मन में उमंगें छाएँ मन हुलसा सा जाए
काली रात बीती छाई अरुण की लाली है।।
फुनगी पे ओस कण मोती से दमक रहे
जी भर के रोई मानो जाती रात काली है।।
हरी-हरी चूनर पे कुसुम के मोती सजे
देख दिनेश धरा ने चुनरी संभाली है।।
कुसुम कुमुदिनी पे मधुप गुंजार करे
कुहुक कुहू कोयल गाए मतवाली है।।
मालती मिश्रा, दिल्ली
वाह!!बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंशुभा जी बहुत-बहुत आभार
हटाएंआकर्षक चित्र उससे भी मनोहारी शब्दचित्र -- सस्नेह प्रिय मालती जी |
जवाब देंहटाएंरेनू जी ब्लॉग पर उपस्थित होकर स्नेहमयी वाणी से सिंचित कर बरबस ही मन जीत लिया आपने।🙏
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