सात्विक भोजन मनुष्य के विचारों को भी शुद्ध बनाता है, इसीलिए दया, करुणा, परोपकार, मानवता, औरों के प्रति सम्मान की भावना उन व्यक्तियों में अधिक होती हैं जो सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। उदाहरण के लिए आतंकवाद, देशद्रोह, गद्दारी, धोखेबाजी, हिंसा, अमानवीय व्यवहार, स्वार्थ आदि बुराइयों से लिप्त लोगों के भोजन की जानकारी हासिल की जाय तो पता चलेगा कि बिना मांसाहार के उनका भोजन पूर्ण ही नहीं होता। इस प्रकार के तामसिक भोजन का सेवन मुस्लिम अधिकतर करते हैं तो हम देखते हैं कि अधिकतर आतंकवादी मुस्लिम ही होते हैं, स्वार्थ, गद्दारी,धोखेबाजी, हिंसा जैसी बुराइयाँ जिन हिंदुओं में होती है यदि उनके खाद्य पदार्थों की जानकारी प्राप्त करें तो पाएँगे कि वे शुद्ध सात्विक भोजन से कोसों दूर रहते हैं, हिंदू होते हुए भी मांस-मदिरा के बिना उनका भोजन कभी पूर्ण नही होता और ऐसे ही लोग अमानुषता की पराकाष्ठा पर पहुँच जाते हैं, अपने ही धर्म का, अपने ही देश का अपमान करने से नहीं चूकते। मानव होते हुए भी स्वार्थ में लिप्त होकर मानवता को लजाते हैं, मनुष्य होते हुए भी अमानुषता की सीमा पार कर जाते हैं, वहीं यदि दूसरे पहलू पर गौर करेंगे तो पाएँगे कि जो व्यक्ति शुद्ध सात्विक भोजन करता है वह शांत-चित्त, उदार हृदय, दयालु, सहयोगी व परोपकारी स्वभाव का होता है चाहे वह किसी भी धर्म का अनुयायी हो, जो व्यक्ति जितना अधिक तामसिक भोजन ग्रहण करता है उसका स्वभाव उतना ही अधिक उग्र और क्रोधी होता है। यदि प्रकृति ने हमें ग्रहण करने के लिए इतना कुछ दिया है तो हमें जीवहत्या से बचने का प्रयास करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को उसका धर्म या मज़हब बुरा नहीं बनाता बल्कि उसके स्वयं के कर्म उसे बुरा बनाते हैं और वह कर्म वैसे ही करता है जैसे उसके विचार होते हैं, और हमारे विचारों का अच्छा या बुरा होना हमारे भोजन पर निर्भर करता है। अतः सर्वप्रथम हमें अपने भोजन को शुद्ध और सात्विक बनाना चाहिए परिणामस्वरूप हमारे कर्म अपने-आप अच्छे होंगे।
मालती मिश्रा
मालती मिश्रा
0 Comments:
Thanks For Visit Here.