चंदा तेरी शीतलता में, रही न अब वो बात।
बिन पंखे कूलर के ही जब, मन भाती थी रात।।
तेरे संगी साथी तारे, मलिन से रहते हैं।
मानव के अत्याचारों को, मन मार सहते हैं।।
लहर-लहर जो बहती नदिया, वह भी चुप हो गई।
सूखे रेतों की तृष्णा में, लहरें भी खो गईं ।।
हरे-भरे वन-कानन खोए,...
