शनिवार

खौफ की वो रात

 खौफ की वो रात..



दूर-दूर तक खाली सड़क थी, कहीं-कहीं बर्फ जमी हुई और कहीं पिघलती हुई, दायीं ओर बादलों की चादर ओढ़े ऊँचे-ऊँचे पहाड़ और पहाड़ों से चादर खींचकर नीचे की ओर भागते-उतरते पेड़-पौधे और झाड़ियाँ। ऐसा लगता मानों बादलों और धुँध के चादर के छोटे-छोटे टुकड़े उनके भी हाथ में आ गए हैं। वहीं सड़क के दो-तीन मीटर की दूरी पर बायीं ओर गहरी घाटी में रुई के बड़े-बड़े फाहे पेड़ों और झाड़ियों को ढके हुए उन्हें काँपने से बचाने का असफल प्रयास कर रहे हैं। अँधेरा गहराता जा रहा था, देखते ही देखते आसमान में तारों के जमघट ने चाँद को घेर लिया। चमकती चाँदनी में सड़क पर भी जगह-जगह जमी हुई बर्फ झिलमिला रही थी, ऐसे में भी इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही वहाँ से कभी-कभी गुजर रही थीं, कहीं-कहीं लोग गाड़ी रोककर खुशनुमा मौसम का आनंद ले रहे थे। अक्षत गाड़ी को साठ-सत्तर की स्पीड से भगा रहा था। स्टीरियो में गाना बज रहा था...

हम जो चलने लगे, चलने लगे हैं ये रास्ते.... हाँ..हाँ हाँ..हाँ... हाँ.. चलने लगे...

"स्पीड कम करो बेबी, डर लग रहा है टायर स्लिप हो गया तो.." अक्षत के गले में बाँहें डालकर उसके कंधे पर सिर रखते हुए नियति बोली। 

"कुछ नहीं होगा जान, तू मेरे पास है तो मैं अपने लिए तुझे कुछ होने ही नहीं दे सकता।" अक्षत उसके गाल पर किस करते हुए बोला। 

"सच में मैं बहुत लकी हूँ बेबी, तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिले?" कहते हुए नियति ने उसके गाल पर किस कर लिया। 

"सीधी राह पर चलते-चलते पहले किसी गलत मोड़ पर मुड़ गया था जानू और उसे ही अपनी मंजिल मान लिया, जब तक आँखें खुली, बहुत देर हो चुकी थी।" कहते हुए वह जैसे कहीं खो सा गया। कुछ देर तक एक गहरा सन्नाटा सा घिर गया दोनों के बीच।

"क्या हुआ बेबी कहाँ खो गए?" नियति ने उसे झिंझोड़ते हुए कहा।

"क..कहीं नहीं, अपनी जान के साथ रहते हुए उसमें खोने की बजाय मैं और कहाँ खो सकता हूँ!! हमारा ये हनीमून बहुत ही इंट्रेस्टिंग होने वाला है, हमारे एक-एक पल को जी भर के जीना चाहता हूँ मैं, हम इन सात दिनों में इतना प्यार करेंगे कि किसी ने सात जन्मों में भी न किया हो, तू भी करेगी न यति?" अक्षत ने भावुक होते हुए कहा।

"करोगे से क्या मतलब है बेबी! अभी नहीं करते क्या? मैं तो अब भी तुम्हें प्यार करती हूँ, बल्कि प्यार करती थी इसीलिए तो शादी की।" नियति ने उसे अपनी बाँहों में और जोर से भींचते हुए कहा।


"वो तो है ही लेकिन..!!"

💠"लेकिन ये तो सिर्फ जिस्मानी प्यार की बात कर रहा है.." स्टीरियो पर बजता गाना बंद हो गया और उसमें एक सरसराती हुई आवाज गूँजी।

स्टेयरिंग पर अक्षत के हाथ काँप उठे और गाड़ी सड़क से बायीं ओर झाड़ियों को रौंदकर वापस सड़क पर आ गई। नियति चीख पड़ी, अक्षत के पैर यकायक ब्रेक पर चिपक गए और सन्नाटे को चीरती हुई एक तेज आवाज के साथ गाड़ी रुक गई। 


अक्षत और नियति दोनों ही हैरानी से इधर उधर देख रहे थे, नियति गाड़ी में पीछे आँखे फाड़कर ऐसे ध्यान से देख रही थी जैसे कोई सुई खोज रही हो।


"तुम ठीक तो हो न यति?" अक्षत ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा।


"ह...हाँ..और त..तुम?" 

"मैं..मैं भी ठीक हूँ। क्या तुमने भी वो आवाज़ सुनी, जो मैंने सुनी?" उसकी आवाज में डर के मारे कँपकँपाहट झलक रही थी।


"हाँ..मैंने भी सुनी पर यहाँ तो क..कोई नहीं है।" नियति बोली।


"अक्षत स्टीरियो के बटन दबा-दबाकर कभी बैकवर्ड तो कभी फॉरवर्ड करता ताकि उस आवाज को फिर से सुन सके लेकिन उसे गानों के अलावा कोई और आवाज सुनाई नहीं पड़ी। 

न जाने क्यों वो सरसराती हुई आवाज भी उसे जानी-पहचानी सी लग रही थी, लेकिन किसकी!!!!

वह समझ नहीं पा रहा था। 

"होटल अभी और कितनी दूर है बेबी? अब तो जल्द से जल्द पहुँचना चाहती हूँ।" नियति ने कहा। 

"बस पहुँचने ही वाले हैं।" कहते हुए अक्षत ने फिर से गाड़ी की स्टेयरिंग संभाली। नियति भी संभलकर बैठ गई। उनकी गाड़ी एक बार फिर सुनसान राह पर चल पड़ी। नियति अभी भी सहमी हुई थी। अचानक अक्षत के चेहरे पर घबराहट दिखाई देने लगी, उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसे स्टेयरिंग को घुमाने के लिए बहुत ताकत लगानी पड़ रही है, उसे देखकर नियति घबरा गई और उसको पकड़ते हुए बोली- "क..क्या हुआ बेबी...तुम घबराए हुए क्यों हो?"

तभी उसे जोर का झटका लगा और वह कार के दरवाजे से टकराई। वह घबराई आँखों से अक्षत को देख रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसने उसे क्यों धकेला...


उधर अक्षत अपनी पूरी ताकत से गाड़ी को काबू में करने की कोशिश कर रहा था लेकिन गाड़ी ने सड़क छोड़कर अलग ही दिशा पकड़ ली थी। पेड़ों के बीच झाड़ियों को रौंदती हुई काली अंधेरी राह पर उनकी कार किधर को ले जा रही थी, उन्हें कुछ पता न था। 

"प्लीज़.. प्लीज़ बेबी क्या हो गया है तुम्हें प्लीज़ रोको..." नियति गिड़गिड़ाने लगी। 

अचानक गाड़ी में जोर से ब्रेक लगाने की आवाज आई और गाड़ी जहाँ की तहाँ रुक गई।  अक्षत ने एक लंबी साँस छोड़ी जैसे कितनी ही देर से साँस रोककर बैठा था। नियति की तो साँसें ही अटक गई थीं, वह डर से काँप रही थी।

अचानक कार की हेड लाइट बंद हो गई।

चारों ओर घुप्प अंधेरा फैला था, पेड़ों के पत्तों से छनकर कहीं-कहीं चाँदनी के छोटे-छोटे टुकड़े बिखरे हुए थे लेकिन हवा के जोर से पत्तों की सरसराहट और नीचे बिखरे सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट वातावरण को भयावह बना रहे थे। नियति ने डर के मारे अक्षत का हाथ जोर से पकड़ लिया। 

अक्षत ने होटल में फोन करने के लिए मोबाइल निकाला लेकिन मोबाइल का सिग्नल गायब था। तभी उन्हें कुछ दूरी पर कोई साया दिखाई दिया। 

"शायद वहाँ कोई है।" कहकर उसने अपनी साइड का दरवाजा खोला और बाहर निकल आया। वह मदद पाने की उम्मीद से तेजी से उस साए की ओर बढ़ा, नियति गाड़ी में हैरान-परेशान सी बैठी रह गई, उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह बाहर निकले। तभी उसकी ओर के दरवाजे के शीशे पर किसी महिला का साया नजर आया। वह जोर से चीख पड़ी। दरवाजा अपने आप खुल गया और एक काला, जला हुआ, बड़े-बड़े नाखूनों वाला हाथ उसकी ओर बढ़ा, हाथ से धुआँ निकल रहा था, उसमें जहाँ-तहाँ चिंगारियाँ हवा लगते ही दहक उठतीं। नियति घबराकर पीछे खिसकने लगी और वह हाथ उसकी ओर बढ़ने लगा, पीछे खिसकते-खिसकते वह ड्राइविंग सीट पर पहुँच गई, डर के मारे उसने आँखें बंद कर लीं तभी उसे अपने कंधे पर जलन महसूस हुई जैसे किसी ने जलता हुआ तारकोल डाल दिया हो, वह जोर से चीखी...उसके चीखते ही कंधे पर जैसे नाखून चुभे और किसी ने उसे जोर से खींचकर बाहर ला पटका। रात के सन्नाटे को चीरती हुई उसकी चीख गूँज उठी और अगले ही पल वह बेहोश हो गई।

****


💠💠२

नियति की चीख सुनकर अक्षत पीछे मुड़ा ही था कि तभी उसे उस दिशा से चीख सुनाई पड़ी जिधर वह साया दिखाई दिया था। वह मुड़ा और उसी ओर भागा। परंतु उसे दूर-दूर तक अंधेरे के सिवा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। अचानक कुछ दूरी से सूखे पत्तों पर किसी के चलने की आवाज आई, वह उस दिशा में नजरें गड़ाकर देखने लगा लेकिन कोई दिखाई नहीं दे रहा था। तभी उसके आगे कुछ मीटर की दूरी पर एक पेड़ की डाली जोर से हिली और साँय की आवाज करती हुई हवा उसके कानों में कुछ कहती हुई गुजर गई..मैं यहाँ हूँ... 

अक्षत चौंककर इधर-उधर देखने लगा। अपने दायीं ओर उसे धुएँ का गुबार उठता दिखाई दिया...इस ठंडी रात में भी वह डर से पसीने-पसीने हो रहा था।

"बेबी कहाँ हो, प्लीज़ हेल्प मी!!" धुएँ के पीछे से उसे नियति की आवाज आई। वह उस ओर दौड़ पड़ा। तभी उसका पैर किसी रस्सी जैसी चीज में फँसा और वह धड़ाम से मुँह के बल गिरा। इससे पहले कि वह उठ पाता उसके पैर में फँसी रस्सी पीछे की ओर खिंचने लगी जैसे कोई खींच कर ले जा रहा हो। वह दहशत से चीख रहा था, उसका एक पैर हवा में एक-डेढ़ फीट ऊँचा उठा हुआ था और वह पीठ के बल पत्तों पर घिसटता जा रहा था। वहीं कहीं दूर से नियति के पुकारने की आवाज आ रही थी। 

क..क..कौन हो त..तुम? सामने क्क्यों नहीं आते? छ..छोड़ दो..." वह चिल्लाया।


तभी उसकी रस्सी ढीली हो गई और पैर जोर से जमीन पर गिरा, जैसे उसका कहा मानकर रस्सी छोड़ दिया हो। वह डरते हुए खड़ा हुआ और इधर-उधर देखने लगा परंतु दूर-दूर तक सिवाय अंधेरे और जगह-जगह छिटकती चाँदनी के और कुछ नजर नहीं आ रहा था। वह अपनी गाड़ी के पास वापस जाना चाहता था लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह किस दिशा से आया था। अकस्मात् उसके पैर धरती से ऊपर उठने लगे, वह चीख पड़ा। देखते ही देखते वह धरती से पाँच फीट ऊपर हवा में तैर रहा था, डर के मारे वह पसीने से भीग चुका था, तभी उसे जलने की गंध आने लगी। "प्लीज़! कौन हो तुम..? छोड़ दो मुझे... आखिर मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा..." चमड़ी जलने की गंध बढ़ते-बढ़ते एकदम पास आती जा रही थी और उसके नथुनों में समाती जा रही थी, उसका साँस लेना मुश्किल हो गया। 

तभी उसके सामने भक्क से रोशनी हुई और देखते-देखते वह रोशनी धुएँ में परिवर्तित होने लगी। अगले ही पल धुएँ में से जलती हुई मानवाकृति बाहर निकली। वह कोई स्त्री थी, आग की लपटों में घिरी हुई वह दोनों बाहें फैलाए अक्षत की ओर बढ़ी, "बेबी मुझे बचाओ, मैं..मैं मर जाऊँगी..प्लीज़ मुझे बचाओ.." रोती-चीखती हुई वह उससे मदद माँग रही थी।

"यति...यति..कोई है..?? बचाओ! बचाओ मेरी यति को.." अक्षत हवा में झूलते हुए बेबस महसूस कर रहा था। जलती हुई वह स्त्री ठीक उसके सामने आ गई, वह पूरी तरह जल चुकी थी अब उसके सामने स्त्री के आकार में एक दहकता हुआ कोयला खड़ा था। जिसमें से चिंगारियाँ उड़ रही थीं। 

"क..कौन हो तुम?? मुझे नीचे उतारो।" अक्षत समझ गया कि वह नियति नहीं थी, इसलिए गिड़गिड़ा उठा। उस जली हुई आकृति ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, वह पीछे हटना चाहता था, लेकिन पैर धरती पर न होने के कारण हट नहीं पा रहा था। उस जले हुए हाथ ने उसे कंधे से पकड़ लिया। अक्षत को ऐसा लगा जैसे किसी ने जलते हुए अंगारे उसके कंधे पर पलट दिए हों। वह जलन से चीख उठा। उस स्त्री ने उसे कंधे से पकड़कर जोर से नीचे पटका लेकिन दहशत के मारे जमीन पर गिरने से पहले ही बेहोश हो चुका था।

***


अक्षत को दूर से कुछ आवाजें आ रही थीं, शायद कोई उसे पुकार रहा था,

"अरे भाई साहब होश में आइए, होश में आइए भाई..ओ भाई साहब!!" 

कोई अन्य व्यक्ति कह रहा था कि "अरे पानी डालो भई कोई उन मैडम को भी होश में लाओ!"

तभी एक और आवाज आई..

"मैं पुलिस को फोन करता हूँ..." उसे ये सब आवाजें बड़ी दूर से सुनाई पड़ रही थीं, वह आँखें खोलना चाहता था लेकिन खोल ही नहीं पा रहा था, उसके हाथ पैर भी नहीं हिल पा रहे थे, उसे महसूस हुआ मानो उसके चेहरे पर झुकी कोई खूबसूरत सी लड़की उसे एकटक देख रही थी, अजीब सी कशिश थी उसकी आँखों में। धीरे-धीरे वह चेहरा उसके जाने-पहचाने चेहरे में बदलने लगा.... 

"त...तुम" कहते हुए वह झटके से उठ बैठा।


सुबह का उजाला फैल चुका था। उसे कुछ लोगों ने घेर रखा था, वह अपनी गाड़ी में ड्राइविंग सीट पर और नियति उसके बगल वाली सीट पर ही बैठी थी लेकिन वह अब भी शायद बेहोश थी। वह आश्चर्य से गर्दन इधर-उधर घुमाकर देखने लगा। "म..मैं यहाँ कैसे..." वह बोला।

ये तो आपको ही पता होगा भाई साहब, हम लोग तो यहाँ से गुजर रहे थे तो आपकी गाड़ी रास्ते से उतरी देखकर मदद करने के इरादे से यहाँ रुक गए, पंद्रह-बीस मिनट से आप दोनों को उठाने की कोशिश कर रहे हैं पर!. खैर आप होश में तो आए मैडम तो अभी भी बेहोश हैं। एंबुलेंस आती ही होगी। 

पानी के छींटे मारकर नियति को भी होश  में लाया गया। होश में आते ही वह चीखकर  अक्षत से लिपट गई और फूट-फूटकर रोने लगी। अक्षत ने फोन करके होटल से गाड़ी मँगवाई और दोनों होटल पहुँचे। 


****

आधुनिक रूप से सुसज्जित कमरे में पहुँचकर भी अक्षत और नियति बुझे-बुझे से थे, अक्षत को रह-रहकर वही चेहरा याद आ रहा था, जो उसके ऊपर झुका हुआ था। "न..नहीं..ये मेरा वहम है..तुम यहाँ नहीं हो सकतीं।" वह अपने-आप से बड़बड़ाया। "बेबी! क्या तुम भी वही सोच रहे हो जो मैं सोच रही हूँ?" नियति बोली।

"तुम क्या सोच रही हो?" अक्षत बोला।

"यही कि हमने यहाँ आकर शायद गलती कर दी।" नियति बोली।

"नहीं, हमने कोई ग़लती नहीं की, ये सब हमारा वहम भी हो सकता है, या रास्ते में उस जगह कोई प्रॉब्लम हो भी, तो इसका ये मतलब नहीं कि हमारा फैसला गलत है।" अक्षत नियति के साथ-साथ खुद के मन को भी तसल्ली दे रहा था।

"लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है।" कहते हुए नियति अक्षत के पास सिमट आई। 

"डरो मत, चलो हम फ्रैश होकर नीचे कैफेटेरिया में चलते हैं तो तुम्हारा मन भी बहल जाएगा।" अक्षत ने कहा। 

"हूँ मैं कपड़े निकालती हूँ तब तक तुम नहा लो।" कहकर नियति बैग खोलने लगी और अक्षत बाथरूम में चला गया। 

थोड़ी ही देर में उसने बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खोलकर, आवाज लगाकर नियति से कपड़े माँगे। नियति उसे कपड़े देने लगी तो शरारत भरी मुस्कान तैर गई अक्षत के होंठों पर, उसने कपड़े पकड़ने की बजाय उसका हाथ पकड़कर अंदर खींच लिया, एक जला हुआ वीभत्स चेहरा हँसते हुए उसके सामने था। वह चीखकर पीछे हटा लेकिन तब तक नियति उसके ऊपर आ पड़ी। वह डर के मारे उसकी ओर देख ही नहीं रहा था और उसके चीखने से हैरान नियति उसे इस प्रकार डरते देखकर हँस पड़ी। 

"तुम...तुम जाओ यहाँ से?" अक्षत उसकी ओर देखे बिना बोला।

"क्यों रोमांस नहीं करोगे? पहले तो खुद ही खींचा और अब ऐसे डर रहे हो जैसे मैं कोई भूत हूँ!" नियति हँसते हुए बोली। 

उसने अक्षत का कंधा पकड़कर अपनी ओर घुमाया और उसे तौलिया देते हुए बोली- "जल्दी से बाहर आ जाओ मुझे भी नहाना है। कहकर वह बाहर आ गई। डर से अक्षत के पैर काँप रहे थे, उसने जल्दी-जल्दी कपड़े पहने और बाथरूम से बाहर आ गया। 

नियति नहाकर जब बाहर आई तो देखा कि वह नाश्ता कमरे में ही मँगवा चुका था। 

"हम तो कैफेटेरिया जा रहे थे न! फिर ये सब यहाँ क्यों मँगवाया?" उसने पूछा।

"बहुत थक गया हूँ जान, अभी नाश्ता करके आराम कर लेते हैं, बाद में जाएँगे बाहर।" कहकर उसने नियति को वहीं बैठा लिया और नाश्ता करने लगा। हमेशा रोमांटिक मूड में रहने वाला अक्षत आज बिल्कुल बदला-बदला सा लग रहा था। वह नियति की ओर देख भी नहीं रहा था। रात की बात से परेशान है, यही सोचकर नियति बिना कुछ बोले नाश्ता करने लगी। 

****

अक्षत और नियति होटल के पीछे उस हरे-भरे पार्क नुमा जगह पर थे जहाँ से नीचे जाती हुई रंग-बिरंगे जंगली फूलों से भरी, दूर तक फैली हुई खाई थी और खाई के उस पार पहाड़ों के पीछे छिपते हुए सूरज की लाली से सिंदूरी होती पहाड़ी चोटियों की सुंदरता बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर रही थी। नियति का हाथ पकड़े अक्षत एक बेंच पर बैठा पहाड़ी की ओर एकटक देखते हुए कहीं खोया था, अचानक उसके कान के पास सरसराहट सी हुई, वह चौंक कर उस ओर देखने लगा..

"मैं यहीं हूँ.." उसके कान में किसी ने फुसफुसाकर कहा।

"क..कौन हो..?" वह घबराकर खड़ा हो गया और अपने चारों ओर देखने लगा। नियति उसे हैरानी से देख रही थी।

अक्षत को अपने सामने चार-पाँच मीटर की दूरी पर सफेद साड़ी में लिपटी एक लड़की दिखाई दी, जो उसे देखकर मुस्कुरा रही थी। उसके लंबे खुले हुए बाल कमर से नीचे तक लटक रहे थे। वह बेहद सुंदर लग रही थी लेकिन अक्षत को जिस तरह देख रही थी उससे उसके पूरे शरीर में मानों चींटियाँ सी रेंग गईं, वह इस ठंडे मौसम में भी पसीने से भीग गया। 

"आओ...मेरे पास आओ.। अक्षत को दूर खड़ी उस लड़की की आवाज अपने कानों में सरसराती हुई सी सुनाई दी। वह अपनी जगह निश्चेष्ट सा खड़ा रहा तभी उस लड़की का हाथ उसकी ओर बढ़ने लगा और धीरे-धीरे रबड़ की तरह बढ़ते हुए उसके बेहद करीब आ गया। वह वहाँ से भाग जाना चाहता था, लेकिन जैसे ही पीछे मुड़ा उसके सामने वही लंबे बालों वाली लड़की धू-धू कर जल रही थी...

"नहीं...बचाओ..कोई बचाओ उसे.." वह चीखने लगा।

अचानक आग बुझ गई और उस लड़की का तन कहीं-कहीं से दहकता हुआ कोयला बन गया जिसमें से चिंगारी उड़ रही थी और कहीं-कहीं मांस पिघलकर टपक रहा था। बाल अब भी धू-धू करके जल रहे थे। उसने अपने जलकर पिघलते हुए हाथ अक्षत की ओर बढ़ा दिए...

"नहीं.. नहीं..दूर रहो म..मुझसे..दूर..दूर रहो.." कहते हुए वह पीछे खिसकने लगा।

"आओ...आ जाओ..क्या तुम अब मुझे प्यार नहीं करते.. देखो..मैंने तुम्हारे लिए..अपनी दुनिया जला डाली..मेरे..बच्चे..हमारे प्यार की भेंट चढ़ गए, आ जाओ...हम तीनों तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं.." कहती हुई वह लड़की उसकी ओर बढ़ रही थी..


"न.. नहीं..तुम..तुम जाओ..बच.. बचाओ..!" कहते हुए वह पीछे खिसक रहा था।


"बेबी रुको, क्या हो गया है तुम्हें? यहाँ कोई नहीं है.. प्लीज़ रुको!" कहते हुए नियति उसकी ओर दौड़ी। वहाँ शाम का नजारा देखने आए सभी पर्यटक उसे हैरानी से देख रहे थे, उनमें से किसी को भी अक्षत के आसपास कोई दिखाई नहीं दे रहा था। 

नियति ने दौड़कर उसको पकड़ना चाहा पर उसे जोर का झटका लगा जैसे किसी ने उसे धक्का दिया हो, वह दूर जा गिरी। 

वह जलकर पिघलता हुआ हाथ अक्षत की गर्दन तक पहुँच गया, जैसे ही उसने उसके कंधे पर हाथ रखा पिघला हुआ मांस उसके कंधे पर फैल गया और उसमें से मांस जलने की दुर्गंध उसके नथुनों में भर गई। वह माँस फैलते हुए उसके पूरे शरीर को ढकने लगा, वह चीखने लगा, चीखते हुए वह पीछे खाई की ओर तेजी से खिसकने लगा। पागलों की तरह अपने शरीर पर बहते माँस को अपने दोनों हाथों से पोंछ रहा था, लेकिन वह तो बढ़ता ही जा रहा था। पीछे खिसकते हुए वह खाई में गिरने ही वाला था, तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया। 

"क्या हो गया है आपको, आप किससे डर रहे हैं?" उसे बचाने वाले व्यक्ति ने पूछा। वह बदहवास-सा अपने चारों ओर देख रहा था, वह जली हुई लड़की वहाँ नहीं थी, फिर उसने महसूस किया कि जलने की दुर्गंध भी नहीं आ रही तो वह जल्दी-जल्दी अपनी कमीज, अपने कंधे और पैर सब देखने लगा पर सब कुछ सामान्य था कहीं कुछ भी वैसा नहीं था जो अभी उसने देखा था। नियति उसके सामने खड़ी रोते हुए उसे देख रही थी। 


"थैंक्यू.. थैंक्यू सर आपने इन्हें बचा लिया।" उसने उस व्यक्ति के सामने हाथ जोड़ दिए।  

"कोई बात नहीं, रात हो चुकी है आप इन्हें ले जाइए, इन्हें आराम की जरूरत है।" कहकर वह व्यक्ति अपने बच्चों के पास चला गया। 

कमरे में आकर नियति ने उसे बैठने के लिए कहकर कॉल करके कॉफी और कुछ खाने के लिए मँगवाया। 

थोड़ी देर में दरवाजे की बेल बजी, नियति वॉशरूम में थी तो अक्षत ने उठकर दरवाजा खोला। कॉफी और स्नैक्स ट्रॉली में रखे स्टाफ का लड़का अंदर आया। वह कॉफी मेज पर रखते हुए अक्षत ओर देखते हुए मुस्कुरा रहा था, उसकी ओर देखते ही अक्षत को उसकी आँखें जानी-पहचानी सी लगीं लेकिन उसकी मुस्कान देखकर उसके अंदर तक कंपकंपी दौड़ गई।

"पहचाना...?" लड़की की आवाज गूँज उठी।

वह झटके से खड़ा हो गया, वह लड़का एकदम से लड़की में बदल गया। 

"क्या हुआ...इतनी जल्दी भूल गए...? उसने सरसराती हुई आवाज में कहा।

उसे देखते ही वह पसीने से नहा गया, उसके हाथ-पैर काँपने लगे, लड़की का अधजला चेहरा बहुत ही भयावह लग रहा था।

उसने अक्षत की गर्दन पकड़ी और ऊपर उठाते हुए बोली- "मुझे मारकर तुम खुश नहीं रह सकते अश्विन, तुम्हें भी हमारे पास आना ही होगा...!"

उसकी चीख सुनकर नियति बाहर आई, अक्षत का सिर छत से छू रहा था वह हवा में लटका हुआ चीख रहा था, उसकी नाक से खून बह रहा था और जोर-जोर से पैर झटक रहा था। उसकी हालत देखकर नियति चीखते हुए बाहर भागी। अगले ही पल कमरे में होटल स्टाफ के कुछ लोग और पास के कमरे में रहने वाले लोग भी मौजूद थे। 

सभी उसको ऐसे छत से चिपके देख हैरान थे, अचानक वह जोर से दीवार से जा टकराया, उसका चेहरा लहूलुहान हो गया। नियति दौड़कर उसके आगे आ गई और हाथ जोड़कर घुटनों पर बैठते हुए गिड़गिड़ा पड़ी, "म..मैं नहीं जानती तुम कौन हो, देख भी नहीं सकती, लेकिन प्लीज इसे छोड़ दो.." 

"छोड़ दूँ!! इसने छोड़ा मुझे? तुझे भी नहीं छोड़ेगा..." एक फुँफकारती हुई आवाज कमरे में गूँज उठी। वहाँ खड़े सभी ने वह आवाज सुनी और आश्चर्य से इधर-उधर देखने लगे।

"अरु..मुझे माफ़..कर दो..मैंने तुम्हारी..जान ली..मुझे माफ़.." अक्षत गिड़गिड़ाते हुए कहा रहा था। 

"माफ़?? तेरे माफी माँगने से मेरे बच्चे वापस आ जाएँगे...? मेरा टूटा विश्वास जुड़ जाएगा..?? मेरा परिवार..मेरी जिंदगी..मेरी इज्जत, मेरा आत्म सम्मान..ये सब वापस मिल जाएगा..? बोल अश्विन!! बता सबको..बता कि तू अक्षत नहीं अश्विन है..अपराधी है..!!" गुर्राती हुई आवाज गूँजी कमरे में।


ह..हाँ मैं..मैं अश्विन हूँ..अक्षत नहीं..मैंने अपनी पत्नी और बच्चों को मरने के लिए मजबूर किया..मैं..मैं नियति को भी कुछ दिनों बाद... छोड़ देने वाला था..मैंने अपनी...पत्नी को...बच्चों को जल..कर मरने के.. लिए मजबूर किया..।" कहते हुए अश्विन बेहोश हो गया। 

वहाँ मौजूद सभी लोग हक्का-बक्का से एक-दूसरे का चेहरा देख रहे थे। 

"अश्विन!!!" नियति होंठों ही होंठों में बुदबुदाई और बेसुध-सी बैठी शून्य में न जाने क्या देख रही थी।

अक्षत को अस्पताल ले जाया गया और वहाँ से उसे पुलिस गिरफ्तार करके ले गई। नियति के पिता उसे वापस अपने साथ ले गए।


मालती मिश्रा 'मयंती'✍️

2 टिप्‍पणियां:

Thanks For Visit Here.