चंदा तेरी शीतलता में, रही न अब वो बात।
बिन पंखे कूलर के ही जब, मन भाती थी रात।।
तेरे संगी साथी तारे, मलिन से रहते हैं।
मानव के अत्याचारों को, मन मार सहते हैं।।
लहर-लहर जो बहती नदिया, वह भी चुप हो गई।
सूखे रेतों की तृष्णा में, लहरें भी खो गईं ।।
हरे-भरे वन-कानन खोए, बंजर हुई धरती
सूखा बाढ़ तबाही आए, उन्नती अब मरती।।
मालती मिश्रा, दिल्ली✍️
बिन पंखे कूलर के ही जब, मन भाती थी रात।।
तेरे संगी साथी तारे, मलिन से रहते हैं।
मानव के अत्याचारों को, मन मार सहते हैं।।
लहर-लहर जो बहती नदिया, वह भी चुप हो गई।
सूखे रेतों की तृष्णा में, लहरें भी खो गईं ।।
हरे-भरे वन-कानन खोए, बंजर हुई धरती
सूखा बाढ़ तबाही आए, उन्नती अब मरती।।
मालती मिश्रा, दिल्ली✍️
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 01 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआ०दिग्विजय जी बहुत-बहुत धन्यवाद
हटाएंधरती के बदलते मौसम बेहद गंभीर संकेत है।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित रचना मालती जी। बहुत सुंदर👌
आपकी सराहना उत्साहसर्जन का कार्य करती है श्वेता जी। सस्नेह आभार🙏
हटाएंप्राकृति के विरुद्ध जा के तबाही जी मिलती है ... बदलते मौसम का दंश इंसान को सहना ही होगा ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना ...
आ० दिगंबर जी हौसलाअफजाई के लिए सादर आभार🙏
हटाएंआजकल तुकान्त कविता कम ही देखने-पढ1ने को मिलती है, ऐसे मेेंें मालती जी आपके येे शब्द गजब के हैं...
जवाब देंहटाएंआ० अलकनंदा जी आप सम विद्वजनों की प्रतिक्रिया से लेखनी को बल मिलता है। आभार🙏
हटाएंनिमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंआभार ध्रुव जी 🙏
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