रविवार

स्त्री विमर्श

स्त्री विमर्श
स्त्री-विमर्श नारी, स्त्री, महिला, वनिता आदि-आदि नामों से पुकारी जाने वाली नारी आज न जाने कितने लोगों के शोध का विषय बनी हुई है क्यों?? क्योंकि आज भी यह एक अबूझ पहेली है। यह हर क्षेत्र में अपनी क्षमता को सिद्ध करती जा रही है, फिर भी यह कमजोर है, शोषित है! इसीलिए इसकी...

शनिवार

मैंने पूछा संविधान से..

मैंने पूछा संविधान से..
संविधान! क्या हो तुम तुम्हारा औचित्य क्या है? मैंने पूछा संविधान से.. मैं! मैं संविधान हूँ, अर्थात्..... सम+विधान सबके लिए समान कानून। बड़े गर्व से बताया संविधान ने समान कानून! कहाँ है यह समान कानून? हमारे यहाँ तो जहाँ सुनो संविधान की चर्चा है पर समान कानून का तो बड़ा...

बुधवार

आज लिखूँ मैं गीत नया

आज लिखूँ मैं गीत नया
आज लिखूँ मैं गीत नया जो सबके मन को भाए, नया गीत नव राग लिए बागों में कोयल गाए। दादुर मोर पपीहा भी विरह गीत मिलकर गाएँ, मैं मिलन का गीत लिख दूँ विरह व्यथा सब बिसराएँ। हर दिल का उल्लास बने ऐसे सुर में गीत सजाऊँ, पुलक-पुलक मन हरषाए बन पवन सौरभ बिखराऊँ। शब्द-शब्द से नेह...

सोमवार

तेरी गली

तेरी गली
आज कई साल बाद मैं उसी गली से गुजरा प्रवेश करते ही गली में फिर वही खुशबू आई मानों तेरी ज़ुल्फें लहराई हों और फ़िजां में भीनी-भीनी खुशबू फैल गई हवा का झोंका मेरे तन को छूकर कुछ यूँ गुजरा मानों तेरी चुनरी मुझे सहलाती हुई उड़ गई मैं लड़खड़ाया सहारे के लिए दीवार पर हाथ टिकाया बिजली...

शनिवार

घायल होती मानवता चीख पड़ी है, जाति-धर्म बन आपस में रोज लड़ी है। लालच का चारा नेता ने जब डाला, मीन बनी जनता उसकी मति हर डाला। बनकर दीमक चाट रहे नींव घरों की, वही बन गए आस सभी खेतिहरों की। मज़लूमों की चीख नहीं पड़े सुनाई, अब वही दुखियों के बने बाप व माई।। मालती मिश्रा ...

शुक्रवार

मैं देश के लिए जिया

मैं देश के लिए जिया
जिया मैं देश के लिए मरा मैं देश के लिए उठा मैं देश के लिए गिरा मैं देश के लिए जला मैं देश के लिए बुझा मैं देश के लिए ये जन्म देश के लिए हो मृत्यु देश के लिए चला मैं देश के लिए रुका मैं देश के लिए मैं भक्त देश के लिए आसक्त देश के लिए मालती मिश्रा 'मयंती' ...

बुधवार

वो नहीं आया

वो नहीं आया
 *वो नहीं आया* ठीक-ठीक तो याद नहीं पर नवंबर या दिसंबर का महीना था रात के करीब  साढ़े दस-ग्यारह बजे रहे थे, वैसे तो मार्केट में होने के कारण हमारी गली में दस बजे तक लोगों का आना-जाना लगा ही रहता है पर ठण्ड अधिक होने के कारण उस दिन गली सुनसान हो गई थी, मैं और...

मंगलवार

निशि

निशि
सौ वाट का बल्ब खपरैल की छत से लटकते हुए दस बाई दस के उस रसोई के लिए प्रयोग होने वाले कमरे को ही रोशन नहीं कर रहा था बल्कि दरवाजे के ऊपरी चौखट तक लटके होने के कारण भीतर के कमरे में भी दूसरे बल्ब की उपयोगिता को समाप्त कर रहा था। सर्दी ने अपनी उपस्थिति का अहसास कराना शुरु...

सोमवार

जाग हे नारी

जाग हे नारी
आज रो रही भारत माता व्यथा हृदय की किसे कहे नारी की लुटती अस्मत को देख आँख से लहू बहे मान तेरा अब तेरे हाथ है मत बन तू लाचार जाग हे नारी उठा ले अपने हाथों में तलवार।।  गिद्ध जटायु का वो जमाना बीत गया त्रेतायुग में गर्म मांस को खाने वाले मिलते हैं इस कलयुग में आएँगे...

गुरुवार

संस्मरण...'मौसी'

संस्मरण...'मौसी'
संस्मरण मौसी आज अचानक ही न जाने क्यों उस व्यक्तित्व की याद आई जो मेरे जीवन में माँ सी थीं। हालांकि आज वो इस दुनिया में प्रत्यक्ष रूप से नहीं हैं परंतु माँ की यादों के साथ उनकी यादें भी सदा मेरे हृदय में जीवित रहती हैं। आज तो मेरी माँ जिन्हें हम 'अम्मा' कहते हैं वो भी हमारे...

बुधवार

बालदिवस

बालदिवस
बालदिवस कंधे से बस्ता उतारकर सोफे पर फेंकते हुए बंटी ने माँ को बताया कि कल विद्यालय में बालदिवस मनाया जाएगा इसलिए सब बच्चों को फैन्सी ड्रेस पहनकर आना है। "माँ मैं क्या बनकर जाऊँ?" तब माँ उसे बाजार लेकर गई ताकि उसके लिए कोई ऐसी ड्रेस खरीद सके जिसमें बंटी कल सबसे अलग सबसे...

शुक्रवार

धूमिल होते धार्मिक त्योहार

धूमिल होते धार्मिक त्योहार
'धूमिल होते धार्मिक त्योहार'  हमारा देश 'त्योहारों का देश' कहा जाता है, सत्य भी है क्योंकि यहाँ धार्मिक मान्यताओं के आधार पर बहुत से तीज-त्योहार मनाए जाते हैं, हमारे प्रत्येक त्योहार के पीछे धार्मिक मान्यता होती है, यह तो हम जानते हैं किन्तु प्रत्येक मान्यता के पीछे...

रविवार

मुक्तक

मुक्तक
मुक्तक कहीं पर शंख बजते है, कहीं आजान होते हैं। मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे यहाँ की शान होते हैं।। जहाँ नदियों का संगम भी प्रेम संदेश देता है। धर्म के नाम पर झगड़े,क्यों सुबहोशाम होते हैं।। वही धरती वही अंबर, खेत खलिहान होते हैं। वही झोंके पवन के हैं, जो सबको प्राण देते हैं।। वर्षा...

शुक्रवार

प्रसिद्धि की भूख' तकनीक की देन..

प्रसिद्धि की भूख' तकनीक की देन..
प्रसिद्धि की भूख' तकनीक की देन.. पहले समाज में दस-बीस प्रतिशत लोग ऐसे होते थे जो समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने के लिए प्रयत्नशील होते होंगे। वैसे समाज में अपनी पहचान, मान-सम्मान तो सभी को प्रिय होता है परंतु रोजी-रोटी, पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों से समय मिले...

शनिवार

पुरस्कार... भाग-5 (अंतिम भाग)

पुरस्कार... भाग-5 (अंतिम भाग)
प्रातःकालीन सभा की तैयारी हो रही थी, विद्यालय के पिछले भाग में खेल के मैदान में बच्चों को कक्षानुसार पंक्तियों में खड़ा किया जा रहा था। नंदिनी अपनी कक्षा के बच्चों की  पंक्ति सीधी करवा रही थी तभी चपरासी ने आकर कहा कि उसे डायरेक्टर सर बुला रहे हैं। वह तुरंत ऑफिस की...

गुरुवार

पुरस्कार... भाग- 4

पुरस्कार... भाग- 4
सत्र का पहला दिन था,नंदिनी के मन में कौतूहल था कि किसको किस कक्षा की कक्षाध्यापिका या कक्षाध्यापक बनाया जाएगा! "रिधिमा मैम आपको क्या लगता है इस बार आपको कौन सी क्लास मिलेगी?" नंदिनी से नहीं रहा गया तो उसने उत्सुकतावश एक अध्यापिका से पूछ ही लिया जो उस स्कूल में कई सालों...

बुधवार

फ्री पीरियड था तो नंदिनी कंप्यूटर लैब में बैठकर बच्चों की कॉपियाँ चेक कर रही थी तभी... "गुड मॉर्निंग नंदिनी मैम" कंप्यूटर लैब में प्रवेश करते हुए कंप्यूटर टीचर देवेश चौधरी बोले। "देवेश सर! गुड मॉर्निंग सर, हाऊ आर यू?" देवेश पिछले स्कूल में नंदिनी के सह अध्यापक रह चुके...

मंगलवार

पुरस्कार.... भाग- 2

पुरस्कार.... भाग- 2
नंदिनी ने बोल तो दिया कि आ जाएगी पर वह सोच में पड़ गई कि क्या करे...पृथ्वी सर से क्या कहे और अनुभव सर को भी मना नहीं करना चाहती क्योंकि उसने ही उनसे कहा था कि आपके स्कूल में कोई वैकेंसी हो तो बताइएगा, स्कूल की रैपुटेशन भी अच्छी है तो निश्चय ही वेतन भी यहाँ से ज्यादा...

सोमवार

पुरस्कार

पुरस्कार
कहीं दूर से कुत्ते के भौंकने की आवाजें आ रही थीं, नंदिनी ने सिर को तकिए से थोड़ा ऊँचा उठाकर खिड़की से बाहर की ओर देखा तो साफ नीले आसमान में दूर-दूर छिटके हुए इक्का-दुक्का से तारे नजर आ रहे थे। चाँद तो कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था, दूर बहुमंजिला इमारतों की परछाइयाँ...

रविवार

पत्रिका 'आर्ष क्रान्ति पर मेरे समीक्षात्मक विचार'

पत्रिका 'आर्ष क्रान्ति पर मेरे समीक्षात्मक विचार'
*आर्ष क्रांति पर मेरे समीक्षात्मक विचार* कोरी कल्पनाओं और राजनीति के प्रभाव से जिस प्रकार आज समाज दिग्भ्रमित हो रहा है ऐसे में 'आर्य लेखक परिषद्' द्वारा प्रकाशित 'आर्ष क्रांति' अंधेरे में एक मशाल का कार्य करने में सक्षम है। इसका प्रथम अंक ही बेहद आकर्षक और ज्ञान का स्रोत...

मंगलवार

ट्रू टाइम्स में प्रकाशित मेरा आलेख..... 'साहित्यकार के साहित्यिक दायित्व' धन्यवाद ट्रू टाइम्स साहित्य सदा निष्पक्ष और सशक्त होता है, यह संस्कृतियों के रूप, गुण, धर्म की विवेचना करता है और  साहित्यकार साहित्य का वह साधक होता है जो शस्त्र बनकर साहित्य की रक्षा...