बुधवार

हिंदुस्तान धन्य हुआ तुम सम प्रधान सेवक पाकर

पथ में आए पाषाण खण्ड को पुष्प बना सौरभ फैलाया
बाधा बनने वाले पर्वत ने भी तो तुमको शीश नवाया
अदम्य साहस और क्षमता का विश्व से लोहा मनवाया 
तुमको शत्रु पुकारा जिसने खुद आईना देख के शरमाया
जनता को भरमाते थे जो उनको तुमने अब भरमाया
मातृभूमि की सेवा को सर्वोपरि रखना सिखलाया
हिंदुस्तान धन्य हुआ तुम सम प्रधान सेवक पाकर
किसको कैसे साधा जाए दुनिया सीखेगी तुमसे आकर
दुनिया ही नहीं हमने भी जिसको नकलची, जुगाड़ू कहा चिढ़ाकर
पुनः उसका उत्थान करोगे तुम उसे विश्वगुरु बनाकर 
तुम्हारे मन की बातें अब बन गई हैं जन-जन की बातें
अज्ञान के तिमिर को मिटाकर तुमने दिया ज्ञान की सौगातें।
तुम सम लाल पाकर देश का मस्तक गौरव से तन गया
तुमको जन्म दिया जिसने उस जननी को शत-शत वंदन किया।
ऐसा लाल हो हर घर में तो भारत माँ कभी न रोएगी
मानवता के फूल खिलेंगे प्रेम सौहार्द्र के स्वप्न संजोएगी।
मालती मिश्रा

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