रविवार

पावन उद्देश्य की पहल है- 'इनसे हैं हम'

 पावन उद्देश्य की पहल है- 'इनसे हैं हम'





हमारे देश की सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और भौगौलिक आजादी को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले इक्यावन गौरवशाली पूर्वजों की गौरवगाथा को प्राप्त करके अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रही हूँ।

जिस प्रकार समस्त वसुधा को आलोकित करने के लिए सूर्य के प्रकाश, भवन को आलोकित करने के लिए दीप के प्रकाश और मन को आलोकित करने के लिए ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता होती है उसी प्रकार समाज और देश को आलोकित करने के लिए सुदृढ़, सर्वमान्य संस्कृति की आवश्यकता होती है और हमारा देश अपनी इसी अलौकिक सांस्कृतिक खूबियों और  समृद्धिशाली सभ्यता के कारण सदियों से विदेशी आक्रांताओं, लुटेरों की लोलुप आकांक्षाओं का केन्द्र रहा है। 

देश की अखण्डता और गौरवशाली संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए समय-समय पर भारत माँ के वीर सपूतों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करके अपने जीवन को स्वतंत्रता प्राप्ति के यज्ञ में आहूत कर दिया, हम सदैव उन महान विभूतियों के ऋणी रहेंगे। 

नि:संदेह हमारे देश का इतिहास बहुत समृद्ध है किन्तु दुर्भाग्यवश उस समृद्धि के महानायकों की शौर्यगाथाएँ समय के गर्त में दफन होकर रह गईं और जितनी जानकारी उपलब्ध है वह अपूर्ण और निराशाजनक है। देश के वंशज अपने पूर्वजों के शौर्य और उनके बलिदानों से अनभिज्ञ रहें, यह बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण है। हमारे जिन पूर्वजों के कारण वर्तमान समय में हमारा अस्तित्व है, हम अधिकारपूर्वक स्वयं को इस देश का अटूट हिस्सा मानते हैं, उन्हीं शौर्यवान पूर्वजों की शौर्यगाथाओं को नितांत योजनाबद्ध रूप से दबा दिया गया और इतिहास में जो भी दर्शाया गया वह नकारात्मक और निराशाजनक छवि को ही प्रस्तुत करता है तथा अधिकतर महापुरुषों के विषय में तो ज्ञात ही नहीं हो सका। किन्तु जिस प्रकार बादलों के टुकड़े सूर्य को अपने पीछे छिपाकर भी उसकी किरणों के प्रकाश को फैलने से नहीं रोक पाते, उसी तरह उन महान पूर्वजों की शौर्यगाथाओं का आलोक भी आखिर समय के बादलों के पीछे से झाँकने लगा और भा०ज०म० के संरक्षक आ० राजेन्द्र अग्रवाल जी की सोच को मूर्त रूप देने के लिए आ० धर्मचन्द्र पोद्दार जी के मार्गदर्शन में देश के इक्यावन प्रांतों से इक्यावन प्रबुद्ध लेखकों ने हजारों वर्ष पुराने इतिहास को खंगालने का प्रयास किया, तथा डॉ० अवधेश कुमार 'अवध' जी के कुशल संपादन में 'इनसे हैं हम' का उद्भव हुआ। सह संपादक नितु सिंह नव्या और मुख पृष्ठ सज्जा के लिए आ० अवनीत कौर दीपाली जी का सहयोग प्रशंसनीय है। आ० अवधेश कुमार 'अवध' जी की कृपा से मुझे भी इस महती प्रयास में यूनानी इतिहासकारों द्वारा महिमामंडित सिकंदर के भारत को पददलित करके इस महान देश पर शासन करने के कुत्सित मंशाओं और प्रयासों पर विराम लगाकर उसे वापस लौटने पर विवश करने वाले पौरववंशी राजा महाराज पुरुषोत्तम के गौरवशाली जीवन पर, 'सीमा के सजग प्रहरी महाराज पुरु' शीर्षक के माध्यम से प्रकाश डालकर अपना आंशिक योगदान देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अपने देश के इन महान विभूतियों के त्याग और बलिदान को बच्चा-बच्चा जाने, इसी पावन उद्देश्य की पहल है 'इनसे हैं हम'। 

पुस्तक का परिचय देते हुए प्रधान संपादक डॉ० अवधेश कुमार 'अवध' लिखते हैं कि "लगभग सात लाख लोगों की सीधी कुर्बानी और उनसे जुड़े असंख्य लोगों के अहर्निश तप-त्याग का प्रतिफल आजादी के रूप में मिला। भारत के विगत ढाई हजार साल के इतिहास पर निष्पक्ष दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि हमारे महानायक पूर्वजों की शौर्यगाथा का आंकलन सर्वथा उचित तरीके से नहीं किया गया है। कोई न कोई ऐसी शक्ति रही जिसने किसी पूर्वाग्रह वश महान पूर्वजों की छवि को नकारात्मक कलेवर में प्रस्तुत किया या उल्लेखनीय नहीं समझा। बहुधा जिन उद्देश्यों के लिए कुर्बानियाँ दी गईं, प्रायः उत्तराधिकारी भटकते हुए देखे गए। इसी मानसिक यंत्रणा से सम्यक मुक्ति का एक प्रयास है, 'इनसे हैं हम'।"

हमारी नव पीढ़ी को हमारे पूर्वजों के ऐतिहासिक संघर्ष, एकता, विद्धता और कर्मठता का पाठ पढ़ाने हेतु इन अनमोल विभूतियों के बारे में अवगत करवाने के लिए यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी।

इस पुस्तक के माध्यम से आगामी पीढ़ी इतिहास के गर्त में छिपे महान विभूतियों के शौर्यगाथाओं से परिचित हो सके, इस उद्देश्य पूर्ति के लिए संपादक मंडल तथा इससे जुड़े सभी लेखक/लेखिका सतत प्रयत्नशील हैं। इसी क्रम में यह पुस्तक प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति भवन में भी अपना स्थान बना चुकी है तथा जगह-जगह शिक्षा विभाग से जुड़े प्रतिनिधियों की उपस्थिति में इसका लोकार्पण किया गया तथा इसे अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। यह पुस्तक सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे कुछ देशों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी है, अपने गौरवशाली इतिहास को जानने की तीव्र उत्कंठा के फलस्वरूप माँग इतनी बढ़ गई कि इस पुस्तक का पहला संस्करण (एडिशन) समाप्त हो चुका तथा दूसरे की तैयारी चल रही है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि इस पुस्तक में वर्णित महापुरुषों की जीवनगाथा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जा सकता है, जो कि हम सभी के लिए हर्षोल्लास का विषय है। इक्यावन लेखक/लेखिकाओं की साहित्यिक खोज की यज्ञाहुति का प्राकट्य यह महान पुस्तक राष्ट्र निर्माण के विराट यज्ञ में सच्चाई की परम आहुति है जिससे हमारे आने वाले भविष्य के कर्णधार अवश्य प्रेरित होंगे।

मालती मिश्रा 'मयंती'

malti3010@gmail.com


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