सोमवार

स्वार्थ के रिश्ते

वह अकेला है
नितांत अकेला
कहने को उसके चारों ओर
लोगों का मेला सा है
पर फिर भी वह अकेला है
सभी रिश्ते हैं, रिश्तेदार है
पर सब के सब बीमार हैं
स्वार्थ की बीमारी ने सबको घेरा है
सबके दिलों में बस
लालच का डेरा है
नजरें सबकी बड़ी तेज
बटुए का वजन दूर से ही
भाँप लेते हैं
पर दिल कितना खाली है
इसका कोई न सवाली है
सबको बस चाहिए
देना किसी ने न सीखा
उसे क्या चाहिए 
ये किसी को न दीखा
उसके सामने दूर दूर तक
फैला हुआ है गहन अंधकार
अंधकार 
जो जितना बाहर है
उतना ही उसके भीतर है
मन में सवालों के बड़े-बड़े से
झाड़ खड़े हैं
जितना बाहर निकलने का
प्रयास करता
उतना ही और उलझता जाता
निरीह पड़ा हुआ 
नितांत अकेला
सहसा अँधेरे में 
उसे नोचने को आतुर
गिद्धों का झुंड टूट पड़ा
कोई कलाई तो कोई उँगली
कोई गर्दन 
तो कोई दिल
नहीं
क्यों नहीं करता वह
प्रतिकार
क्यों नहीं बताता सबको
कि स्वार्थ की नींव पर
संबंधों के प्रासाद नहीं बना करते
पर इससे पहले
उसे समझना होगा
कि
संबंधों का महत्व
निभाने में है
भार समझ ढोने में नहीं।
मालती मिश्रा

Related Posts:

  • आते हैं साल-दर-साल चले जाते हैं, कुछ कम तो कुछ अधिक सब पर अपना असर छो… Read More
  • अधूरी कसमें  बाहर कड़ाके की ठंड थी, सुबह के साढ़े नौ बज चुके थे अपरा अभी भी … Read More
  • प्रश्न उत्तरदायित्व का... हम जनता अक्सर रोना रोते हैं कि  सरकार कुछ नहीं करती..पर कभी नहीं… Read More
  • 2017 तुम बहुत याद आओगे..... बीते हुए अनमोल वर्षों की तरह 2017 तुम भी… Read More

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 06 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिग्विजय अग्रवाल जी बहुत-बहुत आभार।

      हटाएं
    2. दिग्विजय अग्रवाल जी बहुत-बहुत आभार।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. सतीश सक्सेना जी बहुत-बहुत आभार।

      हटाएं
    2. सतीश सक्सेना जी बहुत-बहुत आभार।

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. देव चौधरी जी बहुत-बहुत आभार।

      हटाएं
    2. देव चौधरी जी बहुत-बहुत आभार।

      हटाएं

Thanks For Visit Here.