बुधवार

राजनीति के अच्छे दिन

   शहंशाह क्या होता है? कौन होता है? क्या आज के समय में कोई शहंशाह हो सकता है?
ये कोई ऐसे प्रश्न नहीं जिनके जवाब हमें न पता हो, परंतु राजनीति के क्षेत्र में इस शब्द का बार-बार प्रयोग इस प्रकार किया जाना जैसे कि ये जिसे शहंशाह कह देंगे उसे जनता विलेन मानने लगेगी, इनकी संकीर्ण मानसिकता का परिचायक है। कह भी कौन रहा जिसने स्वयं को हमेशा भारत का सर्वेसर्वा समझा जो आज भी पूरे देश पर अपनी बपौती समझते हैं और कोई उनकी कमजोर नब्ज पर उँगली रख दे तो उन्हें अपना अधिकार खतरे में नजर आने लगता है। जिन्होंने पूरे देश में अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए इमारतों, सड़कों, योजनाओं, पुरस्कारों सब पर अपना आधिपत्य दर्शाने हेतु उन्हें अपना ही नाम दे दिया। 
मोदी जी ने तो कभी नहीं कहा कि वह शहंशाह हैं, वह तो स्वयं को प्रधानमंत्री भी नहीं कहते बल्कि प्रधान सेवक कहते हैं अब यदि उनकी छवि से प्रभावित लोग ही उन्हें शहंशाह का दर्जा दे दें तो वो क्या करें। 
किसी नेता ने गलत बयान दे दिया तो मोदी जी दोषी, कहीं दो लोग आपसी दुश्मनी में लड़ पड़ें और उनमें कोई एक दलित निकला तो मोदी दलित विरोधी, कहीं कोई भी लूट-पाट या अन्य कोई अपराध हो तो मोदी जी क्या कर रहे, आपसी झगड़े या एक्सीडेंटली कोई मुस्लिम को नुकसान पहुँचा तो मोदी जी असहिष्णु, मोदी जी यदि सीमावर्ती देशों के मसले बातचीत से हल करने की कोशिश करें तो वो अपराधी न करें तो अभिमानी। ऐसा प्रतीत होता है कि आज की पूरी राजनीति देशहित के लिए है ही नहीं बल्कि मोदी जी के आस-पास घूम रही है मोदी जी को कैसे घेरें, कैसे दोषारोपण करें, कैसे उनकी छवि धूमिल करें आदि-आदि। 
यदि किसी के अस्तित्व पर दाग लगता है तो उस दाग को साफ करना चाहिए न कि ये देखो कि अपना दाग किसी और के दामन पर कैसे मलें, अभी यही हो रहा है बाड्रा की जाँच की माँग क्या हुई सोनिया गाँधी तिलमिला कर मोदी जी को कहने लगीं कि वो शहंशाह नहीं। जबकि यदि आप बेदाग हैं तो आपको तो जाँच का समर्थन करना चाहिए, आप भी तो यही कह रही हैं कि जाँच करवा लो तो मोदी जी बीच में कहाँ से आ गए उन्होंने बिना जाँच अपना फैसला सुना दिया क्या?
यही हाल दिल्ली सरकार का है इतने समय में आज तक अपने महिमामंडन के अलावा कुछ नहीं किया सिवाय प्रधानमंत्री की कमियाँ गिनवाने के, प्रधानमंत्री की डिग्री को नकली साबित करने में जितनी ऊर्जा लगाई यदि उतनी ही राज्य के हितार्थ कुछ काम करने में लगाते तो दिल्ली का कुछ भला होता। परंतु ऐसा तब होता जब उद्देश्य सकारात्मक होता। ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री बने ही सिर्फ इसलिए हैं कि बार-बार कोर्ट में शिकायतें करें और खुद तो कुछ करना नहीं दूसरों की आलोचना और फिल्मों की समीक्षा कर सकें और हाँ घोटालों मे रिकॉर्ड कायम कर सकें।
कौन कहता राजनीति लोगों को सिर्फ तोड़ती है आज देख लीजिए राजनीति दो विरोधियों को भी मित्र और रिश्तेदार बना रही है, माननीय प्रधानमंत्री को हराने के उद्देश्य से ही सही किंतु सभी विरोधी पार्टियाँ एक-दूसरे की सहयोगी बन गई हैं। अब राजनीति के लिए इससे अच्छे दिन और क्या हो सकते हैं कि जनता के समक्ष  एक साथ सभी के मुखौटों से शराफ़त का नकाब हटेगा। 

मालती मिश्रा

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3 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद, ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  2. मालती जी बहुत ही अच्छा लिखा है आपने। आजकी पूरी राजनीति सिर्फ मोदी जी के पीछे पड़ी हुयी है। उनको हारने के लिए दो दुश्मन भी आपस में मित्र बने जा रहे हैं। सही कहा आपने इससे अच्छे दिन और कब आएंगे। आप ऐसी ही रचनाओं को शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं। वहां पर भी यही है अच्छे दिन ! जैसी रचनाएँ पढ़ व् लिख सकते हैं ।

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