शनिवार

मिलन की प्यास

नाजुक पंखुड़ियों पर झिलमिलाते 
शबनम से मोती
मानो रोई है रजनी जी भर कर 
जाने से पहले
या अभिनंदन करने को 
प्रियतम दिनेश का
धोई है इक-इक पंखुड़ी और पत्तों को 
पथ में बिछाने से पहले
पाकर स्नेहिल स्पर्श 
रश्मि रथी की पहली रश्मि पुंजों का
खिल-खिल उठे है प्रसून 
मधुकर के गुनगुनाने से पहले
लेकर मिलन की प्यास दिल में 
छिपी झाड़ियों कंदराओं में
इक नजर देख लूँ प्रियतम दिवाकर को 
ताप बढ़ जाने से पहले
नाजुक मखमली पंखुड़ियाँ 
ज्यों खिल उठती हैं किरणों के छूते ही
छा जाती वही सुर्खी रजनी के गालों पे 
अरुण रथ का ध्वज लहराने से पहले
पकड़ दामन निशि नरेश शशांक का 
हो चली बेगानी सी अनमनी
विभावरी रानी थी सकल धरा की जो 
दिवा नरेश भानु के आने से पहले।
मालती मिश्रा

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3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 17 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद यशोदा जी।

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    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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