रविवार

सुप्रभात🙏

अंधकार मिट रहा निशिचर छिप रहे
पूरब दिशा में फैली अरुण की लाली है।

तेज को मिटाने वाली निराशा जगाने वाली
बुराई की परछाई गई रात काली है।

तारागण छिप गए चाँद धुँधला सा हुआ
जाती हुई रजनी का हाथ अब खाली है।

सभी प्राणी जाग रहे आलस को त्याग रहे
पुरवा पवन देखो बही मतवाली है।।
मालती मिश्रा, दिल्ली✍️

Related Posts:

  • पुरस्कार पुरस्कार...... कहीं दूर से कुत्ते के भौंकने की आवाजें आ रही थीं, न… Read More
  • अंबर की खिड़की खुली, झाँक रहे दिनराज तिमिर मिटा अब रैन का, पवन बजाती… Read More
  • पुराना फर्नीचर पुराना फर्नीचर धूल झाड़ते हुए सुहासिनी देवी के हाथ एकाएक रुक गए जि… Read More
  • संविधान या परिधान संविधान या परिधान! संविधान! क्या हो तुम तुम्हारा औचित्य क्या है? मैं… Read More

8 टिप्‍पणियां:

  1. बिती रात अब भोर सुहानी,
    सुबह के स्वागत का सुंदर गान मीता।
    अप्रतिम।

    जवाब देंहटाएं
  2. अति सुन्दर आशा का संचार जगाती प्रभाती ...मालती जी सुप्रभात

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी है......जीवन में एक नई आशा जगती है

    जवाब देंहटाएं
  4. मनोरम भोर दर्शन !!!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं

Thanks For Visit Here.