अशांत और भागदौड़ भरा जीवन है नगरों का,
पहले हँसता-मुस्कुराता शांत गाँव हुआ करता था।
मुर्गे की बाँग और कोकिल के मधुर गीत संग,
सूर्योदय के स्वागत में चहल-पहल हुआ करता था।
ऊँचे भवन अटारी ढक लेते हैं सूरज को,
पहले तो सुरमई भोर हुआ करता था।
सिर मटकी धर इठलाती बलखाती...
परिंदों का जहाँ शोर हुआ करता था.....
