शनिवार

२०१६ तुम बहुत याद आओगे.....

२०१६ तुम बहुत याद आओगे.....
२०१६ तुम बहुत याद आओगे..... बीते हुए अनमोल वर्षों की तरह २०१६ तुम भी मेरे जीवन में आए कई खट्टी मीठी सी सौगातें लेकर  मेरे जीवन का महत्वपूर्ण अंग  बन छाए कई नए व्यक्तित्व जुड़े इस साल में कितनों ने अपने वर्चस्व जमाए कुछ मिलके राह में  कुछ कदम चले साथ और...

शुक्रवार

वंदना

वंदना
हे शारदे माँ करूँ वंदना कमल नयना श्वेत वसना हंसवाहिनी वीणा धारिणी वागेश्वरी माँ करूँ प्रार्थना भवभय हरिणी मंगल करणी श्वेत पद्मासना माँ शतरूपा अज्ञानता मिटाकर हमें तार दे वाणी अधिष्ठात्री माँ शारदे स्वार्थ लोभ दंभ द्वेष अवगुणों से हमें उबार दे शुक्लवर्णा माँ भारती प्रेम...

बुधवार

जीवन पानी सा बहता जाए

जीवन पानी सा बहता जाए
जीवन पानी सा बहता है ऊँची-नीची, टेढ़ी-मेढ़ी,  कंकरीली-पथरीली सी सँकरी कभी  और कभी गहरी-उथली आती बाधाएँ राहों में पानी अपनी राह बनाता लड़ता सारी बाधाओं से अविरल धारा सम कर्मरत रह हर प्रस्तर को पिघलाता जाए जीवन पानी सा बहता जाए आगे आए कष्टों का पर्वत पर जीवन...

सांप्रदायिकता को जन्म देते राजनेता

सांप्रदायिकता को जन्म देते राजनेता
सांप्रदायिकता को जन्म देते राजनेता बहुत पुरानी युक्ति है यदि दो धर्म या जाति वालों में आपसी रंजिश पैदा करनी हो तो किसी एक को आवश्यकता से अधिक संरक्षण देना प्रारंभ कर दो दूसरा अपने-आप स्वयं को असुरक्षित मान बचाव प्रक्रिया की स्थिति में आ जाएगा। बस....फूट डालने वाले का काम...

रिश्तों की डोर

रिश्तों की डोर
हाथ से रिश्तों की डोर छूटी जाती है लम्हा दर लम्हा दूरी बढ़ती जाती है जितना खींचो इसको ये  उतनी ही फिसलती जाती है  ढीली छोड़ दें तो राह भटक जाती है कोई तो समझाए ये कैसे संभाली जाती है? हाथों से रिश्तों की डोर छूटी जाती है तिनका-तिनका करके  बनाया था जो...

रविवार

अपराध

अपराध
बस अड्डा आ गया उसने अपना बैग उठाया और बस से उतरने को आगे बढ़ी..बस के गेट की ओर बढ़ते हुए उसके पैर कांप रहे थे, वह समझ नहीं पा रही थी कि  ऐसा क्यों??  मौसम की सर्दी का असर था या अपनी मंजिल से नजदीकी का अंजाना सा भय जो सर्द लहर बनकर उसकी नस-नस में दौड़ गया था।...

शनिवार

सवाल

सवाल
सवाल.. ये दिल मेरा कितना खाली है पर इसमें सवाल बेहिसाब हैं मैं जवाब की तलाश में दर-दर भटक रही हूँ पर मेरे दिल की तरह  मेरे जवाबों की झोली भी  खाली है। ये दिल मेरा.... भरा है माता-पिता के प्रति कृतज्ञता से भाई-बहनों के प्रति प्यार और दुलार से माँ की दी हुई सीख...

मंगलवार

कान्हा तेरो रूप सलोनो

कान्हा तेरो रूप सलोनो
कान्हा तेरो रूप सलोना मेरो मन को भायो इत-उत बिखरे मोर पंख को तुमने भाल चढायो देखि-देखि तेरो रूप सलोनो मेरो मन बलि-बलि जायो मधुर बँसुरिया है बड़ भागी जेहि हर पल अधर लगायो मन ही मन उनसे जले गोपियाँ जिन राधे संग रास रचायो कान्हा तेरो रंग सलोना  मेरो...

शनिवार

भोर सुहानी

भोर सुहानी
उषा की लहराती चूनर से  अंबर भया है लाल तटिनी समेटे अंक मे  सकल गगन विशाल सकल गगन विशाल  प्रकृति छटा बिखरी है न्यारी सिंदूरी सी चुनरी मे  दुल्हल सी भयी धरा हमारी रंग-बिरंगे पुष्पों ने सजा दिया  पथ दिवा नरेश का मधुकर की मधुर गुनगुन...

गुरुवार

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार
भ्रष्ट और आचार इन दो शब्दों का मेल, चारों ओर फैला है इसी मेल का खेल। आचरण में जिसके घुला भ्रष्टता का मिश्रण, इस मिश्रण से आजकल त्रस्त है जन-जन का मन। भ्रष्टाचार मिटाने के नारे तो सभी लगाते हैं, पर दुष्करता से बचने को खुद भ्रष्टाचार बढ़ाते हैं। सरकारी दफ्तरों में बाबू नहीं...

मंगलवार

दूर के ढोल सुहाने

दूर के ढोल सुहाने
दूर के ढोल सुहाने... जीवन में कुछ लोग  बहुत खास होते हैं पर जो खास होते हैं  वो कब पास होते हैं और जो पास होते हैं  वो कब कहाँ खास होते हैं मानव की फितरत है यही कि वो हमेशा अनदेखे की  तलाश करता है और जो पास होता है  उसे अनदेखा करता है वह हमेशा  परछाइयों...

सोमवार

स्वार्थ के रिश्ते

स्वार्थ के रिश्ते
वह अकेला है नितांत अकेला कहने को उसके चारों ओर लोगों का मेला सा है पर फिर भी वह अकेला है सभी रिश्ते हैं, रिश्तेदार है पर सब के सब बीमार हैं स्वार्थ की बीमारी ने सबको घेरा है सबके दिलों में बस लालच का डेरा है नजरें सबकी बड़ी तेज बटुए का वजन दूर से ही भाँप लेते हैं पर दिल...

शुक्रवार

जनता अब जाग रही

जनता अब जाग रही
कालेधन और भ्रष्टाचार पर  सत्तर सालों तक रहे खामोश। समय आ गया मुक्ति का तब चले दिखाने मिलकर आक्रोश। भ्रष्टाचार जब फैलता है तो निर्धन जनता ही पिसती है, भ्रष्टाचार निवारण पर भी  वही लाइनों में दबती है। जिन मज़लूमों के नाम पर तुम अपनी रोटी सेंक रहे स्याह...

रविवार

आब-ए-आफ़ताब

आब-ए-आफ़ताब
आब-ए-आफ़ताब अनुपम स्पंदन शबनम सा तेरी आँखों मे जो ठहर गया, दिल में छिपे कुछ भावों को चुपके से कह के गुजर गया। बनकर मोती ठहरा है जो तेरी झुकी पलकों के कोरों पर, उसकी आब-ए-आफ़ताब पर ये दिल मुझसे मुकर गया। जिन राहों पर चले थे कभी थाम हाथों में हाथ तेरा, देख तन्हा उन्हीं...

शनिवार

नोटबंदी के मारे नेता बेचारे

नोटबंदी के मारे नेता बेचारे
चुनाव के वक्त सभी राजनीतिक पार्टियाँ अपने-अपने अलग-अलग घोषणा-पत्र तैयार करती हैं और सभी के चुनावी घोषणा पत्रों में कुछ बातें कॉमन होती हैं, जो घोषणा सौ प्रतिशत सभी पार्टियाँ शामिल करती हैं वो है भ्रष्टाचार का उन्मूलन, कालाधन पर रोक, कालेधन की वापसी आदि। परंतु सत्ता...

शुक्रवार

अन्तर्ध्वनि

अन्तर्ध्वनि
अन्तर्ध्वनि...... कभी-कभी हमारी जिह्वा कुछ कहती है और हमारा हृदय कुछ और, कभी-कभी हमारा मस्तिष्क कुछ निर्णय लेता है किंतु हमारा हृदय कतराता है, कभी-कभी हम वह नहीं सुनना चाहते जो हमारा हृदय हमें बतलाता है। अक्सर हमें मस्तिष्क की बात भली लगती है और हृदय की बुरी, कभी-कभी हम...

मंगलवार

चेहरों के उतरते नकाब

चेहरों के उतरते नकाब
चेहरों के उतरते नकाब.... मन की बात कह-कह हारे पर मुफ्त खोर अब भी हाथ पसारे। कालेधन पर किया स्ट्राइक फिर भी पंद्रह लाख गुहारे। काला हो या श्वेत रूपैया इनको बस है नोट प्यारे। भ्रष्टाचार मिटाएँगे सबको स्वराज दिलाएँगे। लोकतंत्र को रोपित करने आए थे धरनों के मारे। लक्ष्य...

शनिवार

आई आहट आने की

आई आहट आने की
आई आहट आने की ऊषा के मुस्काने की रक्तिम वर्ण बिखराने की तारक के छुप जाने की मयंक पर विजय पाने की तमी के तम को हराने की विजय ध्वज लहराने की सोई अवनी को जगाने की ओस के मोती बिखराने की सूरज के मुस्काने की रश्मिरथी के आने की आई आहट आने की कलियों के खिल जाने...

बुधवार

क्यों व्यथित मेरा मन होता है

क्यों व्यथित मेरा मन होता है
क्यों व्यथित मेरा मन होता है कल्पना में उकेरा हुआ घटनाक्रम पात्र भी जिसके पूर्ण काल्पनिक  चित्रपटल पर देख नारी की व्यथा  सखी क्यों मेरा हृदय रोता है क्यों व्यथित....... नहीं कोई सच्चाई जिसमें महज अंकों में बँधा नाटक है नारी पात्र की हर घटना...

सोमवार

नेता जी की फिक्र..

नेता जी की फिक्र..
नेता जी की फिक्र.... राजनीति से मेरा दूर-दूर का कोई नाता नहीं और न ही मुझे कभी राजनीति में कोई दिलचस्पी रही परंतु अपने देश से हमेशा से प्रेम किया... देशभक्ति का जज़्बा सदा से मन में रहा, हमेशा देश को व्यक्तिगत हितों से ऊपर माना इसीलिए बचपन में जिस किसी नेता को देशहित...