्ध होने की यह भूख केवल मनोरंजन तक ही सीमित नहीं रह गई है, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी फैल गई है; जहाँ वास्तविक रूप से रचनात्मकता दिखाने की आवश्यकता होती है, वहाँ भी कभी-कभी प्रसिद्धि की यह भूख कुछ व्यक्तियों में ईर्ष्या और द्वेष की भावना को जन्म देती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति स्वयं का सही आंकलन किए बिना नकारात्मक पथ का पथगामी बन जाता है और वह अपने समक्ष अपने से अधिक क्षमतावान व्यक्ति को देखना नहीं चाहता और ऐसा अधिकतर समान क्षेत्र में क्रियाशील व्यक्तित्व के प्रति होता है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति स्वयं से अधिक क्षमतावान व्यक्ति पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना प्रारंभ कर देता है, सोशल मीडिया ही तो है, यह अगर लोगों के मध्य किसी की छवि बना सकती है तो बिगाड़ भी सकती है, आप किसी के भी संपर्क में आकर किसी की भी बुराई करने के लिए स्वतंत्र हैं, कौन आपको रोकेगा और कैसे? ज्यादा से ज्यादा ब्लॉक कर दिए जाओगे, तो क्या! उसके किसी अन्य मित्र से बुराई शुरू कर दीजिए। यही तो होता है, जिससे वह अपने नकारात्मक भावों के साथ-साथ स्वयं से अधिक क्षमतावान व्यक्ति के साथ-साथ चलता है और लोगों की नजरों में आ जाता है; इस सत्य से जान बूझकर कर अंजान बनते हुए कि ऐसी प्रसिद्धि क्षणिक होती है स्थायी कभी नहीं हो सकती, वह इसमें ही अपने लक्ष्य की पूर्ति मान प्रसन्न हो जाता है और सोचता है कि आज के समय में कितना आसान है प्रसिद्ध होना.. परिश्रम भी नहीं करना पड़ता, 'हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा।' किसी ने क्या खूब कहा- "बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा!"

मालती मिश्रा 'मयंती'

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सार्थक विषय पर आपने चर्चा की है ,
    मालती जी प्रतिस्पर्धा में बहुत लोग भाग लेते है,परंतु जीत उसी की होती है जिसमें कोई विशेषता होती है .....

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रितु जी आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपकी आभारी हूँ।

      हटाएं

Thanks For Visit Here.