ढल गया सूर्य संध्या हुई
अब जाग री तू विभावरी
मुख सूर्य का अब मलिन हुआ
धरा पर किया विस्तार री
लहरा अपने केश श्यामल
तारों से उन्हें सँवार री
ढल गया सूर्य संध्या हुई
अब जाग री तू विभावरी
पहने वसन चाँदनी धवल
जुगनू से कर सिंगार री
खिल उठा नव यौवन तेरा
नैन कुसुम खोल निहार री
ढल गया सूर्य संध्या हुई
अब जाग री तू विभावरी
मालती मिश्रा, दिल्ली✍️
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आ० कविता जी🙏
हटाएंअति सुन्दर ...👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंसस्नेहाभिनन्दन🙏
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